Ranchi-सोरेन परिवार के अंदर से सीएम की कुर्सी पर दावे, सीता सोरेन की बगावत, बसंत सोरेन की ताजपोशी, लोबिन, चमरा लिंडा और रामदास सोरेन की नाराजगी के तमाम दावों को धत्ता बताते हुए सीएम चंपई सोरेन ने विधान सभा के पटल पर अपना बहुमत साबित कर दिया, उनके पक्ष में 47 विधायकों का अपार बहुमत सामने आया, वहीं टूट-फूट और बगावत का दावा कर रही है भाजपा महज 29 मतों का आंकड़ा भी नहीं पार पायी. कल तक बगावती मुद्रा में खड़ाकर होकर तीखे सवाल पूछ रहे लोबिन हेम्ब्रम भी चंपई के साथ खड़े नजर आयें. हालांकि पूर्व की भांति लोबिन ने विधान सभा से बाहर मीडिया के समक्ष अपनी प्राथमिकताओं को जरुर गिनाया. लेकिन अंतोगत्वा मतदान से साफ कर दिया कि पार्टी से नाराजगी तो जरुर है, लेकिन वह नाराजगी मुद्दों को लेकर हैं, और यह इतनी बड़ी नहीं है कि पार्टी से बगावत कर वह भाजपा के सियासी चाल के शिकार हो जायें. दूसरी ओर सरयू राय से लेकर अमित यादव जैसे निर्दलीय विधायकों ने भी तटस्थ रह कर यह संकेत दे दिया कि फिलहाल भाजपा सरकार को गिराने के लिए जरुरी जादूई आंकड़ों के आसपास भटकने की स्थिति में भी नहीं है, और इस हालत में वह भाजपा के साथ खड़ा होकर अपनी सियासी साख को गंवाना नहीं चाहते.
चुनौती खत्म नहीं, चुनौती तो अब शुरु होती है
निश्चित रुप से पूर्व सीएम हेमंत के इस्तीफे के बाद सियासी गलियारों में जो हवा बांधी जा रही थी, जिस तरह के दावे पेश किये जा रहे थें और उन दावों को राष्ट्रीय मीडिया के द्वारा जिस प्रमुखता के साथ उछाला जा रहा था, उस हालत में आज बहुमत हासिल कर सीएम चंपई सोरेन ने एक राहत की सांस तो जरुर ली होगी, और इससे ज्यादा खुशी उन्हे इस बहुमत परीक्षण के दौरान पूर्व सीएम हेमंत की उपस्थिति और भाजपा को पेश की गयी उनकी चुनौती से मिली होगी. लेकिन यह मान लेना कि सीएम चंपई की चुनौती खत्म हो गयी, एक भूल होगी, क्योंकि अभी उनके सामने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करने की एक गंभीर चुनौती सामने खड़ी है, दुविधा इस बात की है कि किन-किन चेहरों को इस नये मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाय और किन-किन चेहरों की विदाई का रास्ता दिखलाया जाय.
कई विधायकों के अंदर मंत्री बनने की हसरतें उबाल मार रही है
क्योंकि इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि कई विधायकों के अंदर मंत्री पद तक पहुंचने की हसरतें उबाल मार रही है, वहीं कुछ ऐसे चेहरे भी हेमंत मंत्रिमंडल में स्थान बनाये हुए थें, जिनकी पार्टी और सरकार के प्रति प्रतिबद्धता संदेहास्पद थी. जिनके बारे में आम रुप से यह चर्चा तेज थी कि ये चेहरे इस सरकार के साथ महज इसलिए बने हुए हैं कि क्योंकि उनके पास कुर्सी है, मंत्री का पद है, जैसे ही भाजपा की ओर से इन्हे कोई बड़ा ऑफर मिलता है, पाला बदलने में इन्हे जरा भी देर नहीं लगेगी. अब जब हेमंत मंत्रिमंडल की विदाई हो चुकी है, नये सीएम चेंपई सोरेन के सामने नये चेहरों को सामने लाने का विकल्प है. क्या चंपई सोरेन उन्ही संदेहास्पद चेहरों को अपने मंत्रिमंडल में रखेंगे? और सवाल सिर्फ चंपई सोरेन का नहीं है, यह सवाल तो कांग्रेस के सामने भी खड़ी है, अपने मंत्रियों की संदेहास्पद चरित्र की जानकारी तो कांग्रेस आलकमान को भी होगी, तो क्या कांग्रेस आलाकमान के लिए यही माकूल वक्त है, जब वह इनका ऑपेरशन करें? संकेत तो कुछ इसी दिशा में मिल रहा है.
बन्ना गुप्ता और बादल पत्रलेख पर चल सकती है मीर की कैंची
यदि हम सियासी गलियारों में चल रहे चर्चाओं पर विश्वास करें तो इस बार नवनियुक्त कांग्रेस प्रभारी गुलाम अहमद मीर कांग्रेस कोटे से मंत्रियों के चेहरे में बदलाव का प्लान तैयार कर चुके हैं, और जिन दो चेहरों को मंत्रिमडंल से आउट किया जा सकता है, उसमें सबसे बड़ा चेहरा पूर्व स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता और पूर्व कृषि मंत्री बादल पत्रलेख का है. सूत्रों का दावा है कि पार्टी को इनकी प्रतिबद्धता पर संदेह है. और शायद इस बार इनको जगह लगा कर हर संकट में पूर्व सीएम हेमंत के साथ मजबूती के साथ खड़ी नजर आने वाली दीपिका पांडेय सिंह को जगह मिल सकती है, दूसरा चेहरा अनुप सिंह का है, इन्हे भी पूर्व सीएम हेमंत का काफी करीबी माना जाता है, और यह दावा किया जाता है कि जब भाजपा की ओर से कांग्रेसी विधायकों को तोड़ने के लिए ऑपेरशन लोटस का चलाया गया था, तब उसकी हवा अनुप सिंह ने ही निकाली थी, लेकिन इसके साथ ही एक और तेजी से सामने आ रहा है वह है कांग्रेस का एक मजबूत अल्पसंख्यक चेहरा इरफान अंसारी का, पिछले कुछ दिनों से जिस तरीके से हेमंत सोरेन से उनकी नजदीकियां परवान चढ़ा है, उस हालत में बहुत संभव है कि गुलाम अहमद मीर इस बार इरफान अंसारी को आगे बढ़ाते नजर आयें, हालांकि जिस ऑपेरशन लोटस को अनुप सिंह ने हवा निकाली थी, उसका एक सिरा इरफान से भी जुड़ता है, लेकिन उस घटना के बाद अब तक गंगा में काफी पानी बह चुका है. और इरफान इसे बार बार साबित भी कर रहे हैं, उनका बार बार अपने आप को हेमंत का हनुमान बताना उनकी बदलती सियासत का संकेत देता है, वैसे भी इतना तो स्वीकार करना होगा कि इरफान के नेतृत्व में कांग्रेसी विधायकों का एक धड़ा खड़ा नजर आता है, और यदि इरफान को मंत्रिमंडल में स्थान दे दिया जाता है तो उन विधायकों को यह एहसास होगा कि इस मंत्रिमंडल में उनकी आवाज को भी बुलंद करने वाला कोई है. हालांकि इरफान की इंट्री किसके विदाई की शक्ल में होगी, यह एक बड़ा सवाल होगा, बहुत संभव है कि उम्र का हवाला देते हुए इस बार आलमगीर आलम को किनारा किया जाय. इधर यदि झामुमो कोटे से मंत्रियों की चर्चा करें तो मथुरा महतो की इंट्री हो सकती है, खास कर जब 2024 की लड़ाई सामने खड़ी है, जगरनाथ महतो जैसा कुर्मी चेहरा अब झामुमो के पास नहीं है, तो कुर्मी चेहरे को साधने के लिए मथुरा महतो की इंट्री हो सकती है, दूसरा नाम पूर्व सीएम हेमंत के रणनीतिकार के रुप में काम करते रहे सुदिव्य कुमार सोनू का है, वैसे भी सुदिव्य कुमार सोनू के नाम को आगे कर अतिपिछड़ों के बीच एक संदेश दिया जा सकता है कि सरकार उनकी भावनाओं को भी तरजीह दे रही है, और सत्ता के संचालन में उनकी भी हिस्सेदारी है.
बसंत सोरेन के सिर उपमुख्यमंत्री का ताज
लेकिन इन नामों के साथ ही चर्चा इस बात की भी है कि इस बार बसंत सोरेन के सिर पर उपमुख्यमंत्री का ताज सौंपा जा सकता है, सीता सोरेन को मंत्री के रुप में इंट्री हो सकती है. ताकि सरकार और सत्ता में सोरेन परिवार का दखल मौजूद रहे. लेकिन इसके साथ ही एक चर्चा और भी कि भले ही ताज चंपई के सिर पर सौंप दी गयी हो, लेकिन जिस तरीके से सीएम पद के लिए कल्पना सोरेन की चर्चा हुई है, और गांडेय विधान सभा की सीट को खाली करवाया गया है, उस हालत में उपमुख्यमंत्री की कुर्सी कल्पना सोरेन के सिर पर ही रखा जायेगा, ताकि सरकार में पूर्व सीएम हेमंत का सीधी पकड़ बनी रह सके.