Ranchi-सियासत की पिच पर कब कौन सी गेंद विकेट को हिट करे और बल्लेबाज कौन की गेंद पर छक्का मार गेंदबाज की हवा निकाल दें, इसका आकलन एक बेहद जोखिम भरा काम है. इस बार पलामू के अखाड़े में कुछ यही हालत पूर्व राजद सांसद घुरन राम की बनती दिख रही है. कमल की आस में घुरन राम ने जिस गरमजोशी के साथ भाजपा का दामन थामा था, बीडी राम के हाथ कमल का चुनाव चिह्न जाते ही घुरन राम की हालत “आये थें हरी भजन को औटन लगे कपास” की पुरानी कहावत को चरितार्थ करती नजर आ रही है. ध्यान रहे कि अब जो खबर निकल कर सामने आ रही है. उसके अनुसार घुरन राम भाजपा के इस फैसले से बेहद आहत हैं. कहां तो उन्हे बीडी राम की छुट्टी कर पलामू के अखाड़े में उतारने का शब्दबाग दिखलाया गया था और कहां अब बीडी राम की नैया पार लगाने की जिम्मेवारी सौंपी जा रही है. इस बात का भरोसा दिलाने की कोशिश की जा रही है कि इस बार ना सही, अगली बार टिकट मिलना तय है. लेकिन सियासत का ककहरा पढने वाला भी यह जानता है कि राजनीति की इस बेदर्द दुनिया में वादों का कोई मतलब नहीं होता. कब कौन सी हवा में चल जाये और सियासत कौन सी धार सारे वादों को उलट पलट जाये कुछ कहा नहीं जा सकता.
इंडिया गठबंधन का चेहरा कौन?
लेकिन उससे भी मुश्किल सवाल तो इंडिया गठबंधन के सामने खड़ा है. एक तरफ इंडिया गठबंधन का सबसे बड़ा घटक दल होने का दंभ भरती कांग्रेस अपने हिस्से में अधिक से अधिक सीटों की चाहत रखती है. लेकिन इन सीटों पर उसका उम्मीदवार कौन होगा? यह सवाल खड़ा करते ही सन्नाटा पसरने लगता है. पलामू में भी कांग्रेस की हालत कुछ ऐसी है. इस संसदीय सीट पर कांग्रेस अपना दावा तो जरुर ठोक चुकी है. लेकिन सियासी जानकारों का मानना है कि आज के दिन कांग्रेस के पास एक भी ऐसा चेहरा नहीं है. जिसके बुते चुनावी अखाड़े में जीत का परचम फहराना तो दूर कम से कम मुकाबले में खड़ा रहने की स्थिति में भी हो. दूसरी तरफ बीडी राम के प्रति जमीन पर नाराजगी के बावजूद भाजपा के पास पीएम मोदी का चेहरा है, और यदि बीडी राम किसी तरह संसद की दहलीज तक पहुंचने में कामयाब होते हैं, तो इसका सबसे बड़ा क्रेडिट पीएम मोदी का होगा. क्योंकि पिछले दस बरस से सांसद रहने के बावजूद बीडी राम ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिसके बुते वह मतदाताओं के बीच जाकर अपने लिए वोट की मांग कर सकें. इस हालत में बीडी राम के लिए बस मोदी गान ही वह सियासी मंत्र है, जिसके आसरे दिल्ली का रास्ता खुलन की संभावना दिख रही
है.
चेहरे के संकट के जुझती कांग्रेस को काम आ सकता है राजद की उधारी
लेकिन यहां सवाल तो इस बात का है कि बीडी राम की तीसरी पारी को रोकने के कांग्रेस के पास चेहरा कौन है. खबर है कि चेहरों के संकट से जुझती कांग्रेस इस बार बिहार से मीरा कुमार को पलामू लाकर चुनाव लड़ाने की तैयारी में है, अब कांग्रेस का यह प्रयोग कितना सफल होगा, यह तो लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद ही पत्ता चलेगा, लेकिन सियासी जानकार मीरा कुमार की इंट्री को बीडी राम के लिए फतह का रास्ता साफ करने की तैयारी मान रहे हैं. हालांकि कांग्रेस का एक खेमा हजारीबाग से संजय पासवान को पलामू लाकर चुनाव लड़ाने की पैरवी करता नजर आ रहा है. संजय पासवान हाउंसिग बोर्ड से जुड़े रहे हैं. एक और चहेरा पलामू 20 सूत्री उपाध्यक्ष विमला कुमारी का भी है. एक तीसरा नाम भी हजारीबाग से आने वाले वाले भीम कुमार का भी है. लेकिन इसमें से कोई भी चेहरा ऐसा नहीं है जो सियासी अखाड़े में कमल का सामना कर सके. इस हालत में कांग्रेस के अंदर राजद से उधारी लेने की चर्चा भी चल रही है, खबर है कि कांग्रेस की नजर राजद के मनोज कुमार से लेकर कामेश्वर बैठा पर भी है. यहां याद रहे कि वर्ष 2009 में कामेश्वर बैठा ने यहां झामुमो की टिकट राजद के घुरन राम को मैदान से बाहर कर दिया था. अब वही कामेश्वर राम राजद के साथ खड़े हैं. राजद के पास एक और भी मजूबत चेहरा छतरपुर विधान सभा सीट से पांच-पांच बार विधायक रहे राधा कृष्ण किशोर का भी है. दावा किया जाता है कि मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने उन्हे पलामू संसदीय सीट का ऑफर के साथ ही राजद में इंट्री करवायी थी. लेकिन कांग्रेस की जिद के कारण यह सीट कांग्रेस के पास जाती दिख रही है. अब देखना होगा कि इस उहोपोह के बीच पलामू में इंडिया गठबंधन का चेहरा कौन होता है, मीरा की इंट्री या विमला कुमारी के आसरे लड़ाई लड़ने का रस्म निभाई जाती है, या फिर राजद की उधारी के साथ इस लड़ाई को एक दिलचस्प मोड़ पर खड़ा किया जाता है. क्योंकि यह बाजी तो भाजपा के हाथ जाती दिखने लगी है.
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