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LS Poll Ranchi-संजय सेठ की पारी पर यशस्विनी का विराम! तीन लाख अतिरिक्त मतों का जुगाड़ करने की चुनौती

LS Poll Ranchi-संजय सेठ की पारी पर यशस्विनी का विराम! तीन लाख अतिरिक्त मतों का जुगाड़ करने की चुनौती

Ranchi-सियासत में जब तक अंतिम बाजी आपके हाथ नहीं आ जाती, अनिश्चिताओं का बादल मंडराता ही रहता है, सियासी दांव-पेंच में कब कौन सगा दगा दे जाय, कुछ कहा नहीं जा सकता. कुछ यही हालत रांची संसदीय सीट से पांच बार कमल खिलाने वाले और झारखंड की सियासत में एक बड़ा कुर्मी चेहरा माने जाने वाले रामटहल चौधरी के साथ हुआ. कांग्रेस मुख्यालय में जब रामटहल चौधरी को कांग्रेस का पट्टा पहनाया जा रहा था, तब पूर्व सांसद सुबोधकांत भी उस तस्वीर का एक बेहद खास हिस्सा थें.

रांची संसदीय सीट पर 3 लाख कुर्मी मतदाता

दिल्ली की उस तस्वीर को राजधानी रांची में बड़े गौर से देखा जा रहा था. गली-मुहल्ले में एक ही चर्चा थी कि इस कुर्मी स्टालवार्ट को पार्टी में शामिल करवा कर सुबोधकांत ने अपनी सियासी पारी पर अघोषित विराम लगा दिया. क्योंकि रांची संसदीय सीट पर 17 फीसदी कुर्मी मतदाताओं की मौजूदगी इस बात की खुली तस्दीक है कि रामटहल चौधरी टिकट वितरण में सुबोधकांत पर भारी पड़ने वाले हैं. इसके साथ ही पूरे शहर में यह बात फैलती देर नहीं लगी कि इस बार संजय सेठ के सामने सुबोधकांत का चेहरा नहीं होकर रामटहल चौधरी की चुनौती होगी. इस अटकलबाजी के पीछे एक गंभीर तर्क भी था, और वह तर्क 2019 के चुनावी नतीजों से सामने आ रहा था.

वर्ष 2019 में तीन लाख से हुई सुबोधकांत की हार

दरअसल वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जब सुबोधकांत संजय सेठ के मुकाबले अखाड़े में उतरे थें तो दोनों के बीच हार-जीत का अंतर तीन लाख सत्तरह हजार का था. सुबोधकांत को तब कुल  4,23,802 वोट मिले थें. अब यदि हम सुबोधकांत सहाय के मिले मतों को समझने की कोशिश करें तो इसमें करीबन 1.5-2.5 लाख वोट अल्पसंख्यक समाज, 20 हजार से 50 हजार- कायस्थ और करीबन एक लाख वोट अन्य का था. बावजूद इसके सुबोधकांत को मंजिल तक पहुंचने के लिए करीबन तीन लाख मतों की अतिरिक्त जरुरत थी, यानि यदि कांग्रेस के साथ एक मजबूत जातीय समूह साथ हो जाता तो बाजी पलट सकती थी.

क्या है रांची का सामाजिक समीकरण

यदि हम रांची के सामाजीक समीकरण पर एक नजर डालें तो तस्वीर कुछ और साफ हो सकती है. एक अनुमान के अनुसार रांची संसदीय सीट पर कुर्मी-2-3 लाख, मुस्लिम-1.5-2 लाख, राजपूत-50 से 70 हजार, बनिया-50,000 से एक लाख, कोयरी-50,000 से 1 लाख, ब्राह्मण 30,000 से 70,000 के आसपास है. अब यदि हम सुबोधकांत के मिले चार लाख वोटों में कुर्मी और कोयरी की आबादी को जोड़ कर समझने की कोशिश करें तो तीन लाख कुर्मी और एक  लाख कोयरी के सहारे इस खाई को पाटा जा सकता था.

क्या था रामटहल चौधरी की दावेदारी का आधार

यही वह समीकरण है जिसके आधार पर रामटहल चौधरी की उम्मीदवारी मजबूत मानी जा रही थी. लेकिन सियासत की राह इतनी आसान कहां होती है, रामटहल चौधरी को तमाम आश्वासनों के साथ कांग्रेस का पट्टा तो पहना दिया गया. लेकिन टिकट से बेटिकट कर सियासी अरमानों पर पानी भी फेर दिया गया. पार्टी ने अपने गुणा भाग या जो भी फीडबैक रहा हो उसके आधार पर सुबोधकांत की बेटी यशस्विनी सहाय पर दांव लगाने का फैसला किया. निश्चित रुप से रामटहल चौधरी की तुलना में यशस्विनी सहाय युवा चेहरा है, उच्च शिक्षित है, युवाओं के बीच उनकी अपनी अपील भी हो सकती है. लेकिन सियासत का अंतिम सत्य सामाजिक समीकरण है. जहां वह पिछड़ती नजर आती है. सवाल है कि क्या यशस्विनी सहाय अपने चेहरे के बूते युवा मतदाताओं के बीच से तीन लाख वोटों का जुगाड़ कर सकने की स्थिति में हैं, या फिर इस खाई को भरने के लिए कांग्रेस को किसी विशेष सामाजिक समूह को अपने साथ जोड़ने की रणनीति पर काम करना होगा? इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि वह सामाजिक समूह कौन सा होगा? क्या भाजपा के टिकट वितरण से कथित तौर नाराज राजपूत जाति इस कमी को पूरा करने की स्थिति में है? या ब्राह्मणों को साध कर इस खाई को भरा जा सकता है.

यशस्विनी सहाय के चेहरे के साथ किस सामाजिक समूह को साध सकती है कांग्रेस

यहां यह भी याद रहे कि सामान्य रुप से अगड़ी जातियों को भाजपा का कोर वोटर माना जाता है. तो क्या यशस्विनी सहाय के चेहरे के बूते अगड़ी जातियां कांग्रेस के साथ आ खड़ी होगी. या वैश्य समुदाय भाजपा का साथ छोड़ पंजे की सवारी करना पसंद करेगा? या फिर अनुसूचित जनजाति की मांग द्वारा ठुकराये जाने के बाद कुर्मी जाति में जो कथित तौर पर भाजपा के प्रति नाराजगी पसरने के दांवे हैं, उस पर दांव लगाना बेहतर विकल्प होता?  वैसे ही कुर्मी जाति का आरोप रहा है कि उसकी संख्या के अनुपात में भाजपा में उसे समान्य नहीं मिला, 17 फीसदी कुर्मियों को महज एक सीट का झुनझुना थमा कर उनकी सामाजिक हकमारी की गयी. अब देखना होगा कि यशस्विनी सहाय तीन लाख की इस गहरी खाई को कितना पाटती है?  युवा वर्ग का साथ मिलता है या कुर्मी जाति का भरोसा? दूसरी परेशानी यह है कि 2019 के करारी शिकस्त के बाद राजधानी रांची में कांग्रेस की कोई मजबूत गतिविधि भी नहीं रही है. खुद सुबोधकांत भी इन पांच वर्षो में जमीन पर उतर कर संघर्ष करते नहीं दिखे हैं. इस हालत में देखना होगा कि कांग्रेस का यह सियासी प्रयोग कौन सा रंग खिलाता है? संजय सेठ को कितनी बड़ी चुनौती पेश होती है या फिर सिर्फ लड़ाई की औपचारिकता पूरी करने की औपचारिकता पूरी की जाती है.

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Published at:25 Apr 2024 12:42 PM (IST)
Tags:LS Poll Ranchi-Yashaswini's stop on Sanjay Seth's innings! Challenge to collect three lakh additional votesSanjay Sethsanjay sethmp sanjay sethsanjay seth ranchibjp candidate sanjay sethsanjay seth upsanjay seth bjpmp sanjay seth newsranchi sanjay sethranchi mp sanjay sethsanjay seth on motionbjp mp sanjay seth newssanjay seth latest newssanjay singhranchi bjp mp sanjay sethchallenge before Yashaswini in Ranchicross the deep gap of three lakhsyashaswini sahayyashashwini sahaycongress candidate yashaswini sahaysubodh kant sahayyashaswinisubodh kant sahaisubodh kant sahay newslok sabha election 2024subokant sahayRamtal Choudhary was betrayed by Congress
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