Ranchi-धनबाद लोकसभा सीट से ढुल्लू महतो की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद से भाजपा के अंदर से विरोध के स्वर गूंजने लगे हैं. विरोध खास कर उन सभी चेहरों की ओर से है, जिन्हें पीएन सिंह की विदाई में अपनी किस्मत संवरती नजर आ रही थी. लेकिन आलाकमान ने तमाम चेहरों को किनारा करते हुए आखिरकार बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो पर दांव लगाने का फैसला किया. बगावत की यह आग सिर्फ राजपूत समाज में ही नहीं, कोर वोटर माना जाने वाला वैश्य समाज से भी उठती दिख रही है. धनबाद जिला मारबाड़ी सम्मेलन अध्यक्ष कृष्णा अग्रवाल का बाबूलाल के नाम चिठ्ठी भी इसी विरोध की प्रतिध्वनी है. धनबाद की सियासत पर पैनी नजर रखने वालों का दावा है कि राजपूत समाज पीएन सिंह की विदाई के बाद किसी राजपूत उम्मीदवार की उम्मीद पाले था. और इसकी वजह है, धनबाद संसदीय सीट पर राजपूत जाति की आबादी. राजपूत समाज का दावा है कि इस लोकसभा सीट पर राजपूत जाति की एक बड़ी आबादी है, बावजूद इसके राजपूत समाज को तरजीह नहीं दी गयी, और यह हालत तब है, जब झारखंड किसी भी दूसरे संसदीय क्षेत्र से क्षत्रिय समाज को टिकट नहीं मिला. जबकि वैश्य समाज को चन्द्रशेखर अग्रवाल में उम्मीद की किरण थी, उधर कायस्थ जाति को राज सिन्हा में अपनी उम्मीद टिकाये था. क्योंकि जयंत सिन्हा की विदाई के बाद झारखंड में कोई भी कायस्थ चेहरा नहीं बचा न था. दरअसल धनबाद संसदीय सीट पर अगड़ी जातियों के बीच मारा-मारी की स्थिति बनी रहती है और सबकी चाहत कोयलांचल के इस शहरी मतदाताओं की बहुलता में अपनी उम्मीद खिलती नजर आती है.
किस सामाजिक समूहों में सेंधमारी करने में कामयाब होंगे सरयू राय
इस बीच पूर्व रघुवर दास से खुनक खाये सरयू राय भी चुनावी अखाड़े में उतरने की तैयारी में है. दावा किया जाता है कि भारतीय जनतंत्र मोर्चा के बनैर तले वह चुनावी अखाड़े में उतर भाजपा को सबक सिखाने की तैयारी में हैं, यहां ध्यान रहे कि धनबाद संसदीय सीट पर सरयू की नजर भी थी, रघुवर दास को राज्यपाल बनाये जाने के बाद सरयू राय भाजपा में वापसी का जुगत भी लगा रहे थें, रघुवर दास के विरोध के कारण सरयू राय को भाजपा में इंट्री नहीं मिली. जिसके बाद नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से चुनावी दंगल में उतरने की रणनीति तैयार की गयी, लेकिन भाजपा किसी भी कीमत पर अपना गढ़ धनबाद को जदयू को सौंपने को तैयार नहीं हुआ, और इस प्रकार जदयू से भी सरयू राय को निराशा हाथ लगी. दावा किया जाता है कि इसी खुनक में अब सरयू राय मैदान में उतरने की तैयारी में हैं. वह लगातार धनबाद में अपने कार्यकर्ताओं के साथ ही तमाम असंतुष्ट चेहरों से सम्पर्क में हैं, जैसे ही बात बनती है, वह चुनावी अखाड़े में उतरने का एलान कर सकते हैं.इस हालत में यह सवाल पैदा होता कि इसका लाभ किसको होगा, निश्चित रुप से सरयू राय की इंट्री के बाद राजपूत मतदातों के साथ ही वैश्य समाज के सामने भाजपा को सबक सिखाने का विकल्प खुल जायेगा. और इसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है. हालांकि रघुवर दास के रहते हुए वैश्य समाज किस हद तक इनके साथ खड़ा होगा, यह एक बड़ा सवाल है, लेकिन राजपूत जाति का एक बड़ा हिस्सा सरयू राय के साथ ख़ड़ा हो सकता है.
पिछड़ी जातियों का काउंटर पोलराइजेशन का खतरा
एक आकलन के अनुसार धनबाद में अनुसूचित जाति-9 फीसदी, आदिवासी-14 फीसदी, मुस्लिम-16 फीसदी, कुर्मी महतो-8 फीसदी है. इस हालत में यदि भाजपा का कोर वोटर माने जाना वाला राजपूत जाति का सरयू राय के साथ खड़ा होने का फैसला करता है तो इसका नुकसान भाजपा को हो सकता है, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि यदि पिछड़ी जातियों के बीच यह मैसेज गया कि पिछडी जाति के उम्मीदवार घोषित करने के कारण ही तमाम ऊंची जातियों में नाराजगी है, तो पिछड़ी जातियों के बीच काउंटर पोलराइजेशन की स्थिति बन सकती है. खासकर उस स्थिति में जब धनबाद में पहले से ही बाहरी भीतरी की आग तेज है. सरयू राय के चेहरे के इर्द गिर्द पिछड़ी जातियों की गोलबंदी तैयार होगी, इस पर संदेह है, कुल मिलाकर सरयू राय अपर कास्ट वोटरों को अपने पाल में जरुर खड़ा कर सकते हैं, लेकिन वैश्य समुदाय में सेंधमारी होती नजर नहीं आती.
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