Ranchi-पूर्व पार्षद रोशनी खलखो की ओर से दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने 14 मई 2020 से राज्य के 34 नगर निकायों में लंबित चुनाव की प्रक्रिया पर अपनी नाराजगी प्रकट करते राज्य सरकार को तीन सप्ताह के अंदर अंदर चुनाव की अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है. और इसके साथ ही पंचायत चुनाव के समान ही निकाय चुनाव में पिछड़ों की हकमारी का रास्ता साफ हो गया है, और पिछड़ों की इस हकमारी का जिम्मेदार कोर्ट का फैसला नहीं होकर राज्य सरकार का थ्री लेयर टेस्ट को लेकर शिथिल रवैया है.
बगैर थ्री लेयर टेस्ट के पिछड़ों का आरक्षण प्रदान नहीं किया जा सकता
दरअसल जब तक थ्री लेयर टेस्ट की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर लिया जाता, तब तक पिछड़ी जातियों को आरक्षण प्रदान नहीं किया जा सकता, थ्री लेयर टेस्ट वह प्रकिया है, जिसके राज्य में पिछड़ों की संभावित जनसंख्या की जानकारी मिलती है, झारखंड सरकार ने 30 जून 2023 को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के माध्यम से थ्री लेयर टेस्ट करवाने का निर्णय लया था. लेकिन दुखद स्थिति यह है कि आज के दिन राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पास उसका अध्यक्ष ही नहीं है. इसके अध्यक्ष रहे सेवानिवृत जस्टिस लोकनाथ प्रसाद की मौत पिछले साल जनवरी माह में हो गयी थी, तब से यह पद खाली है. पिछले वर्ष ही तीन नवम्बर अध्यक्ष पद खाली रहने पर झारखंड हाईकोर्ट ने अपनी कड़ी नाराजगी जतायी थी. बावजूद इसके इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई.
सरकार की नियत पर सवालिया निशान
इस हालत में स्वाभाविक रुप से राज्य सरकार की नियत पर सवाल खड़े होते हैं, एक तरफ सरकार जातीय जनगणना करवाने का दंभ भरती है, और बेहद हड़बड़ी में बगैर जातीय जनगणना के ही पिछड़ी जातियों के आरक्षण विस्तार का फैसला भी ले लेती है, तो दूसरी ओर वही सरकार पंचायत चुनाव से लेकर निकाय चुनाव तक पिछड़ों की हकमारी का रास्ता भी साफ करती दिखती है.
राज्य में पिछड़ी जातियों की संभावित संख्या करीबन 54 फीसदी
यहां बता दें कि एक अनुमान के अनुसार राज्य में पिछड़ी जातियों की जनसंख्या करीबन 54 फीसदी की है, साफ है कि यदि कोर्ट के फैसले के दवाब में सरकार की ओर से अधिसूचना जारी करने की पहल की जाती है, तो निश्चित रुप से 2024 के लोकसभा चुनाव में यह विपक्षी दलों के हाथ में इस सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा होगा, और इसके साथ ही विभिन्न ओबीसी संगठनों की ओर से भी मोर्चेबंदी की जा सकती है.