Ranchi-लोकसभा चुनाव के पहले झारखंड कांग्रेस एक नयी उर्जा से भरी नजर आ रही है, हालांकि यह उर्जा कितनी और बोझ कितना यह एक अलग बहस का विषय है. लेकिन पहले जेपी पटेल और अब गिरिडीह से पांच बार के सांसद रहे रवीन्द्र पांडे और रांची संसदीय सीट पर पांच बार कमल खिला चुके राम टहल चौधरी का कांग्रेस में इंट्री की खबरों पर सियासी गलियारों में इस बात पर बहस तेज हो चुकी कि इन चुके तीरों को अपने साथ खड़ा कर आखिर कांग्रेस हासिल करना चाहती है. क्या अपने समय के इन सियासी सुरमाओं में इतनी जान बाकी है कि वह हांफते कांग्रेस को अपने सामाजिक समीकरण के बूते संजीवनी प्रदान कर सकें या फिर टिकट की आस में लगता यह जमघट आने वाले दिनों में कांग्रेस की नयी मुसीबत बनने वाले हैं. ध्यान रहे कि रवीन्द्र कुमार पांडे वर्ष 1996, 1998,1999, 2009 और 2014 में गिरिडीह से सांसद रहे हैं. लेकिन 2019 में गिरिडीह सीट आजसू के खाते में चली गयी, और जिसके बाद रवीन्द्र पांडे लगातार सियासी छटपटाहट से गुजर रहे हैं. कभी कोडरमा से भाग्य आजमाने के दावा किया जाता है, तो कभी गिरिडीह से ताल ठोकने की हुंकार लगायी जाती है और अब खबर है कि धनबाद लोकसभा से सियासी अखाड़े में उतरने की तैयारी है और इसी सियासी मंशा के तहत कांग्रेस की सवारी करने वाले हैं. दूसरी खबर राम टहल चौधरी को लेकर है, वह भी रांची लोकसभा से पांच-पांच बार कमल की सवारी कर संसद पहुंच चुके हैं. लेकिन 2019 में भाजपा ने इनकी सियासी पारी को विराम देते हुए संजय सेठ को मैदान में उतारने का फैसाल किया. जिसके बाद रामटहल चौधरी कभी जदयू तो कभी कांग्रेस में अपना सियासी भविष्य खंगाल रहे हैं. बताया जा रहा है कि पिछले कुछ दिनों से वह दिल्ली में डेरा डाले हैं और किसी भी वक्त पंजे की सवारी का एलान किया जा सकता है. राम टहल चौधऱी की चाहत पंजे की सवारी कर रांची के सियासी अखाड़े में उतरने की है. यहां बता दें कि रवीन्द्र कुमार पांडे की उम्र 65 तो राम टहल चौधरी की उम्र 82 से पार हो चुकी है, बावजूद इसके दोनों के अंदर सियासी हसरतें बाकी हैं.
सियासत के इन सुरमाओं की इंट्री से कांग्रेस को कितना लाभ
लेकिन सवाल यह है कि इन दोनों की इंट्री से कांग्रेस का लाभ क्या होगा, रामटहल चौधरी के बारे में दावा किया जात है कि उनके चेहरे को आगे कर कांग्रेस रांची संसदीय सीट पर 15 फीसदी कुर्मी मतदाताओं को अपने पाले में ला सकती है, यही दावा रविन्द्र पांडे के बारे में किया जा रहा है, बताया जाता है कि रवीन्द्र पांडे के चेहरे को आगे कर कांग्रेस की कोशिश धनबाद में अपर कास्ट मतदाताओं को अपने पाले में लाने की है, लेकिन क्या ये दोनों चेहरे अब यह सियासी कुब्बत रखते भी है कि उनके इर्द गिर्द एक सामाजिक समीकरण तैयार हो सके. और खासकर तब जब धनबाद में भाजपा पहले ही ढुल्लू महतो के चेहरे को आगे कर पिछड़ा कार्ड खेल चुकी है, याद रहे कि जयराम की इंट्री के बाद धनबाद में बाहरी भीतरी का खेल अपने चरम सीमा है, इस हालत में रविन्द्र पांडे की इंट्री से इंडिया गठबंधन की उलझने कम होने के बजाय और भी उलझ सकती है. रही बात राम टहल चौधरी की तो निश्चित रुप से उनके पीछे एक मजबूत सामाजिक आधार है, कुर्मी मतदाताओं का धुर्वीकरण की संभावना है, लेकिन यहां यह भी याद रहे कि राम टहल चौधरी अपने जीवन के 82 बसंत देख चुके हैं. क्या उस हालत में वह शहरी युवाओं की पंसद बनेंगे, हालांकि कांग्रेस की दुविधा यह है कि उसके पास आज के दिन रांची में कोई कद्दावर सियासी चेहरा नहीं है, जिस सुबोध कांत पर दांव लगाने की बात कही जा रही है, वह खुद भी 75 पार कर चुके हैं. यानि उनकी उम्र भी रिटायरमेंट की हो चुकी है. अब 75 पार सुबोध कांत पर 82 पार राम टहल चौधरी को तरजीह देकर कांग्रेस कौन का समीकरण साधना चाहती है, एक बड़ा सवाल है. हालांकि बीच में रामटहल चौधऱी की ओर से अपने बेटे को मैदान में उतारने की बात कही जा रही थी, और यदि ऐसा होता है, तो यह एक बेहतर रणनीति होगी. खास कर उस हालत में जब कांग्रेस पूरे झारखंड के साथ ही रांची में चेहरे की किल्लत से जुझ रही है.
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