Ranchi-आज राजधानी की सुबह चाहे जितनी हसीन हुई हो , लेकिन सूरज की पहली किरण के साथ ही सड़कों पर एक अजीब सा कोलाहल पसरता नजर आ रहा है. अनजान चेहरे, खामोश, लेकिन आक्रोश से भरी आंखों का एक हुजूम चारों ओर बिखरा है, ये कोई रोजी रोटी की तलाश में निकले युवाओं या महिलाओं की टोली नही है, ये तो अपने हेमंत से होने वाले ईडी की पूछताछ से नाराज जेएमएम कार्यकर्ताओं की टोली है. इनमे कोई साहिबगंज का है तो कोई झारखंड की उपराजधानी का तमगा प्राप्त सुदूरवर्ती दुमका का, जी हां इनका संबंध उसी दुमका और संथाल से है, जहां 1200करोड़ के अवैध खनन के दावे किए जाते है. उसी दुमका संथाल का जहां से पंकज मिश्रा आते है और आज वे बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा की काल कोठरी में अपना दिन काट रहे है. गुनाह है कथित रूप से अवैध खनन में उनकी सहभागिता, यह आरोप कितना सत्य कितना झूठ कोई नही जानता, और यदि अवैध खनन हुआ, तो क्या सिर्फ हेमंत राज में, क्या इसके पहले की सरकारों में संथाल के पत्थर नहीं लूटे जा रहे थे. क्या रघुवर सरकार में इसी संथाल से ट्रेनों की बोगियों में भर भर कर पत्थर दूसरे राज्यों से लेकर बांग्लादेश तक नहीं भेजा जा रहा था, और नही भेजा जा रहा था सीएम हेमंत के लाख अनुरोध के बाबजूद रेलवे मंत्रालय उन बोगियों की सूची उपलब्ध क्यों नही करवाता. जिसकी मांग राज्य के मुखिया हेमंत सोरेन की ओर से कई बार सार्वजनिक रूप से किया गया है. सुबह सुबह राजधानी की सड़कों पर ऐसे कई सवाल इन अनजान चेहरों के द्वारा बड़ी ही मासूमियत भरी निगाहों के साथ उठाए जा रहे है. कभी ये पूछते है कि क्या सीएम हेमंत से पहले पूजा सिंघल की लूट नही थी, सेना जमीन पर इतना बबाल, लेकिन इसी झारखंड में और इसी झारखंड की राजधानी के आसपास आदिवासियों की हजारों एकड़ जमीन पर गैर कानूनी रूप से बाहरी लोगों यानी गैर झारखंडी भीड़ के द्वारा बस्तियां बना ली गई. सीएनटी एक्ट को धट्टा बता कर बाहरियों की भीड़ बसाई गई, तब तो किसी ने बबाल नही काटा. तब तो पूछ ताछ नहीं हुई. फिर सेना जमीन पर इतना बबाल क्यों, और क्या इस जमीन को सीएम हेमंत ने कब्जा किया, क्या हेमंत ने इस जमीन को अपने सगे संबंधियों को सौंपा, तो क्या किसी कर्मचारी से मिले किसी दस्तावेज के आधार पर सीधे उस राज्य के मुखिया से पूछताछ होगी, और उसके बाद भी हमारी जुबान पर ताला रहेगा. हालाकि सूरज की पहली किरण निकलने तक अभी सड़के वीरान ही है, चंद अनजान चेहरे के सिवा कोई खास चहलकदमी नही है, लेकिन एक खामोशी जरूर पसरी है, देखना होगा जैसे जैसे दिन चढ़ता है, यह खामोशी और भी गाढ़ा होती है या अचानक से इन खामोश लबों से कोई आवाज आती है. क्योंकि इतना तो साफ है कि इन चेहरों के अंदर एक बेचैनी है, उनकी खामोश आंखे कुछ कह रही है, भले ही हम शहरियों की तरह वे अपनी भावनाओं का इजहार नही कर पा रहे हों, इस खामोशी को शांति मान लेना एक भूल भी हो सकती है.
4+