रांची(RANCHI)- रांची के पूर्व डीसी और समाज कल्याण विभाग के मौजूदा सचिव छवि रंजन, बड़ागांई सीआई भानू प्रताप और दूसरे अन्य छह: आरोपियों के बाद अब सेना जमीन घोटाले में कोलकत्ता के सब रजिस्ट्रार त्रिदीप मिश्रा की गर्दन भी फंसती नजर आ रही है. ईडी के द्वारा समन किये जाने के बाद त्रिदीप मिश्रा रांची पहुंच चुके हैं और उनसे पूछताछ जारी है.
सभी फर्जी दस्तावेजों को कोलकत्ता निबंधन कार्यालय में ही तैयार किया गया था
ध्यान रहे कि इस मामले में एक आरोपी अफसर अली को फर्जी दस्तावेज तैयार करने का उस्ताद माना जाता है, रिम्स रांची में कार्यरत अफसर अली के बारे में दावा किया जाता है कि किसी की भी जमीन का फर्जी दस्तावेज चुटकियों में तैयार कर लेता है, सेना जमीन घोटाले में सारी फर्जी दस्तावेज इस अफसर अली के द्वारा कोलकत्ता निबंधन कार्यालय में तैयार किया गया था.
फर्जी दस्तावेज में एतिहासिक भूलों की भरमार
मजेदार बात यह रही कि सेना की इस जमीन का फर्जी दस्तावेज तैयार करने के दौरान अफसर अली के द्वारा कई एतिहासिक भूल कर दी गयी. दावा किया गया कि इस जमीन की खरीद आसनसोल के प्रदीप बागची के परिजनों के द्वारा वर्ष 1932 में की गयी थी. जबकि प्रदीप बागची के द्वारा जमीन पर अपने दावे के समर्थन में जो कागजात उपलब्ध करवाये गयें, उसमें कोलकत्ता को पश्चिम बंगाल का हिस्सा बताया गया है. जबकि पश्चिम बंगाल देश विभाजन के बाद 1947 में अस्तिव में आया था. फिर जमीन के दस्तावेज में कोलकत्ता को पश्चिम बंगाल का हिस्सा किस आधारा पर बताया गया? इसके साथ ही दस्तावेज का फर्जी होने का संदेह पैदा हो गया.
पिन कोड की शुरुआत 1972 में हुई, तो दस्तावेज में इसका जिक्र कैसे हुआ?
इसके साथ ही जमीन के दस्तावेज में क्रेता विक्रेता और गवाहों के पते की पहचान के लिए पिन कोड का भी उल्लेख किया गया है. जबकि पिन कोड की शुरुआत 15 अगस्त 1972 को हुई थी. फिर दस्तावेज में पिन कोड का जिक्र कैसे हुआ? इस ऐतिहासिक चमत्कार को कैसे अंजाम दिया गया?
जमीन के दस्तावेज में भोजपुर जिले की चर्चा कैसे?
इसके साथ ही जमीन के दस्तावेज में एक और रोचक इतिहास की हेराफरी है. दस्तावेज में गवाहों को बिहार के भोजपुर जिले का बताया गया है, अब 1932 में भोजपुर जिला के रुप में अस्तित्व में आया ही नहीं था, एक जिला के रुप में भोजपुर 1972 में अस्तित्व में आया, इसके पहले यह शाहाबाद जिला का हिस्सा था. वर्ष 1972 में शाहाबाद को दो हिस्सों में बांटकर भोजपुर और रोहतास का निर्माण किया गया.
इन सारे सवालों का जवाब त्रिदीप देना होगा त्रिदीप मिश्रा को
चूंकि सारे फर्जी दस्तावेजों का तार कोलकत्ता निबंधन कार्यालय से जुड़ा है, यही कारण है कि ईडी की नजर कोलकत्ता के सब रजिस्ट्रार पर टेढ़ी है. ईडी की कोशिश त्रिदीप मिश्रा के सहारे सेना जमीन घोटाले के कई अनजान पहलूओं को सामने लाने की है. निश्चित रुप से त्रिदीप मिश्रा को ईडी के कई टेढ़े सवालों का जवाब देना होगा और यदि उनके द्वारा इन सवालों का कोई माकूल जवाब नहीं दिया जाता है तो गर्दन फंसनी तय है.
4+