Ranchi- आज राजधानी रांची की हवा में एक अजीब सी बेचैनी पसरी नजर आती है, आम शहरियों में झामुमो कार्यकर्ताओं के इस आगवन को अजीब सी नजरों से देखा जा रहा है, मानो वह पूछ रहे हो कि पूछताछ तो ही होनी है, फिर यह काफिला क्यों? दरअसल राजधानी में बसे आम शहरियों की भाषा और मुद्दे सड़क पर उतर प्रतिरोध की आवाज तेज करते झामुमो कार्यकर्ताओं से बिल्कुल अलग है, आम शहरियों को मुद्दे बढ़ती मंहगाई, सड़क, बिजली, पानी की सुचारु आपूर्ति और बहुत हद तक कमर तोड़ मंहगाई है, हालांकि ये तमाम मुद्दें सड़क पर उतर कर अपनी असहमति दर्ज कराते कार्यकर्ताओं का भी है, लेकिन उनके लिए उसके बड़ा सवाल एक निर्वाचित सरकार के मुखिया को परेशान करने का है.
सियासी रंजीश में हेमंत सरकार को परेशान करने का आरोप
उनका मानना है कि उनके राज के मुखिया को, जो उनकी पार्टी का एक बड़ा चेहरा भी है, जो उनकी भी भाषा बोलता है, उनके ही मुद्दे को सियासत के केन्द्र में रखता है, उनकी जल जंगल और जमीन की बात करता है, नाहक ही परेशान किया जा रहा है, क्योंकि अभी तो सीएम हेमंत के खिलाफ कोई मामला दर्ज भी नहीं किया गया है, सिर्फ आरोप लगे हैं, तो क्या महज आरोपों के आधार पर किसी सरकार को इस कदर परेशान किया जा सकता है, क्या सिर्फ आरोपों के आधार पर एक दो नहीं पूरे के पूरे आठ समन भेजा जा सकता है, और यदि भेजा जा सकता है, तो देश के दूसरे नेता तो केन्द्र की सत्ताधारी दल के साथ है, जिनके खिलाफ मामले भी दर्ज हो चुके हैं, सार्वजनिक रुप से खुद प्रधानमंत्री के द्वारा जिन्हे भ्रष्टाचार का प्रतिक बताया गया, नाम ले लेकर उन्हे लूटेरा बताया है, आज प्रधानमंत्री और भाजपा उसी पार्टी के नेताओं के साथ सत्ता की मलाई तोड़ते क्यों नजर आ रहे हैं.
हेमंत से क्या दिक्कत है?
और शायद यही कारण है कि “हेमंत है तो हिम्मत है” का जो नारा चुनाव के समय झारखंड की गलियों में गुंज रहा था, अब उस नारे से आगे जाकर हेमंत से क्या दिक्कत है, का सिंहनाद हो रहा है, सवाल दावा किया जा रहा है कि कितने हेमंत को जेल के सिंखाचों के पीछे ढकेलोगे, यहां तो हर घर में हेमंत तैयार है, मोरहाबादी मैदान हो या सीएम आवास के आसपास का इलाका, या फिर बस स्टैंड हर जगह आपको हरे झंडे के साथ लोगों को उमड़ता काफिला नजर आयेगा, इन चेहरों को देख कर भी आप अंदाज लगा सकते हैं, कि ये शहर के आम शहरी नहीं है, इनका संबंध तो उन दूर दराज इलाकों से हैं, जिसे दिशोम गुरु का गढ़ माना जाता है, वह गढ़ जो तमाम सियासी झंझवातों के बावजूद हेमंत के हौसलो को पस्त होने नहीं दिया, आदिवासी-मूलवासियो का वह जन सैलाब जिसने सदा हेमंत के हौसलों को सियासत के आसमान पर उठाये रखा.
पूछताछ के दौरान तेज हो सकती है सड़क पर प्रतिरोध की आवाज
अब देखना होगा कि जैसे जैसे दिन चढ़ता है, और सीएम हेमंत से पूछताछ की प्रक्रिया तेज शुरु होती है, ईडी अधिकारों को भारी सुरक्षा के बीच सीएम हाउस लाया जाता है, जहां इन अधिकारियों के द्वारा सीएम हेमंत से सवाल दागे जायेंगे, कथित जमीन घोटाले में उनकी कथित सहभागिता या संलिग्नता के साक्ष्य प्रस्तूत किया जाते हैं, और उसको लेकर सवालों की झड़ी लगायी जाती है, सड़क पर उमड़ता यह आक्रोश कौन का रुप लेता है, हालांकि प्रशासनिक अधिकारियों की चौकस आंखें इन पर बनी हुई है, माना यह भी जाता है कि खुद झामुमो नेताओं के द्वारा इन कार्यकर्ताओं को समझाने बुझाने की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है, उन्हे सख्त ताकीद की जा रही है, कि आप अपनी भावनाओं को इजहार तो कर सकते हैं, लेकिन वह कहीं से भी ईडी के शान में गुस्ताखी के हद तक नहीं हो, और ऐसा भी नहीं हो कि लाचार होकर प्रशासनिक अधिकारियों को कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा, माना जाता है कि यह विरोध प्रर्दशन भी महज औपचारिकता होगी, ताकि दिल्ली तक यह संदेश दिया जा सके, कि सीएम हेमंत की जड़ें इतनी कमजोर और असहाय नहीं है कि हवा के एक झोके साथ उसे जमीन पर ले लाया जाय, यह तो संघर्षों की पार्टी है, सड़क पर आन्दोलन करने का इसका पुराना इतिहास रहा है, वह भला इन आंधियों से क्यों बिखरेगी?
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