पटना(PATNA): - जदयू के टिकट पर एक रिक्शा चालक से सोनवर्षा से तीसरी बार विधायक बने रत्नेश सदा 16 जून को नीतीश कैबिनेट में शामिल होंगे. महागठबंधन से जीतन राम मांझी की विदाई के बाद से ही जदयू उस चेहरे की तलाश में थी, जिसके कि जीतन राम मांझी के साथ छोड़ने की क्षतिपूर्ति को रोका जा सके. या उस झटके को कम से कम किया जा सके. जदयू की यह खोज रत्नेश सदा में पूरी हुई, रत्नेश सदा को सामने लाकर जदयू ने यह साबित करने की कोशिश की है कि जीतनराम मांझी मुसहर समुदाय के इकलौते नेता नहीं है, जदयू और महागठबंधन के पास इस समुदाय से कई दूसरे चेहरे भी मौजूद हैं.
स्नातक होने के बावजूद भी रिक्शा परिचालन का काम करते थें रत्नेश सदा
याद रहे कि स्नातक होने के बावजूद अपने प्रारम्भिक दिनों में रत्नेश सदा रिक्शा चला कर अपनी जीविकोपार्जन करते थें. उनके पिता रिक्शा का भी यही पेशा था. परिवार की आर्थिक स्थिति काफी तंगहाल थी. विचारधारा के स्तर पर कबीरपंथी रत्नेश सदा बहुत अच्छे वक्ता भी है. लेकिन इस बीच वह जदयू से जुड़ कर राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हो गयें. उनके राजनीतिक सक्रियता की शुरुआत वर्ष 1987 से होती है. जदयू में विभिन्न जिम्मेवारियों का निर्वाह करते करते वर्ष 2010 में इन्हे सोनवर्षा से विधान सभा का टिकट दिया गया, आज वे सोनवर्षा से तीसरी बार विधायक है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार आज के दिन उनकी संपत्ति करीबन 1.30 करोड़ की है.
जीतन राम मांझी पर साधा निशाना
मंत्री बनने के पहले ही रत्नेश सदा ने अपनी जिम्मेवारियों का निर्वाह करना शुरु कर दिया है. स्वाभाविक रुप से उनके निशाने पर पूर्व सीएम जीतन राम मांझी है, जीतन राम मांझी को भेडिया बताते हुए रत्नेश ने कहा है कि जीतन राम मांझी ने कभी भी मुसहर समाज के लिए कोई काम नहीं किया, उनकी राजनीति सिर्फ अपने परिवार के इर्द गिर्द घुमती रही.
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