Ranchi-जैसे-जैसे 2024 का महासंग्राम करीब आता जा रहा है, वैसे-वैसे संभावित प्रत्याशियों के दिल की घड़कनें तेज होने लगी है, हर सियासी पहलवान अपने-अपने गुणा-भाग में लग चुका है. सियासी समीकरणों को दुरुस्त करने की कोशिशें जारी है, समर्थकों का गिल शिकवा दूर करने की कवायद तेज हो चुकी है. पिछले पांच वर्षों में जो गलतियां हुई, उसकी माफीनामें पढ़े जाने लगे हैं, ताकि पार्टी आलाकमान को यह विश्वास हो कि उसका पहलवान चुनावी दंगल में फतह करने की योग्यता रखता है, और यदि जमीन से ही यह संदेश चला गया कि इस बार तो इस चेहरे को जमीन चटाना है, तो भला उस चेहरे पर अपना दांव कौन लगायेगा? और यही कारण है कि इन दिनों हर सियासी पहलवान उन जादूगरों को साधने में लगा है, जिसके एक इशारे पर वोटों की फसल लहलहाने लगती है.
कुड़मी जाति के अरमानों पर अर्जुन मुंडा ने फेरा था पानी
कुछ यही स्थिति झारखंड की सियासत में भी देखने को मिल रहा है. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए कि जनजातीय विभाग के मंत्री अर्जुन मुंडा ने यह दावा कर सनसनी फैला दी थी कि उनके विभाग के पास कुड़मी जाति को अनुसूचित जन जाति में शामिल करने का कोई प्रस्ताव नहीं है, यह प्रस्ताव तो राज्य सरकार के द्वारा वापस ले लिया गया है, जैसे ही यह बयान आया झारखंड की कुर्मी सियासत में भूचाल आ गया, आंदोलनों की रुप रेखा तैयार की जाने लगी, दावा यह किया जाने लगा कि इस बार किसी भी भाजपा नेता तो अपने अपने लोकसभा क्षेत्रों में प्रवेश नहीं करने देना है. जब तक कुड़मी जाति को आदिवासी का दर्जा नहीं मिल जाता, तब तक भाजपा का सामाजिक बहिष्कार करना है, उधर झामुमो बेहद चालाकी से इस मुद्दे पर चुप्पी साध गया. वह भला इस आग में अपना हाथ क्यों जलाता, लेकिन भाजपा की मुश्किल यह है कि ऐन चुनाव के पहले अर्जुन मुंडा ने उनके अरमानों पर मट्ठा डाल दिया.
अर्जुन मुंडा के हाथ में कैद है कुड़मियों का आदिवासी दर्जा
यहां ध्यान रहे कि अर्जुन मुंडा जनजातीय विभाग के मंत्री है, कुड़मी आदिवासी है या नहीं, इसका फैसला इनके ही विभाग को लेना है. इस हालत में अर्जुन मुंडा का यह बयान कुड़मी संगठनों के व्रजपात के समाना था. शायद किसी और मंत्री ने यह बयान दिया होता तो बात आयी गयी हो जाती. यही कारण है कि कुड़मी संगठनों के द्वारा सिर्फ भाजपा को ही निशाना नहीं बनाया जा रहा है, बल्कि उनकी तैयारियों से खुद अर्जुन मुंडा भी सियासत के घनघोर अंधेरे की ओर बढ़ते नजर आने लगे थे, कुर्मी संगठनों के निशाने खुद अर्जुन मुंडा थें.
वर्ष 2019 में डगमगाते हुए जीत हासिल किये थें अर्जुन मुंडा
यहां ध्य़ान रहे कि अर्जुन मुंडा ने पिछला लोकसभा चुनाव खूंटी लोकसभा से लड़ा था, तब भी उनकी जीत कोई शानदार जीत नहीं थी, किसी तरह वह जीत की औपचारिकता पूरी करते नजर आये थें, तब उन्हे कुल 382,638 हजार मत प्राप्त हुए थें, जबकि कांग्रेस के कालीचरण मुंडा ने 3,81,193 प्राप्त कर उनके पैरों नीचे जमीन खिसका दी थी. यह हालत तब थी जब देश में मोदी का लहर बहता नजर आ रहा था. और मुश्किल यह भी है कि लोकसभा चुनाव हारने के बाद कालीचरण मुंडा ने मैदान नहीं छोड़ा, वह आज भी पूरी मुस्तैदी के साथ मैदान में डटें हैं, इस हालत में उनका खूंटी से विजय हासिल करना पहले से हिमालय चढ़ने के समान था, उपर से अपने बयान से उन्होंने कुड़मी मतदाताओं को अपने विरोध में खड़ा कर दिया.
खबर मिलते ही दिल्ली दरबार के कान खड़े हुए
दावा किया जाता है कि जैसे ही यह खबर दिल्ली दरबार तक पहुंची, उसके कान खड़े हो गयें, इधर अर्जुन मुंडा को भी अपनी भूल का एहसास हो गया, उन्हे यह समझ आ गयी कि उन्होंने बिरनी के खोथे में अपना हाथ डाल दिया है, जिसके बाद उनके लिए दिल्ली का सफर असंभव हो चला है, जीत या हार तो बाद में पहला सवाल तो यही है कि इस बार दिल्ली दरबार उन्हे टिकट भी देगा या नहीं, सवाल तो यहीं खड़ा हो गया.
कुड़मी संगठनों में बाबा की अच्छी पकड़ मानी जाती है
दावा किया जाता है कि इसी की काट खोजने अर्जुन मुंडा विशुनपुर वाले बाबा के दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं. विशुनपुर वाले बाबा यानी पद्मश्री अशोक भगत का कुड़मी संगठनों के बीच अच्छी पकड़ माना जाती है, दिल्ली दरबार में भी उनकी गहरी पैठ है, बड़े-बड़े मंत्रियों और आला अफसरों आना जाना लगा रहता है, इस हालत में वह अर्जुन मुंडा का सारा कील-कांटा दूर करने का माद्दा रखते हैं, हालांकि यह भी देखना होगा कि इस मुद्दे पर कुड़मी संगठन बाबा की बात को किस सीमा तक स्वीकार करते हैं. उनके इशारे पर अर्जुन मुंडा को अभयदान मिलता है या फिर इस बार खूंटी का किला फतह करना हिमालय पर चढ़ने के समान होने वाला है.
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