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कौन कर रहा पिछड़ों-आदिवासियों के साथ खेला! झामुमो का आरोप आरक्षण विस्तार और सरना धर्म कोड के सामने दीवार बन खड़ी है भाजपा

कौन कर रहा पिछड़ों-आदिवासियों के साथ खेला! झामुमो का आरोप आरक्षण विस्तार और सरना धर्म कोड के सामने दीवार बन खड़ी है भाजपा

Ranchi-2024 लोकसभा चुनाव में झारखंड में सरना धर्म कोड और पिछड़ों का आरक्षण विस्तार एक बड़ा सियासी मुद्दा बनता दिखने लगा है. भाजपा पर पिछड़ों की अनदेखी और आदिवासियों की प्रमुख मांग सरना धर्म को डस्टबीन में डालने का आरोप लगाते हुए झामुमो केन्द्रीय प्रवक्ता विनोद पांडे ने कहा है कि महागठबंधन की सरकार ने पूर्व सीएम हेमंत के नेतृत्व में झारखंड में आरक्षण विस्तार करने का बड़ा निर्णय लिया था, विधान सभा लिये गये निर्णय के अनुसार झारखड में अनुसूचित जाति  के आरक्षण को 26 फीसदी से 28 फीसदी और ओबीसी आरक्षण को 14 से 27 फीसदी करने का निर्णय लिया गया था. इसके साथ ही आदिवासियों समाज की पुरानी मांग सरना धर्म कोड पर भी मुहर लगाते हुए राजभवन भेजा गया था. लेकिन राजभवन जानबूझ कर इन विधेयकों पर चुप्पी साधे हुए है. जबकि यही भाजपा अपने आप को पिछड़ों का हितैषी बताती है, कभी ओबीसी  सम्मलेन करती है, तो कभी आदिवासी सम्मेलन, लेकिन बात जब अधिकार की आती है, तो यह साजिश रचने लगती है, भाजपा को इस बात का जवाब देना चाहिए कि आखिर पिछड़ों के आरक्षण के साथ यह गंदा खेल क्यों खेला जा रहा है, आदिवासियों को सरना धर्म कोड देने में अड़ंगा क्यों डाला जा रहा है.

लोकसभा चुनाव में बड़ा सियासी मुद्दा हो सकता है पिछड़ों का आरक्षण और सरना धर्म कोड

विनोद पांडे ने दावा किया कि महागठबंधन की ओर से इस मामले में राष्ट्रपति से पत्राचार कर समय की मांग की गयी थी, लेकिन आश्चर्यजनक रुप से राष्ट्रपति की ओर से भी हमें निराशा हाथ लगी, राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से समय देने से इंकार कर दिया गया, बताया गया है कि अभी महामहिम के पास समय नहीं है. इस हालत में सवाल खड़ा होता कि पिछड़े आदिवासी समाज के साथ यह खेल कौन कर रहा है. यहां बता दें कि झारखंड में पिछड़ी जातियों की आबादी करीबन 55 फीसदी मानी जाती है. झारखंड गठन के पहले तक बिहार के इस हिस्से में भी पिछड़ों को 27 फीसदी का आरक्षण प्राप्त था. लेकिन जैसे ही झारखंड का गठन हुआ और भाजपा के बाबूलाल सीएम बने. पिछड़ों के आरक्षण पर कैंची चलाते हुए 14 फीसदी करने का निर्णय लिया गया. जिसके बाद से ही पिछड़ी जातियों के द्वारा आरक्षण विस्तार की मांग की जाती रही है. पिछड़ी जातियों के बीच पनपते इसी आक्रोश को देखते हुए पूर्व सीएम हेमंत ने पिछड़ों का आरक्षण एक बार फिर से 27 फीसदी करने का निर्णय लिया था और विधान सभा से इस प्रस्ताव को पारित कर राजभवन भेजा था. लेकिन आज भी इस बिल पर राजभवन के  मुहर का इंतजार है और 55 फीसदी आबादी के बावजूद पिछड़ी जातियों को 14 फीसदी आरक्षण ही प्राप्त है. इस हालत में जिस तरीके से झामुमो अब लोकसभा चुनाव के पहले इसे सियासी मुद्दा बनाता नजर आ रहा है. भाजपा को पिछड़ी जातियों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. ठीक यही हाल सरना धर्म कोड की है. यह भी आदिवासी समाज की एक पुरानी मांग है. जनजाति समाज की ओर से अपने सामाजिक और धार्मिक अस्मिता की रक्षा के लिए लम्बे समय से इसकी मांग की जाती रही है. उनका दावा है कि आदिवासियों का अपना धर्म है और अपनी धार्मिक पहचान है. लेकिन एक साजिश के तहत उन्हे हिन्दू, मुस्लिम और इशाईयों की श्रेणी में रखा जा रहा है. जिसके कारण उनकी अपनी पहचान मिटती जा रही है. सरना धर्म उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को अक्षुण्य बनाये रखने में मदद करेगा. साफ है कि झामुमो की कोशिश भी लोकसभा चुनाव के पहले इस मुद्दे पर सियासी हवा देकर भाजपा को कटघरे में खड़ा करने की है, और यदि वाकई झामुमो अपने इस प्रयास में सफल होता है, तो उसका नुकसान भाजपा को झेलना पड़ सकता है.

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Published at:12 Mar 2024 04:36 PM (IST)
Tags:Who is playing with the backward and tribalsJMM alleges BJP is standing like a wall in front of reservation expansion and Sarna Dharma Codef reservation expansion and Sarna Dharma Codeसरना धर्म कोड Reservation of backward people and Sarna Dharma code can be a big political issue in Lok Sabha electionsReservation of backwardSarna Dharma codeVinod PandeySarna Dharma Code and expansion of reservation for backward classesJMM central spokesperson Vinod Pandeyincrease the SC reservation from 26 percent to 28 percentOBC reservation from 14 to 27 percent in JharkhandPresidentPresident's Office refused to give time55 फीसदी आबादी के बावजूद पिछड़ी जातियों को 14 फीसदी आरक्षणराष्ट्रपति से पत्राचार कर समय की मांग लोकसभा चुनाव के पहले ओबीसी आरक्षण और सरना पर सियासी घमासानPolitical turmoil over OBC reservation and Sarna before Lok Sabha elections
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