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मांझी की ‘आहत भावना’ में दिखने लगा चिराग! संकटग्रस्त बिहार में भाजपा के लिए खेवनहार बन कर सामने आये जीतन राम

मांझी की ‘आहत भावना’ में दिखने लगा चिराग! संकटग्रस्त बिहार में भाजपा के लिए खेवनहार बन कर सामने आये जीतन राम

Patna- राजनीति की अपनी उलटबासियां होती है, यहां कोई किसी का स्थायी दोस्त और दुश्मन नहीं होता. हर सियासतदान अपनी-अपनी राजनीतिक पिच की खोज में लगा रहता है, जैसे ही सामने से कोई कमजोर गेंद आयी और बाउंड्री का रास्ता दिखला दिया जाता है. राजनीति के इन उलटबासियों को समझने के लिए जीतन राम मांझी और उनके नये-नये खेवनहार बने भाजपा का किरदार इसका सबसे सटीक उदाहरण हैं. यह वही जीतन राम मांझी है, जिन्हे सीएम नीतीश के द्वारा गद्दी सौंपे जाने के बाद उनमें भगवान की छवि दिखलायी पड़ती थी, लेकिन जैसे ही कुर्सी गई सीएम नीतीश अचानक से दानव नजर आने लगें. जिस जीतन राम मांझी को अपनी लम्बी सियासत के बाद भी मगध के इलाके के बाहर कोई सियासी पहचान नहीं थी, अचानक से उसे बिहार में दलितों का नेता के रुप में चिह्नित किया जाने लगा. और इस पहचान से जीतन राम मांझी की राजनीतिक महात्वाकांक्षा में भी विस्तार हुआ और वह एक सियासी पार्टी “हम’ का गठन कर उसका सर्वेसर्वा बन गयें, और अपने कथित भगवान नीतीश का साथ छोड़कर भाजपा के साथ जाना बेहतर समझा.

लेकिन एक बार फिर से सियासत की धार बदली और वह एक बार फिर से नीतीश खेमे में वापस आ जुड़ें. और सीएम नीतीश ने उनके द्वारा कुर्सी छोड़े जाने के दौरान किये गये सारे तल्ख शब्दावलियों को भूला कर एक बार फिर से जीतन राम मांझी को भरपूर सम्मान दिया.

दलित राजनीति को धारदार बनाने की सियासत

इस बीच जीतन राम लगातार भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल खड़ा करते हुए अपनी दलित राजनीति की धार को सिमेंटेड करते नजर आयें. यह वही दौर था, जब जीतन राम मांझी ने ब्राह्मण जाति के बारे में भी कई बयान दिये थें और इसके  साथ दलित जातियों के द्वारा अपनी पूजा पाठ में पंडितों को बुलाये जाने पर कड़ी आपत्ति जताई थी, तब जीतन राम मांझी ने कहा था कि मेरे बचपन तक दलित जातियों के बीच सत्यनारायण कथा का कोई प्रचलन नहीं था, यह बीमारी धीरे धीरे पंडितों की ओर से दलितों के बीच संक्रमित कर दी गयी. दलितों को इस आडंबर से बाहर निकल अपना पूरा फोकस अपनी शिक्षा दीक्षा और जीवन को सुखमय बनाने पर लगाना चाहिए, इन नाहक चीजों में अपने खून पसीने की कमाई को बर्बाद कर अपने बच्चों के भविष्य को दांव नहीं लगाना चाहिए.  

भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल खड़ा करते ही आहत हो जाती थी भाजपा की भावना

और जैसे ही जीतन राम मांझी भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल खड़ा करते, भाजपा का कोमल भावना तुंरत आहत हो जाती. लेकिन भाजपा की इस आहत होती भावना से बेखबर जीतन राम मांझी लगातार यह दावा करते रहते कि राम कोई एतिहासिक पात्र नहीं है. उसका कोई अस्तित्व नहीं है. हालांकि इन तमाम बयानों से भाजपा की भावना सिर्फ और सिर्फ आहत ही होती थी. उसके ज्यादा कुछ नहीं, क्योंकि उसे भी मालूम था कि आज का जीतन एक दलित आइडेंटिटी बन चुका है, और भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दरअसल जीतन राम अपनी दलित राजनीति को धारदार बनाने का एक मुहिम भर चला रहे हैं, यह जीतना विस्तार लेगा, एक दिन यही आइडेंटिटी भाजपा को सियासी लाभ पहुंचायेगा. लेकिन जैसा की उपर की पंक्तियों में लिखा गया था कि राजनीति की अपनी उलटबासियां होती है.

जीतन राम मांझी की आहत भावना से भाजपा खेमे में उमंग

आज भावना जीतन राम मांझी की आहत हुई है, लेकिन बेचैनी, उत्सुकता और उमंग भाजपा में देखी जा रही है. और यह भावना और किसी ने नहीं, जीतन राम मांझी के उसी घोषित भगवान ने किया है, जिसने दर्जनों नेताओं और करीबियों को किनारा कर उन पर अपना दांव लगाया था. और जिसकी “गुनाह” ( वैसे सीएम नीतीश ने इसके लिए मुर्खता शब्द का प्रयोग किया है) की वजह जीतन राम मांझी सीएम की कुर्सी तक पहुंचे थें. लेकिन नीतीश के उस बयान से जीतन राम मांझी जितने आहत हैं,  भाजपा के अन्दर उतना ही आनन्द का संचार होता दिख रहा है. दरअसल भाजपा को यह विश्वास है कि जीतन राम मांझी की यह आहत भावना जितना विस्तार लेती है, और जिस तेजी से विस्तार लेती है, उतनी ही तेजी से जातीय जनगणना के बाद संकटग्रस्त बिहार में उसके लिए दिये की एक टिमटिमाती “लो” दिखलाई पड़ने की शुरुआत हो जायेगी. अब सोचना जीतन राम मांझी को है, वह इस कथित आहत भावना की पूर्णाहुति किस रुप में चाहते हैं. वह इस आहत भावना का सदुपयोग दलितों के सामाजिक राजनीतिक सशक्तीकरण में करना चाहते हैं या भाजपा के हाथों महज एक सियासी मोहरा बन पिछड़ों की राजनीति को कुंद करने की हसरत पालते हैं.

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Published at:14 Nov 2023 12:20 PM (IST)
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