रांची(RANCHI): गोड्डा के सियासी दंगल में अपनी चौथी पारी के लिए ताल ठोंकते हुए कभी निशिकांत दुबे ने दावा किया था कि यदि उनके सामने प्रदीप यादव की चुनौती आती है, इंडिया गठबंधन की ओर से प्रदीप यादव को उम्मीदवार बनाया जाता है, तो उनके लिए प्रचार-प्रसार पर निकलने की जरुरत नहीं होगी. हालांकि यह आत्मविश्वास था या इंडिया गठबंधन के अंदर प्रदीप यादव की उम्मीदवारी को कमजोर करने की सियासी चाल, इसका फैसला तो चार जून के नतीजों से स्पष्ट हो जायेगा. लेकिन फिलहाल प्रदीप यादव को अखाड़े में उतरने के बाद इस चिलमिलाती धूप में निशिकांत दुबे और उनका पूरा परिवार पसीना बहाता नजर आ रहा है. इस आत्म विश्वास के बावजूद निशिकांत के नामांकन में राजनाथ सिंह अपनी मौजूदगी दर्ज कर हवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि यह हवा कितनी बनेगी, और निशिकांत की राह कितनी मुश्किल और कितनी आसान है, फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता. लेकिन इतना साफ है कि इस बार निशिकांत दुबे को सिर्फ प्रदीप यादव की चुनौतियों का सामना ही नहीं करना है, बल्कि बड़ी चुनौती अपने उन महारथियों को साधने की है, जिनके बूते अब तक सियासी कारवां बढ़ता रहा है.
कई चेहरे ताल ठोंकने की तैयारी में
दरअसल इस बार निशिकांत के सामने कई ऐसे चेहरे ताल ठोंकने की तैयारी में है, जो पिछले चुनाव तक उनकी जीत के अपना खून-पसीना बहा रहा थें. जीत की बिसात बिछाते थें, इधर आलम यह है कि भाजपा जिसे कार्यकर्ताओं की पार्टी मानी जाती थी, जहां हार-जीत की पूरी कमान कार्यकर्ताओं के हाथ में होती है, इस बार गोड्डा का चुनावी प्रचार भाजपा कार्यकर्ताओं के बजाय निशिंकात दुबे की पत्नी और बेटे के हाथ में नजर आ रही है. बाउंसरों के घेरे में यह जनसंपर्क अभियान इलाके में चर्चा का विषय बन चुका है. लेकिन बड़ी चुनौती उन महारथियों को साधने की है, जिनके आसरे अब तक निशिकांत जीत का परचम फहराते रहें है, इसी में एक नाम बबलू खबाडे का है. बता दें कि बबलू खबाड़े देवधर के प्रथम मेयर रहे हैं. वर्तमान में इनकी पत्नी रीता राज मेयर हैं. दावा किया जाता है कि देवघर सहित दूसरी सभी शहरी क्षेत्रों में निशिकांत के पक्ष में हवा बनाने में बबलू खबाड़े की अहम भूमिका होती थी. लेकिन इस बार बबलू खबाड़े बगावती भूमिका में है, जिसके कारण शहरी मतदाताओं के बीच निशिकांत को चुनौतियों का सामना करना पड़ा सकता है.
अभिषेक झा की चुनौती
दूसरा नाम अभिषेक झा का है. अभिषेक झा 2009 मधुपुर विधान सभा से भाजपा के उम्मीदवार भी रहे हैं, हालांकि उस मुकाबले में अभिषेक झा को हार का सामना करना पड़ा था. बावजूद इसके उनके हिस्से 18 फीसदी मत आया था, जबकि 32 फीसदी मत के साथ हाजी हुसैन बाजी मार गये थें. लेकिन बड़ी बात यह है कि चाहे 2009 हो या 2014 या फिर 2019 अभिषेक हर बार निशिकांत के साथ खड़े रहें, लेकिन इस बार अभिषेक खुद ही अखाड़े में उतरने को बेचैन है. इस हालत में निशिकांत दुबे की परेशानी बढ़नी स्वाभाविक है.
राज पालिवार का कांटा
याद रहे कि अभिषेक झा बिहार के पूर्व सीएम विनोदानंद झा के परपोते हैं और मधुपुर विधान सभा से 2000 में ताल ठोक चुके कृष्णनंदन झा के पोते हैं. यहां यह भी बता दें कि वर्ष 2009 में मधुपुर से अभिषेक झा को भाजपा का टिकट दिलवाने में निशिकांत दूबे की अहम भूमिका रही थी, दरअसल भागलपुर से चलकर गोड्डा में इंट्री के साथ ही निशिकांत दूबे की पहली मुठभेड़ राज पालिवार से हुई थी, राज पालिवार मधुपुर विधान सभा से विधायक भी रहे चुकें थें और उन्हे इस बात का विश्वास था कि इस बार भाजपा गोड्डा से मौका देगी, लेकिन जब भाजपा के रणनीतिकारों ने भागलपुर से निशिकांत दुबे को गोड्डा लाकर मैदान में उतारने का फैसला किया, तो दोनों के बीच तलवारें खींच गयी. बताया जाता है कि वर्ष 2009 में गोड्डा का टिकट लेकर जैसे ही निशिकांत दुबे जसीडीह स्टेशन पहुंचे दोनों के समर्थकों के बीच भिड़त हो गयी, वह भिड़त आज भी किसी ना किसी रुप में जारी है. इसी में एक औरनाम संजयानन्द झा का भी है, संजयानन्द झा देवघर के पहला उपमेयर रहे हैं. दावा किया जा रहा है कि इस बार संजयानन्द झा भी निशिकांत दुबे की राह में अड़चन पैदा करने की तैयारी में हैं, इस हालत में साफ है कि जिस अगड़ी जातियों को भाजपा का कोर वोटर माना जाता है, इस बार निशिकांत दुबे के लिए चुनौती वहीं से खड़ी होती दिख रही है, और यदि इस पर विराम नहीं लगा, प्रदीप यादव के बजाय उनके अपने ही किश्ती डूबा सकते हैं.
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