Ranchi-चतरा संसदीय सीट पर राजद कोटे से मंत्री सत्यानंद भोक्ता का कमल छाप के साथ सियासी अखाड़े में उतरने की तमाम अफवाहों पर अब विराम लगता दिख रहा है. दावा किया जा रहा है कि राजद सुप्रीमो की ओर सत्यानंद भोक्ता को इस बात का की हरी झंडी मिल चुकी है कि इंडिया एलायंस के तहत यह सीट राजद कोटे आ चुकी है, इस बार चतरा के अखाड़े में लालटेन को जलाने की जिम्मेवारी उनके ही कंधों पर है और इसके साथ ही सत्यानंद के डोलते मन पर विराम लग गया.
ध्यान रहे कि वर्ष 1999 में शहीद जगदेव के बेटे नागमणि और वर्ष 2004 में कमल को झटका दे लालटेन की सवारी करने वाले धीरेन्द्र अग्रवाल चतरा संसदीय सीट पर लालटेन का जलबा कायम कर चुके हैं. लेकिन 2024 के बाद से राजद यहां सूखे का शिकार है. 2009 में पूर्व भाजपा नेता और झारखंड विधान सभा के अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने इस सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के रुप में अपनी जीत दर्ज की, तो 2014 भाजपा से सुनिल सिंह ने झंडा संभाला और लगातार कमल को खिलाते रहें. लेकिन इस बार भाजपा ने झारखंड की दो सीट को होल्ड पर रखा है, इसमें से एक चतरा संसदीय सीट और दूसरा धनबाद की सीट है. इस हालत में अब सियासी गलियारों में यह सवाल उमड़ने लगा है कि आखिर इस बार भाजपा का चेहरा कौन होगा? यहां यह भी ध्यान रहे कि इस बार चतरा संसदीय सीट पर बाहरी भीतरी की हवा तेज होती नजर आ रही है. वर्तमान सांसद सुनील सिंह का पत्ता कटने के पीछे बाहरी भीतरी की बहती हवा को भी एक मुख्य वजह बतायी जा रही है. दूसरी चर्चा इस बात को लेकर भी है कि इस बार भाजपा झारखंड में किसी एक ही राजपूत जाति को उम्मीदवार बनाने जा रही है.
धनबाद के समीकरण से तय होगा चतरा का चेहरा
इस हालत में धनबाद के समीकरण से भी चतरा का चेहरा तय होने की संभावना है. इस हालत में जिन सियासी सुरमाओं को चतरा के अखाड़े में उतरने के दावे किये जा रहे हैं, उनका सपना टूट भी सकता है. हालांकि एक स्थानीय चेहरा पांकी विधायक शशिभूषण मेहता का भी सियासी गलियारे में जरुर उछल रहा था. लेकिन दावा किया जाता है कि शशिभूषण मेहता लगे कई गंभीर आरोपों के मद्देनजर भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व को फिलहाल इस नाम पर विचार करने को तैयार नहीं है, खबर तो यह भी है कि इस नाम को प्रस्तावित करने के कारण झारखंड भाजपा पदाधिकारियों को फटकार भी लगायी गयी है. इस हालत में भाजपा के लिए स्थानीय चेहरे की खोज एक मुश्किल टास्क साबित हो सकता है. क्योंकि भाजपा के अंदर टिकट की चाहत रखने वालों की एक लम्बी लाईन है. लेकिन इस सूची में कोई भी स्थानीय और मजबूत चेहरा मौजूद नहीं है. हालांकि भाजपा अपने चौंकाने वाले फैसले के लिए भी जानी जाती है. इस हालत में यदि धनबाद का कांटा सुलझ जाता है तो किसी स्थानीय चेहरे का एलान कर एक ही झटके में सारे कयासों पर विराम लगा सकती है.
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