TNP DESK-तमाम विरोध और नाराजगी की खबरों के बावजूद भाजपा ने आखिरकार बीडी राम पर भी दांव लगाने का फैसला किया, इंडिया गठबंधन की ओर से बीडी राम के सामने कौन होगा? हर बीतते वक्त के साथ इंडिया गठबंधन के अंदर यह पहेली उलझती दिख रही है, अभी चंद दिन पहले ही राजद सुप्रीमो लालू यादव ने झारखंड की राजनीति का एक जाना-पहचाना चेहरा और झामुमो नेता दुलार भुइंया के छोटे भाई की पत्नी ममता भुइंया की राजद में इंट्री करवायी थी. ममता भुइंया हाल के दिनों में भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा में सक्रिय हुई थी. लेकिन बीडी राम को टिकट मिलते ही ममता का धैर्य जवाब दे गया और पार्टी के उपर तोहमतों का पहाड़ खड़ा करते हुए राजद की सदस्यता ग्रहण कर ली. जिसके बाद यह माना जाने लगा कि पलामू के दंगल में अब बीडी राम और ममता भुइंया का सियासी संघर्ष होना तय है. लेकिन अब जो खबर आ रही है. उसके अनुसार भाजपा में एक और सेंधमारी की तैयारी है. इस बार यह सेंधमारी कांग्रेस और जेएमएम की ओर संयुक्त कमांड में की जा रही है और नजर भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के एक बड़े चेहरे पर है.
राजद की चाल को नाकाम करने की कोशिश
दरअसल खबर यह है कि चेहरों के टोटा से गुजर रही कांग्रेस की कोशिश राजद की इस चाल को नाकाम करने की है. कांग्रेस की इस सियासी रणनीति में झामुमो का साथ भी मिल रहा है और टास्क भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चे में सक्रिय प्रभात भुइंया को कांग्रेस के पाले में लाने की है. सूत्रों की माने तो यह बातचीत अंतिम मुकाम पर है. किसी भी वक्त प्रभात भुइंया का पाला बदल की खबर सामने आ सकती है. दरअसल प्रभात अपनी इंट्री के पहले हर किल कांटा दुरुस्त कर लेना चाहते हैं. ममता की कहानी उनके साथ ही दुहरायी जाय, प्रभात ऐसा कोई रिस्क लेने नहीं चाहते, प्रभात के अंदर उमड़ते इन सवालों के कारण ही इस बातचीत में झामुमो को भी इंट्री करनी पड़ी. ताकि कहीं से शक की कोई गुंजाइश नहीं रहे. दावा किया जाता है कि प्रभात भुइंया को यह समझाने की कोशिश की गयी है कि ममता की चिंता नहीं करें. ममता राजद की मुसीबत है, लेकिन पलामू का फैसला कांग्रेस और झामुमो को करना है. झामुमो के इस आश्वासन के बाद प्रभात भुईयां मन बना चुके हैं.
कौन है प्रभात भुइंया
यहां बता दें कि प्रभात भुइंया की सियासी जीवन की शुरुआत कांग्रेस से हुई, लेकिन बाद के दिनों में ये बाबूलाल के करीब हो गयें, झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर वर्ष 2009 में पलामू से अपनी किस्मत भी आजमाया और 90 हजार वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे. वर्ष 2019 में जब पलामू की सीट झाविमो के खाते से निकल गयी तो प्रभात भुईयां ने कमल की सवारी करने का फैसला कर लिया. प्रभात को यह विश्वास था कि इस बार नहीं तो 2024 में टिकट पक्की है, लेकिन जब इस बार भी भाजपा ने बीडी राम पर दांव लगाने फैसला किया तो प्रभात की हसरतों पर विराम लगता दिखने लगा. प्रभात भुईयां के इस सियासी अवसाद को उनके ट्वीटर एकाउंट से भी समझा जा सकता है, फरवरी माह के बाद प्रभात भुईयां का सोशल मीडिया पर सक्रियता बंद है. साफ है कि बदले सियासी हालात में प्रभात किसी नये किनारे की तलाश में है. वैसे कई सियासी जानकारों का दावा है कि इंडिया गठबंधन में यह सीट सबसे अधिक मुफीद राजद के लिए ही रहेगी. 2004 में मनोज कुमार तो 2006 में घूरन राम को मैदान में उतार कर राजद पहले भी जीत का परचम फहरा चुकी है.
क्या है इस दावे की वजह
इसके पक्ष में तर्क यह दिया जा रहा है कि जिस प्रकार से बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक किये गयें हैं, उसका असर पलामू की राजनीति में पड़ना तय है. वैसे ही पलामू में राजद का मजबूत जनाधार रहा हैं, यदि उसी जनाधार को कांग्रेस और झामुमो के द्वारा मजबूती प्रदान कर दी जाती है तो भाजपा के इस किले को ध्वस्त किया जा सकता है, खासकर तब जब खुद भाजपा के अन्दर भी कई गुट बताये जा रहे हैं. और दावा किया जा रहा है कि 2014 और 2019 में लगातार जीत के बाद भाजपा के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी की झलक देखने को मिल रही है, हालांकि वह एंटी इनकम्बेंसी भाजपा से ज्यादा वर्तमान सांसद बीडी राम के खिलाफ दिखती है
क्या है पलामू का सियासी सामाजिक समीकरण
यहां बता दें कि पलामू लोकसभा में अनुसूचित जाति 27 फीसदी, अनुसूचित जन जाति 11 फीसदी और अल्पसंख्यक 13 फीसदी है. जबकि पिछड़ी जातियों का कोई प्रमाणित डाटा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन स्थानीय पत्रकार अरुण शुक्ला के आकलन के अनुसार पलामू में अल्पसंख्यक करीबन चार लाख, यादव 1.5 लाख, भईयां तीन लाख, रविदास 2.5, ब्राह्मण राजपूत संयुक्त रुप से 1.5 लाख के करीबन है, यदि इस सामाजिक समीकरण के हिसाब से देंखे तो यदि इंडिया गठबंधन संयुक्त रुप से मोर्चा संभालता है तो यह सीट गठबंधन के खाते में आ सकती है, लेकिन यदि वर्ष 2019 में जो चतरा में स्थिति पैदा हुई थी और राजद कांग्रेस के बीच फ्रेंडली फाइट की स्थिति बन गयी, यदि वही स्थिति पलामू में भी बनी तो खेल बिगड़ना भी तय है. क्योंकि प्रभात भुईयां के पक्ष में भुईयां जाति का करीबन तीन लाख आबादी एकमुश्त रुप से खड़ा हो सकती है, इसके साथ ही उसके साथ अल्पसंख्यक, यादव और 11 फीसदी अनुसूचित जाति का साथ मिल सकता है.
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