Ranchi-जयराम महतो की सियासी इंट्री के साथ ही स्थापित राजनीतिक दलों में एक बेचैनी सी महसूस की जाने लगी है. इस आंधी में उनका अब तक का बना बनाया समीकरण उलटता नजर आ रहा है, खासकर उनके सामने कुर्मी मतदाताओं को साथ बनाये रखने की चुनौती खड़ी हो गयी है. और इसकी वजह बिल्कुल साफ है, आदिवासियों के बाद कुर्मी जाति को झारखंड की दूसरी सबसे बड़ी आबादी मानी जाती है. वैसे कुछ कुर्मी नेताओं के द्वारा कुर्मी जाति की आबादी तो आदिवासी समुदाय की आबादी से भी अधिक बतायी जाती है. लेकिन इस विवाद को छोड़कर यदि हम उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करें तो आज के दिन 14 लोकसभा सांसदों में से कुर्मी जाति के महज दो सांसद है. यही हाल दूसरी पिछड़ी जातियों का भी है. जबकि इसके विपरित सामान्य जाति जिसकी आबादी महज 14 फीसदी के आसपास है, उसके कुल पांच सांसद है, इसमें भी सारे के सारे सारे सांसद भाजपा कोटे से हैं. बिडम्बना यह भी है कि इनमें से अधिकांश सांसदों की जड़े गैर झारखंडी है. धनबाद सांसद पशुपतिनाथ सिंह, हजारीबाग सांसद- जयंत सिन्हा, रांची-संजय सेठ, चतरा-सुनील सिंह, गोड्डा निशिकांत दुबे के विरुद्ध बाहरी होने का आरोप लगता रहा है.
सता रहा है कुर्मी मतदाताओं का खिसकने का डर
इस हालत में यदि कुर्मी जाति को अपनी आवाज को प्रतिनिधित्व देने वाला एक आवाज मिल जाता है तो निश्चित रुप से कुर्मी मतदाताओं का रुझान उनकी ओर मुड़ सकता है. और यही वह संभावना हैं, जहां स्थापित राजनीतिक दलों में एक बेचैनी सी पसरती नजर आ रही है. और बदले हालात में अब जयराम के चेहरे को सामने रख कर अपने अपने सियासी मोहरों को नये सिरे से खोजा रहा है. हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि अब तक जयराम ने अपने चेहरे को कभी भी कुर्मी पॉलिटिक्स तक सीमित रखने की कोशिश नहीं की है, ना ही कभी भी अपने को कुर्मी पॉलिटिक्स का बादशाहत अपने हाथ में लेने की मंशा पाली है. जयराम की कोशिश को झारखंड की सियासत में एक लम्बी लकीर खिंचने की है. जो आदिवासी मूलवासी के हितों की बात करता है, उनकी सामाजिक और सियासी हिस्सेदारी की वकालत करता है.
जमशेदपुर में अंदर खाने भाजपा है हलकान
जयराम की इसी सियासी इंट्री का पहला असर गिरिडीह में देखने को मिला, जहां जयराम से जुझने के बजाय आजसू इस सीट को भाजपा के हवाले करने पर विचार करने लगी, और इसके बदले वह हजारीबाग संसदीय सीट पर अपनी नजर जमाये हुए है. अब दूसरी खबर जमशेदपुर से आयी है. दावा किया जाता है कि इस बार भाजपा विद्धुतवरण महतो को बेटिकट कर झामुमो से कमल थामने वाले कुणाल षाड़ंगी पर दांव लगाने की पूरी तैयारी कर चुकी थी. लेकिन जैसे ही यह खबर मिली की जयराम की टीम भी जमशेदपुर से अपना प्रत्याशी उतारने का मन बना रही है, उसने अचानक से इस आंधी को रोकने के लिए विश्व हिन्दू परिषद से अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने वाले गौतम महतो पर दांव लगाने का मन बना रही है. हालांकि भाजपा विद्धुत वरण महतो जैसे तेज तर्रार कुर्मी चेहरा के बदले कुणाल षाड़ंगी पर दांव क्यों लगाना चाहती थी, यह भी एक बड़ा सवाल है. जहां तक जीत की मार्जिन का सवाल है, 2019 में विद्धुत वरण महतो ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे झामुमो के चंपई सोरेन को करीबन तीन लाख मतों से मात दी थी, बावजूद इसके विद्धुत वरण महतो की विदाई से कुर्मी मतदाताओं में नाराजगी फैल सकती थी, खास कर तब जब जमशेदपुर में जयराम की इंट्री की खबरे आ रही हो, शायद इसी सियासी बेचैनी में गौतम महतो के चेहरे में जयराम का काट ढुढ़ने की कोशिश की जा रही है.
बन्ना की मनमानी, सीएम के हिस्से का फैसला खुद ले रहे हैं मंत्री, सरयू राय ने ट्वीट कर किया आगाह