रांची(RANCHI): पांच राज्यों का घमासान की समाप्ति और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय के रुप में एक आदिवासी चेहरा सामने आने के बाद लंबी खामोशी के बाद अचानक से ईडी ने सीएम हेमंत को अपना छठा समन भेज दिया है, सीएम हेमंत को कल ही ईडी दफ्तर में बुलाया गया है. और इसके बाद एक फिर से झारखंड की सियासी फिजा में आरोप-प्रत्यारोप की बौछार शुरु हो गयी है और सियासी गलियारों में यह सवाल भी उमड़ने लगा है कि आखिर पांच राज्यों में मचे घमासान के बीच ईडी खामोश क्यों थी?
क्या इस खामोशी के पीछे किसी अदृश्य सत्ता का इशारा था
क्या इस खामोशी के पीछे किसी अदृश्य सत्ता का इशारा था, क्या वह अदृश्य सत्ता पांच राज्यों में अपनी सियासी जमीन को टटोलने की कोशिश कर रही थी, क्या चुनाव परिणामों ने यह साफ कर दिया है कि एक्जिट पॉल में जो हवा बनायी जा रही थी, उसके उल्ट जमीन पर एक दूसरी सियासी हवा तैर रही थी. और क्या उस अदृश्य सत्ता को जैसे ही इस बात का एहसास हो गया कि अभी तो उसकी जमीन बची हुई है, वह एक बार फिर से अपनी पूरी ताकत के साथ बैटिंग करने को उतारु हो गया? सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि क्या पांच राज्यों के बीच इस युद्ध को विराम इसलिए दिया गया था, ताकि यदि चुनाव परिणाम विपरीत आये, तो इस युद्ध विराम को एक शांति का प्रस्ताव में तब्दील कर एक नयी युगलबंदी तैयार की जा सके, लेकिन जैसे ही यह एहसास हुआ कि नहीं अभी तो जमीन पर मजबूत है, उसके बाद इस युद्ध को नये सिरे और नये पैतरे के साथ शुरु करने का सिंहनाद कर दिया गया.
पांचवी अनुसूची वाले इलाके में एकलौता आदिवासी सीएम
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि खुद हेमंत सोरेन इस बात दावा करते रहे हैं कि पांचवी अनुसूची वाले इलाके में वह एकलौता आदिवासी सीएम है, और उनका यह आदिवासी चेहरा भाजपा को पसंद नहीं है, और इसी खीज में एक राजनीतिक साजिश के तहत उन्हे समन दर समन भेज कर जलील करने की साजिश की जा रही है, और यह जलालत किसी सीएम का नहीं है, हेमंत का तो कदापी नहीं है, यह जलालत तो आदिवासी-मूलवासियों के आत्म सम्मान का है. लेकिन झारखंड के ठीक पड़ोस में ही एक आदिवासी चेहरे पर दांव लगाकर भाजपा ने सीएम हेमंत की इस दलील पर पानी फेर दिया?
छत्तीसगढ़ में एक आदिवासी चेहरा को सामने और सीएम हेमंत को समन जारी करना
यहां यह याद रखना बेहद जरुरी है कि कल ही छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय को सीएम बनाने की घोषणा हुई है, और इसके साथ ही पहली बार भाजपा किसी आदिवासी को सीएम बनाने जा रही है, नहीं तो अब तक उसके जितने भी राज्यों में शासन है, सभी चेहरे सामान्य जाति के थें, हां, शिवराज मामा उसके एक अपवाद जरुर थें. और इसके साथ यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या विष्णुदेव साय की ताजपोशी महज सीएम हेमंत के उस दावे को धरासायी करने के लिए किया गया, और सवाल यह भी है कि कल ही एक आदिवासी चेहरे की ताजपोशी और कल ही दूसरे आदिवासी चेहरो को ईडी का नोटिस के बीच में कोई अंतर्संबंध हैं. क्या यह माना जाय कि भाजपा का यह सुनियोजित फैसला है, और भाजपा ने सीएम हेमंत के सारे आरोपों का काट ढूंढ़ लिया है.
लेकिन अब यह कहानी बदलती नजर आ रही है
अब यदि हम इन सवालों को एक साथ खड़ा कर समझने की कोशिश करें, अब तक सीएम हेमंत की एक रणनीति इस सवाल को खड़ा कर आदिवासी-मूलवासियों का सहानुभूति प्राप्त करने की थी. यह दिखलाने की कोशिश की थी कि देखो, एक आदिवासी होने के कारण उसे किस हद तक जलील किया जा रहा है, सीएम हेमंत यह मान कर चल रहे थें कि उनकी गिरफ्तारी के बाद आदिवासी-मूलवासी मतों का एक बड़ा भाग उनके साथ खड़ा हो जायेगा, और इस लहर में वह भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर देंगे. और शायद अब तक भाजपा को पीछे हटने का कारण भी यही था, लेकिन अब यह कहानी बदलती नजर आ रही है, भाजपा के हाथ सीएम हेमंत के खिलाप एक तुरुप का पता मिल चुका है, और वह उस तुरुप के इस पते को झारखंड में खूब भंजायेगी.
क्या अब भी आदिवासी मूलवासी समाज सीएम हेमंत के साथ खड़ा नजर आयेगा
लेकिन बड़ा सवाल है यह है कि क्या आदिवासी-मूलवासी समाज अभी भी सीएम हेमंत के पक्ष में उतनी ही मजबूती के साथ खड़ी रहेगी, या विष्णुदेव के चेहरे के सामने सब कुछ बदलता चला जायेगा. इस सवाल का अभी कोई सीधा जवाब नहीं दिया सकता, यह बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि सीएम हेमंत की अब बैटिंग किस दिशा में जाती है, और पार्टी उनके साथ किस मजबूती के साथ खड़ी रहती है, यदि पार्टी के अंदर से ही एक आवाज तेज हो गयी तो निश्चित रुप से सीएम हेमंत को परेशानी का सामना करना पड़ा सकता है, और आज के दिन यह नहीं कहा जा सकता है कि पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक है, विरोध और बगावत के स्वर मंद भले हुए है, लेकिन हाशिये पर रह कर भी वह मजबूती के साथ अपने पैर जमाये हुए हैं.
क्या कहानी खत्म हो चुकी है
हालांकि एक सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या सीएम हेमंत कल ईडी दफ्तर जायेंगे, या हाईकोर्ट के फैसले खिलाफ वह एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में अरजी लगायेंगे. क्योंकि अभी भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा उनके लिए बंद नहीं हुआ है, देखना होगा कि कल हेमंत सोरेन निर्णय क्या लेते हैं, लेकिन इतना तो साफ है कि झारखंड की सियासी फिजा में अब कई कहानियां एक साथ तैरती नजर आयेगी.
आप से भी पढ़ सकते हैं
4+