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सीएम हेमंत की इंट्री से पलट सकता था छत्तीसगढ़ का पासा! तो क्या जीती बाजी हारने का जश्न मना रहे थें भूपेश बघेल

सीएम हेमंत की इंट्री से पलट सकता था छत्तीसगढ़ का पासा! तो क्या जीती बाजी हारने का जश्न मना रहे थें भूपेश बघेल

Ranchi- छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज की आबादी 32 फीसदी, जबकि दलितों की आबादी 12 फीसदी के आसपास है. इस बार के विधान सभा चुनाव में अनुसूचित जाति की दस आरक्षित सीटों में से कांग्रेस के हिस्से में छह, तो भाजपा के हिस्से चार सीटें आयी है.जबकि अनुसूचित जनजाति की 29 सीटों में से भाजपा को 16 और कांग्रेस को 12 पर सफलता मिली है, जबकि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी एक सीट पर कामयाबी हासिल करने में सफल रही है. इस प्रकार देखा जाय तो आदिवासी मतदाताओं ने कांग्रेस से किनारा कर भाजपा का साथ देना ज्यादा पसंद किया. और यह हालत तब है, जबकि सीएम भूपेश बघेल भाजपा के उग्र हिन्दूत्व की काट में लगातार सॉफ्ट हिन्दुत्व की बैटिंग करते हुए देखे जा रहे थें. और इसी सॉफ्ट हिन्दुत्व के बूते यह मान कर चल रहे थें कि 32 फीसदी आदिवासी समाज उनके साथ सवारी करना पसंद करेगा. और लेकिन चुनाव परिणामों ने भूपेश बघेल के पैरों से जमीन खिंच लिया है. और आज वह अपनी हार की समीक्षा करते चल रहे हैं.

सीएम हेमंत से परहेज तो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ समझौते से इंकार

भूपेश बघेल के अति आत्मविश्वास को इससे भी समझा जा सकता है कि जिस गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को वह पांच सीट देने को भी राजी नहीं थें, उसी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने ना सिर्फ अपने बुते एक सीट पर विजय हासिल किया, बल्कि दर्जनों सीटों पर कांग्रेस की हार का कारण भी बन गया. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस 32 फीसदी आबादी को साधने के लिए जहां भाजपा पूर्व सीएम बाबूलाल से लेकर दूसरे आदिवासी चेहरों से धुंआधार प्रचार करवा रही थी, वहीं अपने बेहतर संबंध और इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद कांग्रेस सीएम हेमंत को छत्तीसगढ़ के सियासी दंगल में उतारने में हिचक दिखला रही थी. यही हिचक क्यों थी, इसका बेहतर जवाब तो कांग्रेस और भूपेश बघेल के पास ही होगा, लेकिन चुनावी जंग के बीच भी सियासी जानकारों के द्वारा यह सवाल उठाया जा रहा था. जबकि उनके पास सीएम हेमंत जैसा मजबूत आदिवासी चेहरा मौजूद था, जो एक हद तक आदिवासी मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में खड़ा करने में सक्षम था. लेकिन तब भूपेश बघेल का आत्म विश्वास सांतवें आसमान पर हिचकोलें खा रहा था. लेकिन अब जब चुनाव परिणाम सामने है, कांग्रेस को अपनी रणनीति भूल का एसहास हो रहा है.

किसी आदिवासी को सीएम बनाकर भाजपा खेल सकती है बड़ा दांव

यहां ध्यान रहे कि आदिवासी दलितों की आबादी को यदि एक साथ खड़ा कर दिया जाय तो यह आबादी छत्तीसगढ़ की कुल आबादी का 44 फीसदी होता है, यदि इस बार भाजपा किसी आदिवासी चेहरे को सीएम बना देती है, तो छत्तीसगढ़ गठन के बाद पहली बार कोई निर्वाचित आदिवासी सीएम होगा, और उसके बाद 2024 में यह भूल कांग्रेस के लिए संकट खड़ा करने वाला साबित हो सकता है, क्योंकि यह बात भाजपा को भी पता है कि उसके और कांग्रेस के बीच वोटों का अंतर महज दो फीसदी का है, इस हालत में वह किसी आदिवासी को सीएम का चेहरा घोषित कर दे तो यह कोई आश्यर्य नहीं होगा.

आदिवासी समाज में सत्ता की भूख नहीं

यहां ध्यान रहे कि झारखंड के 26 फीसदी आबादी के विपरीत 32 फीसदी आदिवासी आबादी वाले छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज में अभी सत्ता की वह भूख नहीं देखी जा रही है, जो झारखंड के आदिवासी समाज मे देखने को मिलती है. नहीं तो किसी भी गैर आदिवासी के लिए छत्तीसगढ़ के सीएम का सपना देखना भी बेहद मुश्किल होता. हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि पिछड़ी जातियों की आबादी भी यहां करीबन 52 फीसदी की है. भूपेश बघेल के इस अति आत्म विश्वास के पीछे मुख्य वजह यही थी. लेकिन 52 फीसदी वाली पिछड़ी जातियों में सिर्फ साहू जाति की आबादी 20 से 22 फीसदी की है, और इस बार इसका एक बड़ा हिस्सा पीएम मोदी के चेहरे के साथ भाजपा के साथ ख़ड़ा हो गया और यही भूपेश बघेल के सपनों को बिखरने का बड़ा कारण बना.

हमेशा सामान्य जाति के विधायकों की संख्या अधिक रही है

जब हम आदिवासी समाज में सत्ता की भूख की कमी की बात कर रहे हैं तो हमें छत्तीसगढ़ गठन के बाद आज तक निर्वाचित विधायकों की सामाजिक पृष्ठभूमि की भी तलाश करनी होगी. और जब इन आंकड़ों को टटोलते हैं तो पाते हैं कि 44 फीसदी की आदिवासी-दलित और करीबन 52 फीसदी पिछड़ी जातियों की आबादी वाले इस प्रदेश में हमेशा से सामान्य जाति के विधायकों की संख्या अधिक रही है. लेकिन गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और दूसरी आदिवासी पार्टियों के द्वारा लगातार आदिवासी समाज में सत्ता की भूख पैदा की जा रही है. बहुत संभव है आने वाले कुछ एक दशक में इस प्रदेश की सियासी आबोहवा हमें काफी कुछ बदली नजर आये.

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Published at:05 Dec 2023 01:35 PM (IST)
Tags:CM Hemant could have changed the fate of Chhattisgarhbhupesh baghelcm bhupesh baghelbhupesh baghel newschhattisgarh cm bhupesh baghelcm bhupesh baghel newssamdish bhupesh baghelbhupesh baghel news todaybhupesh baghel wonbhupesh baghel leadsbhupesh baghel latesthemant sorenhemant soren newscm hemant sorenjharkhand cm hemant sorencm hemant soren newshemant soren today newshemant soren cmjharkand cm hemant sorenhemant soren jharkhand newshemant soren jharkhandjharkhand hemant sorenhemant soren latest newshemant soren speechhemant soren interviewhemant soren hindi newsjharkhand hemant soren newscm hemantcm hemant newscm hemant soren live newschhattisgarh assembly elections 2023chhattisgarh assembly election 2023chhattisgarh electionassembly elections 2023assembly election 2023chhattisgarh election 2023chhattisgarh elections 2023chhattisgarh assembly electioncg assembly election 2023chhattisgarh election 2023 datechhattisgarh elections 2023 newschhattisgarhchhattisgarh newschhattisgarh electionsmp election 2023chhattisgarh assembly election result
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