Ranchi-20 मई को पांचवें चरण में हजारीबाग, कोडरमा और चतरा के साथ ही गांडेय विधान सभा उपचुनाव का मतदान भी होना है. इस चुनावी अखाड़े में जहां एक तरफ पूर्व सीएम हेमंत की पत्नी और झारखंड में इंडिया गठबंधन का सबसे बड़े चेहरे के रुप में सामने आयी कल्पना सोरेन सियासी अखाड़े में पसीना बहाती नजर आ रही है, वहीं भाजपा दिलीप वर्मा को अखाड़े में उतार कर दंगल में वापसी का दावा ठोक रही है. बावजूद इसके भाजपा का पूरा फोकस लोकसभा चुनाव पर ज्यादा नजर आ रहा है, विधान सभा चुनाव के लिए प्रचार-प्रसार की पूरी कमान दिलीप वर्मा के आसपास ही सिमटा नजर आ रहा है. हालांकि सीता सोरेन से लेकर बाबूलाल मरांडी की सभा तो जरुर हुई है, लेकिन उनका पूरा जोर लोकसभा चुनाव पर था. जबकि दूसरी ओर कल्पना सोरेन के लिए तेजस्वी यादव से लेकर खुद सीएम चंपाई भी मोर्चा संभालते दिख रहे हैं.
कल्पना सोरेन की पहचान भावी सीएम के रुप में
यदि हम वर्तमान सियासी हालात की बात करें तो मतदाताओं के बीच एक आमधारणा यह भी है कि यदि कल्पना की जीत होती है, तो गांडेय विधान सभा से पहली बार कोई सीएम की कुर्सी तक पहुंच सकता है और यही कल्पना सोरेन की सबसे मजबूत कड़ी मानी जाती है. शायद, यही कारण है कि खुद कल्पना सोरेन भी सीएम बनने की अपनी संभावना को पूरी तरह से खारिज भी नहीं कर रही है. सब कुछ पार्टी नेतृत्व पर सौंप कर वह एक प्रकार से गांडेय के मतदाताओं के बीच पसरती इस आम धारणा को खंडित नहीं करना चाहती.
गांडेय में विकास की लकीर बढ़ाने का दावा
अब इसी धारणा को और भी पुष्ट करते हुए कल्पना सोरेन सोशल मीडिया एक्स पर लिखती है कि “तकदीर भी बदलेगी, तस्वीर भी बदलेगी, जन आशीर्वाद से गांडेय में विकास की लकीर भी बढ़ेगी” साफ है कि कल्पना सोरेन की रणनीति मतदाताओं बीच अपनी भावी सीएम की छवि को और भी दुरुस्त करने की है, विकास का नई लकीर गढ़ने का दावा कुछ कुछ इसी ओर इशारा कर रहा है. यहां ध्यान रहे कि गांडेय विधान सभा की सामाजिक संरचना भी काफी हद तक कल्पना सोरेन के अनुकूल है, यहां करीबन 38 फीसदी आदिवासी, 15 फीसदी- यादव, पांच फीसदी- कोयरी, पांच फीसदी मुस्लिम के साथ ही अपर कास्ट की आबादी करीबन 10 फीसदी है. कल्पना सोरेन की कोशिश आदिवासी, यादव और मुस्लिम के सहारे इस सियासी संग्राम में विजय हासिल करने की है, वहीं दिलीप वर्मा को 10 फीसदी अपर कास्ट और करीबन पांच फीसदी कोयरी मतदाताओं की गोलबंदी की आस है, लेकिन क्या कुशवाहा मतदाता इस बार भाजपा के साथ उसी मजबूती के साथ खड़ा होंगे, इस पर भी सवाल है, दूसरी चुनौती अर्जुन बैठा की है. जिस तरीके से अंतिम समय में अर्जुन बैठा ने आजसू का साथ छोड़कर निर्दलीय मैदान में कूदने का एलान किया है, इसके कारण दावा दलित जातियों में भी सेंधमारी का खतरा मंडराने लगा है. और इसका नुकसान दोनों ही खेमे को हो सकता है.
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