Patna-एक तरफ जहां एनडीए में घटक दलों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर उपरी तौर पर एक शांति नजर आ रही है, वहीं दूसरी ओर इंडिया एलाइंस में जदयू को उस माले की ओर से सीख लेने को मजबूर होना पड़ा रहा है, और यह हालत तब है जब माले को आज भी संसद में अपनी इंट्री का इंतजार है और बहुत संभव है कि यदि जदयू का साथ मिला तो माले की ओर से पहली बार कोई संसद में दहाड़ लगाता नजर आयेगा. दरअसल माले ने जदयू को सीटिंग सीटों पर चुनाव लड़ने की जिद्द छोड़कर सम्मानजनक समझौते की बात करने की नसीहत दी है, उसने कहा है कि जदयू को सीट शेयरिंग का मुद्दा सुलझाने के पहले बदली हुई जमीनी हालात का आकलन करना चाहिए, पिछले विधान सभा में माले ने मगध, शाहाबाद, सारण में जबर्दस्त प्रर्दशन किया था, जिसका लाभ महागठबंधन को भी मिला था. बदले हुए सियासी हालात में जदयू के पार्टनर भी बदले हैं, इस हालत में जदयू का हर जीती हुई सीट पर चुनाव लड़ने का दावा उचित नहीं है.
पांच से कम सीट पर राजी होने को तैयार नहीं माले
यहां बता दें कि इस बार माले अपने हिस्से में लोकसभा की पांच सीटों चाहती है, उसकी नजर सीवान, काराकाट, जहानाबाद पर है, माले का दावा है कि इन सीटों पर उसकी पकड़ इंडिया गठबंधन के दूसरे घटकों की तुलना में काफी मजबूत है. हालांकि सीट शेयरिंग के वक्त घटक दलों के बीच इस प्रकार की रस्साकशी बेहद आम है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से जिस प्रकार बिहार में दीपांकर भट्टाचार्य की की सक्रियता बढ़ी है, उसके बाद यह माना जा रहा है कि इस बार माले अपने समर्थन की पूरी कीमत वसूलने का इरादा रखती है, ताकि उसके लिए भविष्य के सियासी दरवाजे खुल जायें. दूसरी ओर किसी भी कीमत पर जदयू अपनी ताकत को कमजोर होने देना नहीं चाहती, ना ही भाजपा को तंज कसने का कोई अवसर देना चाहती है, कि हमारे साथ रहकर 16 सांसद और पाला बदलते ही सीटों की संख्या में भी कटौती.
आग इधर भी लगी हुई है
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि आग इधर ही लगी हुई है, जिस प्रकार महागठबंधन के मुकाबले के लिए भाजपा के द्वारा एक विशाल कुनबा खड़ा किया गया है, बगावत की आग वहां भी फैलती नजर आ रही है, बड़े भाई नीतीश का साथ छोड़कर भाजपा के साथ खड़े हुए उपेन्द्र कुशवाहा कुल पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का दम खम दिखलाते नजर आने लगे हैं. उन सारी संभावित सीटों पर उनका दौरा तेज हो चुका है, चिराग पासवान और उनके चाचा पारस दोनों का दावा छह-छह सीटों पर है, हाजीपुर संसदीय सीट को लेकर चाचा भतीजे के बीच कोहराम की स्थिति बनी हुई है, इधर पूर्व सीएम जीतन राम मांझी भी तीन सीट से कम पर समझौता तो तैयार नहीं है. और यदि इन सबों को उनकी चाहतों के हिसाब से सीटों का आवंटन कर दिया गया तो खुद भाजपा के सामने सीटों की किल्लत खड़ी हो जायेगी.
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