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चंपाई सरकार में दलितों का प्रतिनिधित्व शून्य, आखिर एन वक्त पर किसके इशारे पर चढ़ाई गयी बैधनाथ राम की सियासी बलि

चंपाई सरकार में दलितों का प्रतिनिधित्व शून्य, आखिर एन वक्त पर किसके इशारे पर चढ़ाई गयी बैधनाथ राम की सियासी बलि

Ranchi- आखिकार कांग्रेसी विधायकों की नाराजगी और मंत्री पद की खींचतान के बीच चंपाई सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार पूरा हो गया और इसके साथ ही ग्यारह विधायकों ने मंत्रीपद की शपथ ले ली. लेकिन इस खींचतान और नाराजगी के बीच बैधनाथ राम की बलि चढ़ गयी. बैधनाथ राम मंत्री पद की शपथ लेते-लेते रह गयें. जबकि तमाम मीडिया चैनलों में उनका नाम मंत्री पद की दावेदारी में सबसे आगे चल रहा था और यह दावा किया जा रहा था कि बैधनाथ राम को मंत्रिमंडल में शामिल कर इस बार दलितों की भागीदारी को सुनिश्चित किया जायेगा. लेकिन एक बार फिर से दलितों के हिस्से प्रतिनिधित्व शून्य आया. जिस बारहवें मंत्री पद को लेकर आशा की जा सकती है, जो आज भी खाली है, लेकिन रघुवर शासन काल से झारखंड की सियासत में जिस बारहवीं का खेल शुरु हुआ है, वह रधुवर शासन काल से होते हुए चंपाई सरकार तक बदस्तूर जारी रहता दिख रहा है. इस प्रकार कहा जा सकता कि बैधनाथ राम के लिए मंत्रीपद के दरवाजे बंद हो चुके हैं और इसके साथ ही झामुमो की सियासत में दलितों के प्रति निष्ठा पर खड़ा हो गया है.

कहां ख़ड़ी है झारखंड़ में दलित राजनीति

बैधनाथ राम की विदाई के साथ ही यह सवाल भी गहराने लगा है कि क्या झारखंड की सियासत में दलितों की जिम्मेवारी सिर्फ झंडा बनैर ढोने तक ही है. क्या कांग्रेस झामुमो के बीच एक आंतरिक सहमति बन चुकी है कि दलितों को सत्ता की इस मलाई में हिस्सेदार नहीं बनाना है. क्या इस आदिवासी-मूलवासी सियासत में दलितों की भूमिका सिर्फ कुर्बानी देने और आदिवासी-मूलवासी का नारा लगाने की है. क्योंकि यदि हम चंपाई मंत्रिमंडल के सामाजिक समीकरण को समझने की कोशिश करें तो उस सूची में तीन आदिवासी, एक बनिया, दो ब्राह्मण और दो अल्पसंख्यक चेहरा नजर आता है. और यह स्थिति तब है कि झारखंड में एक जातीय समूह के रूप में आदिवासी समाज के बाद दलितों की एक बड़ी आबादी है. एक अनुमान के अनुसार झारखंड में आदिवासी की आबादी करीबन 26 फीसदी, ओबीसी 46 फीसदी, दलित 12 फीसदी, जबकि सामान्य जातियों की आबादी महज 15 फीसदी है और इसमें भी ब्राह्मणों की आबादी एक फीसदी से भी कम है. इस हालत में यह सवाल खड़ा होना लाजमी है कि हेमंत मंत्रीमंडल से के लेकर चंपाई मंत्रिमंडल तक दलितों को हिस्सेदारी शून्य क्यों रही? सवाल तो यह भी खड़ा होता है कि क्या झामुमो और कांग्रेस के रणनीतिकारों के द्वारा दलितों को भाजपा के साथ जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है? क्योंकि यदि सारे सियासी विकल्प ही समाप्त कर दिये जायेंगे तो उस हालत में दलितो के पास विकल्प क्या बचता है?

खुद को दलितों का मसीहा बताती झामुमो- कांग्रेस

यहां यह भी याद रहे कि पूर्व सीएम हेंमत अपनी सरकार को दलित-आदिवासी और अल्पसंख्यकों की सरकार बताते रहे हैं, खुद चंपई सोरेन भी इसी दावेदारी को आगे बढ़ाते नजर आते हैं, इस बात का दावा ठोका जाता है कि झारखंड की राजनीति में इन दलित जातियों का प्रतिनिधित्व झामुमो के पास है, अपनी गिरफ्तारी के बाद अविश्वास प्रस्ताव में भाग लेने पहुंचे पूर्व सीएम हेमंत ने तब अपने संबोधन के दौरान बाबा साहेब के संघर्षों को याद करते हुए इस बात का दावा किया था कि यदि भाजपा इसी प्रकार आदिवासी दलितो के साथ भेदभाव करती रही तो एक दिन आदिवासी-दलितों के सामने बाबा साहेब के बताये रास्ते पर चलते हुए धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य होना पड़ेगा.फिर दलितों के प्रति यह प्रतिबद्ता सरकार के चेहरे में क्यों नहीं नजर आती, और यह स्थिति सिर्फ चंपाई सराकर की नहीं है, खुद हेमंत मंत्रिमंडल में भी दलितों का प्रतिनिधित्व शून्य था, और अब चंपाई मंत्रिमंडल भी उसी दिशा में कदम बढ़ा चुकी है.

 दो फीसदी ब्राह्मणों के हिस्से दो मंत्री पद और 12 फीसदी दलितों के हिस्से सन्नाटा

सवाल  यह है कि यह सारे वादे और नारे प्रतिनिधित्व प्रदान करते वक्त गायब क्यों हो जाते हैं.सवाल तो यह भी खड़ा किया जा रहा है कि दो फीसदी ब्राह्मण जाति के लिए दो मंत्री पद और 12 फीसदी दलितों के हिस्से सन्नाटा? यदि हम आदिवासी प्रतिनिधित्व से भी इसकी तुलना करने की कोशिश करें तो 26 फीसदी आदिवासी समुदाय के पास सीएम की कुर्सी से लेकर तीन-तीन मंत्रीपद है,तो फिर यह 12 फीसदी आबादी अपना प्रतिनिधित्व कहां खोजेगी.

भाजपा के हाथ मिला बड़ा सियासी मुद्दा

बैधनाथ राम के  मुद्दे को उछाल कर भाजपा अब चंपाई सराकर के साथ ही कांग्रेस और झामुमो को घेरने की राह  पर निकल चुकी है. और यही कारण है कि भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने बैधनाथ राम के  नाम पर कैंची चलते ही लिखा कि “अनुसूचित जाति विरोधी हैं @ChampaiSoren सरकार। बताया जाता है कि लातेहार से एससी वर्ग से आने वाले विधायक बैजनाथ राम जी को वारंट ऑफ अपॉइंटमेंट भी पहुंच गया था।लेकिन अंतिम समय में बाहरी दबाव के कारण उनका नाम काट दिया गया। पूरे मंत्रिमंडल में एक भी एससी समुदाय के व्यक्ति को जगह नहीं देना इस सरकार का एससी विरोधी चेहरा दिखता है । शर्म करो सरकार।“ भाजपा के  हाथ लोकसभा चुनाव के पहले कितना बड़ा सियासी हथियार हाथ लगा है इसका आकलन नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी के इस बयान में समझा जा सकता है, जिसमें वह कहते हैं कि शपथ ग्रहण के ठीक पहले वैद्यनाथ राम का नाम काटा जाना दलितों के साथ सियासी ठगी है. झारखंड की 50 लाख की अनुसूचित को ठगबंधन सरकार के द्वारा एक और ठगी किया गया है. दलितों के लिए कांग्रेस, जेएमएम और राजद में सिर्फ पार्टी का झंडा ढोने की जिम्मेवारी है.

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Published at:16 Feb 2024 08:12 PM (IST)
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