Ranchi-राजमहल के अखाड़े में कूदने के साथ ही बारियो विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने झामुमो की नीतियों पर जोरदार हमला बोला हैं. पार्टी के अंदर अपनी बात को अनसुनी करने का आरोप लगाते हुए लोबिन ने कहा कि हेमंत की गिरफ्तारी के बाद सीएम की कुर्सी पर स्वाभाविक दावेदारी सीता सोरेन की बनती थी, मैं खुद भी इसका पक्षधर था, लेकिन मेरी बात अनसुनी की गई,और चंपाई सोरेन के सिर पर सीएम का ताज पहना दिया गया, और घर की बेटी सीता सोरेन को अंतोगत्तवा पार्टी से विदाई का रास्ता अख्तियार करना पड़ा.हेमंत सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए लोबिन ने कहा कि पार्टी के अंदर हम लगातार पंकज मिश्रा, अभिषेक प्रसाद पिंटू और दूसरे उन तमाम चेहरों को लेकर सवाल उठा रहे थें, उनकी गतिविधियों को लेकर पार्टी को अगाह कर रहे थें, लेकिन मेरी बात नहीं तब भी नहीं सुनी गयी और आखिकार इन लोगों की करतूतों का परिणाम हेमंत सोरेन को अपनी गिरफ्तारी के रुप में चुकाना पड़ा. लोबिन ने दावा किया कि जिस संगठन के बूते झामुमो ने सरकार बनायी थी, आज वह संगठन कहां खड़ा है, पार्टी के अंदर सिर्फ नॉमिनेशन का खेल चल रहा है, पार्टी के अंदर नॉमिनेशन के सहारे सिर्फ अपने अपने चेहतों को आगे बढ़ाने का खेल हो रहा है, और इसके कारण पार्टी हर गुजरते दिन के साथ कमजोर होती दिख रही है, हमारी लड़ाई किसी कुर्सी की नहीं है, हमारी लड़ाई झामुमो को बचाने की है, झामुमो के उन चेहरों को बेनकबाब करने की है, जिनका एक मात्र मकसद झामुमो को बर्बाद करना है, वह पंकज मिश्रा हो, या पिंटू या फिर पार्टी के अंदर ताकतवर होते दूसरे सभी गैरझारखंडी चेहरे , एक दिन ये लोग पार्टी को बर्बाद कर बाहर निकल जायेंगे, लेकिन जिन लोगों ने अपने खून पसीने से इस पार्टी को सींचा है, वह कहां जायेगा, इन्ही लोगों की करतूतों के कारण हर गुजरते दिन के साथ भाजपा मजबूत हो रही है, आज संताल में हमारे पास एक मात्र सीट राजमहल की सीट है, लेकिन वहां का सांसद विजय हांसदा अब जनता का प्रतिनिधि नहीं होकर, बड़ा ठेकेदार बन गया है. इस बार उसकी हार तय है, और यही कारण है कि हमने विजय हांसदा के खिलाफ मैदान में कूदने का फैसला किया.
जीत के साथ एक बार फिर होंगे झामुमो का हिस्सा
इसके साथ ही लोबिन ने इस बात का दावा भी किया कि यदि हम निर्दलीय रुप से जीतने में सफल होते हैं, तो हम एक बार फिर से झामुमो के साथ खड़ा होंगे, क्योंकि बगावत हमने नहीं की है, बगावत को झामुमो ने की है, यह झामुमो है, जो पार्टी की नीतियों के खिलाफ खड़ा है, जिस जंगल और जमीन की लड़ाई हम लड़ते रहे थें, आज इस सरकार में उसकी लूट और भी तेज हो गई है. और यह कोई पहली बार नही हैं, कि हम पार्टी को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं, हम तो हर बार पार्टी को उसकी नीतियों और सिन्धातों की याद दिलाते रहे हैं, और इसके कारण ही हमें पार्टी में किनारा किया गया, इस बार भी हमें कल्पना सोरेन से बात करने को कहा गया, भला कल्पना कौन होती है, जो हमें निर्देश दें, इस पार्टी को खड़ा करने में कल्पना सोरेन का क्या योगदान रहा है, जो हम कल्पना सोरेन से आदेश प्राप्त करुं, लोबिन ने कहा कि वह आज भी बंसत के साथ बात करने तैयार हैं, बसंत जहां भी बुलायेगा, हम जायेंगे, क्योंकि बसंत को सारी समस्याओं की जानकारी है.
मुश्किल हो सकती है इंडिया गठबंधन की राह!
लोबिन की इंट्री के बाद राजमहल सीट पर भी इंडिया गठबंधन की राह मुश्किल हो सकती है. यहां बता दें कि विजय हांसदा की उम्मीदवारी का एलान के पहले ही लोबिन हेम्ब्रम ने राजमहल सीट से चुनाव लड़ने की ख्वाहीश जाहीर की थी, अपनी इस सियासी चाहत से सीएम चंपाई के साथ ही झामुमो को भी अवगत कर दिया था, लोबिन का दावा था कि इस बार विजय हांसदा को लेकर इलाके में नाराजगी है, यदि विजय हांसदा के कारण झामुमो यह सीट गंवा देती है, तो इसके कारण पार्टी की छवि को गहरा आघात लग सकता है. क्योंकि संथाल को झामुमो का गढ़ माना जाता है, यदि वह अपने गढ़ में ही अपनी जीती हुई सीट गंवा बैठती है, तो इसका बड़ा सियासी संदेश जायेगा, और वह पार्टी को इस फजीहत का सामना करते नहीं देख सकतें. बावजूद इसके पार्टी ने विजय हांसदा पर भरोसा जताया और उम्मीदवारी का एलान कर दिया.
बेहद पुरानी है ताला मरांडी और लोबिन की सियासी भिड़ंत
यहां याद रहे कि लोबिन उसी राजमहल संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले बोरियो विधान सभा से विधायक है. राजमहल लोकसभा से भाजपा के उम्मीदवार बनाये गये ताला मरांडी के साथ सियासी भिड़त का लम्बा इतिहास रहा है, इसी ताला मरांडी के हाथों उन्हे वर्ष 2005 और 2014 में पराजय का सामना भी करना पड़ा है. जहां तक राजमहल लोकसभा की बात है तो इसके अंतर्गत विधान सभा की कुल छह सीटें आती है, इसमें अभी राजमहल पर भाजपा(अनंत ओझा), बोरियो-झामुमो (लोबिन हेम्ब्रम), बरहेट झामुमो ( हेमंत सोरेन), लिटिपार-झामुमो (दिनेश विलियम मरांडी), पाकुड़- कांग्रेस ( आलमगीर आलम) और महेशपुर- झामुमो (स्टीफन मरांडी) का कब्जा है, यानि कुल छह विधान सभा में से पांच पर कांग्रेस और झामुमो का कब्जा है, निश्चित रुप से इस आंकड़े के साथ महागठबंधन की पकड़ मजबूत नजर आती है, लेकिन सवाल यह है कि यदि बगावत की आवाज घर से उठने लगे तो विरोधी खेमा में जश्न पर आपत्ति क्यों होगी?
क्या लोबिन की इंट्री से बिगड़ जायेगा झामुमो का खेल
इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि क्या लोबिन की इंट्री से झामुमो का खेल बिगड़ सकता है. तो इसके लिए राजमहल सीट पर अब तक हुए सियासी भिडंत के नतीजों पर विचार करना होगा, वर्ष 2019 में इस सीट से विजय हांसद के विजय रथ को रोकने की जिम्मेवारी झामुमो से कमल की सवारी करने वाले हेमलाल मूर्मू पर थी, तब विजय हांसदा हेमलाल मुर्मू को करीबन एक लाख मतों से मात दी थी. जबकि 2014 में विजय हांसदा ने हेमलाल मुर्मीको करीबन 40 हजार मतों से शिकस्त दिया था, और इन नतीजों के बाद हेमलाल मुर्मू ने घर वापसी में ही अपना सियासी भविष्य देखा. हेमलाल की इस घर वापसी के बाद भाजपा ने इस बार तालामरांडी को मैदान में उतारा है. इस हालत में लोबिन हेम्ब्रम कोई बड़ा संकट खड़ा कर पायेंगे, ऐसा संभव नहीं दिखता, बहुत संभव है कि इस बगावत के बाद लोबिन को इसकी कीमत भी चुकानी पड़े.
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