Ranchi- अभी भाजपा सांसद रमेश विधड़ी के द्वारा संसद में की गयी अमार्यादित टिप्पणी के बाद सियासी माहौल ठंडा भी नहीं पड़ा था कि इधर झारखंड में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने यह ट्वीट कर राजनीतिक पारा हाई कर दिया है कि अब शिशुपाल का समय बेहद नजदीक आ गया है. हालांकि निशिकांत के निशाने पर कौन है, इसका कोई साफ संकेत नहीं है, लेकिन जानकारों का मानना है कि निशिकांत का शिशुपाल और कोई नहीं स्वयं सीएम हेमंत है, जिस प्रकार ईडी के साथ उनका मुठभेड़ जारी है, जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक एक के बाद एक मोर्चा खोला जा रहा है. उससे इस कयास को बल मिल रहा है.
शिशुपाल बध से निशिकांत का अभिप्राय क्या है?
लेकिन बड़ी बात यह है कि शिशुपाल बध से निशिकांत का अभिप्राय क्या है, क्या ईडी सीएम हेमंत के खिलाफ कोई अंतिम कार्रवाई करने वाली है, क्या इस संघर्ष की अंतिम परिणति उनकी गिरफ्तारी से होने वाली है, और यदि ऐसा ही है, तो उससे बड़ा सवाल यह है कि निशिकांत को ईडी के सभी संभावित कार्रवाईयों की जानकारी कौन दे रहा है? और यदि यह सत्य है तो फिर सीएम हेमंत की इस आशंका और आरोप में तो दम नजर आने लगता है कि ईडी की यह पूरी कार्रवाई स्वत: स्फूर्त नहीं होकर राजनीतिक दबाव का नतीजा है, और जो कुछ हो रहा है उसका सीधा आदेश दिल्ली से दिया जा रहा है और यह कोई पहली घटना नहीं है, इसके पहले ही जब खनन लीज मामले में मामला चुनाव आयोग की दहलीज कर जा पहुंचा था, तब भी चुनाव आयोग की तरफ से मुख्य प्रवक्ता निशिकांत ही बनते नजर आने लगे थें, यहां तक की चुनाव आयोग की चिट्ठी में क्या है, वह इसका भी संकेत देने की कोशिश कर रहे थें, हालांकि उनके सभी दावे हवा हवाई साबित हुए, और सीएम हेमंत ने राजनीतिक कौशल का परिचय देते हुए उस चक्रव्यूह को जमींदोज कर दिया.
क्या है सीएम हेमंत की रणनीति
तब क्या यह माना जाय कि इस बार भी सीएम हेमंत इस राजनीतिक बवंडर से निकलने की रणनीति तैयार कर चुके हैं. कुछ कुछ लगता तो ऐसा ही है, जिस प्रकार उनके द्वारा ईडी के समन को हाईकोर्ट के बजाय सीधे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी और वहां वकील की बीमारी का बहाना बना कर मामला को इनकी ओर से ही टालने की कोशिश की गयी, और अब याचिका खारिज होने के बाद एक बार फिर से अंतिम समय में होईकोर्ट में गुहार लगाकर ईडी के सामने चुनौती पेश कर दी गयी है. साफ है कि अभी यह लड़ाई हाईकोर्ट में लड़ी जायेगी और हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में गुहार लागने का विकल्प खुला है, जिसके बाद एक बार फिर से लम्बी सियासी और कानूनी लड़ाई का श्रीगणेश हुआ.
सीएम हेमंत की गिरफ्तारी के बाद भाजपा के खिलाफ आदिवासी समाज में बढ़ सकती है नाराजगी
इस हालत में यह मानने का पर्याप्त कारण है कि हेमंत सोरेन के कानूनी सलाहकारों को इस बात का अंदाजा था, सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई करने से इंकार करने वाला है और उसके द्वारा हाईकोर्ट में अपील करने की सहाल दी जा सकती है और यह सब कुछ महज टाईम टेकिंग एक्टविटी थी, सीएम हेमंत का कानूनी सलाहकारों की कोशिश इस मामले को लोकसभा चुनाव की घोषणा होने तक टालने का है, और उस अंतिम समय में यदि ईडी सीएम हेमंत को गिरफ्तार करती है, तो इस सहानुभूति का लाभ लोकसभा चुनाव के दौरान उठाने की भरपूर कोशिश की जायेगी.
झामुमो के हाथ में लग सकता है सियासी तुरुप का पत्ता
क्योंकि सीएम हेमंत की गिरफ्तारी के बाद भी सरकार की सेहत पर तो कोई असर नहीं पड़ना है, सिर्फ मुख्यमंत्री का चेहरा बदलना है, लेकिन झामुमो के हाथ में एक बड़ा तीर हाथ लग जायेगा, सीएम हेमंत की गिरफ्तारी को आदिवासी समाज का अपमान बताकर इसकी सियासी फसल काटी जायेगी औरल यह झारखंड की जमीन पर भाजपा की बची खुची आशाओं पर तुषारापात होगा, तब क्या शिशुपाल बध की तैयारी कर भाजपा झामुमो के चक्रव्यूह में फंसने की तैयारी कर चुकी है.
हालांकि फिलहाल भाजपा इस बयान को निशिकांत का निजी बयान बताकर पल्ला छाड़ रही है, लेकिन इतना साफ है कि भाजपा के अन्दर सीएम हेमंत का राजनीतिक वध करने की छटपटाहट है, बेचैनी है, लेकिन सवाल यह है कि इस शिशुपाल वध से भाजपा के हाथ क्या लगेगा, कहीं उसकी बची खुची जमीन भी हाथ से निकल नहीं जाय? साफ है कि शिशुपाल वध को बेहद आसान है, लेकिन इसके बाद जो झारखंड की राजनीति में राजनीतिक बवंडर खड़ा होगा वह भाजपा आत्मधाती साबित होगा.
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