Ranchi-झारखंड का प्रवेश द्वार और माइका कैपिटल के रुप में अपनी पहचान रखने वाले कोडरमा लोकसभा में भाजपा ने एक बार फिर से निवर्तमान सांसद अन्नपूर्णा देवी पर अपना दांव लगाया है, तो दूसरी ओर से भाकपा माले ने वगोदर विधायक और शहीद कॉमरेड महेन्द्र सिंह के बेटे विनोद कुमार सिंह को मैदान में उतार कर इस केसरीया गढ़ में लाल झंडा का परचम फहराने का फैसला किया है. दोनों ही ओर से जीत की हुंकार भरी जा रही है, एक दूसरे को सियासी जंग में पटकनी देने का ताल ठोका जा रहा है. लेकिन सियासतदानों के इस दावों के उलट जमीन पर किसकी गूंज है और कौन वापसी का जोर लगा रहा है, यह समझना बेहद जरुरी है.
कोडरमा में राजद का भी मजबूत जनाधार
यहां याद रहे कि भले ही अन्नपूर्णा को आगे कर इस बार भी भाजपा ने कमल खिलाने का ताल ठोका है. लेकिन उनकी सियासी सफर की शुरुआत राजद के साथ हुई थी. वर्ष 2000, 2005 और 2009 में अन्नपूर्णा लगातार कोडरमा विधान सभा से लालेटन का परचम फहराती रही थी, लेकिन वर्ष 2014 में जैसे ही नीरा यादव के हाथों मात मिली. अन्न्पूर्णा ने कमल की सवारी का फैसला कर लिया. यहां यह भी बता दें कि उस वक्त तक कोडरमा में राजद का मजबूत जनाधार माना जाता था और खुद अन्नपूर्णा राजद की प्रदेश अध्यक्ष हुआ करती थी. लेकिन नीरा यादव के हाथों मिली सियासी शिकस्त के बाद अन्नपूर्णा को यादव जाति के बीच बदलती सियासत का एहसास हुआ. दरअसल वर्ष 2014 के विधान सभा मुकाबले के पहले राष्ट्रीय राजनीति में पीएम मोदी का पदार्पण हो चुका था और यादव जाति के बीच यह धारण बन चुकी कि इस बार झारखंड में भाजपा की सरकार बनने जा रही है, इस हालत में उसके पास नीरा यादव को मंत्री बनाने का एक बेहतरीन अवसर है. दावा का जाता है कि यादव जाति की इसी रणनीति से अन्नपूर्णा को झटका लगा और वह 2019 आते-आते वह खूद भी भाजपा की सवारी कर बैठी. और अन्नपूर्णा का यह दांव सही जगह लगा, कमल की सवारी के साथ ही अन्नपूर्णा को कोडरमा से उम्मीदवार बना दिया गया और वह तात्कालीन झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबूलाल को करीबन चार लाख मतों से पटकनी देकर दिल्ली पहुंचने में सफल रहीं. अब अन्नपूर्णा एक बार फिर से इस सियासी अखाड़े में है और उनके सामने है झारखंड की सियासत का एक बड़ा चेहरा और माले नेता महेन्द्र सिंह के बेटे विनोद सिंह. पिता महेन्द्र सिंह की हत्या के बाद विनोद सिंह वर्ष 2005, 2009 और 2019 में बागोदर से माले का झंडा बुलंद कर चुके हैं.
सामाजिक सियासी समीकरण
यदि हम बात वर्तमान सामाजिक समीकरण की करें तो कोडरमा संसदीय सीट में कुल छह विधान सभा आता है. इसमें अभी कोडरमा से भाजपा की नीरा यादव, बरकट्टा से निर्दलीय अमित कुमार यादव, धनवार से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, बगोदर से खुद विनोद सिंह, जमुआ सुरक्षित से भाजपा के केदार हाजरा और गांडेय से कांग्रेस सरफराज आलम थें, जो अब राज्य सभा पहुंच चुके हैं, और इसके साथ ही गांडेय विधान सभा के लिए उपचुनाव की घोषणा भी हो चुकी है. इस प्रकार छह में तीन पर भाजपा का कमल और एक निर्दलीय विधायक अमित यादव का समर्थन है तो दूसरी ओर सीपाईएम एल और झामुमो का एक-एक विधायक है. यदि सामाजिक समीकरण की बात करें तो इस संसदीय सीट पर यादव-2.60 लाख, मुस्लिम-2 लाख, बाभन- 2 लाख, कोयरी कुर्मी- 2.20 लाख, आदिवासी-1.50 लाख, दलित-2 लाख, वैश्य-1.50 हैं.
इंडिया गठबंधन और भाजपा का सियासी पेंच
यानि इंडिया गठबंधन की जीत का पूरा दामोदार मुस्लिम-2 लाख, कोयरी-2.20 के साथ करीबन 1.50 लाख आदिवासी मतों पर नजर आता है, जबकि दूसरी ओर भाजपा 2.60 यादव, 2 लाख भूमिहार और 1.50 वैश्य को अपने पाले में मानती है. लेकिन पेंच यह है कि कागज पर दिखने वाला यह समीकरण क्या जमीन पर उतना ही भरोसेमंद है. क्या जिस कोयरी-कुर्मी जाति को इंड़िया गठबंधन अपने पाले में मान कर चल रहा है, क्या इस सियासी संग्राम में वह विनोद सिंह के साथ खड़ा होने जा रहा है या फिर जयप्रकाश वर्मा का टिकट कटने के बाद वह एनडीए का रुख करने की तैयारी में है.कोडरमा की सियासत पर नजर रखने वालों का दावा है कि टिकट की घोषणा के पहले तक जिस उत्सुकता के साथ जयप्रकाश वर्मा मोर्चे पर नजर आ रहे थें. विनोद सिंह की उम्मीदवारी का एलान होते ही उनकी सारी गतिविधियां बंद हो चुकी है. इस हालत में बड़ा सवाल यह है कि दो लाख कोयरी जाति की भूमिका इस बार क्या होने वाली है? दूसरी ओर जिस अन्नपूर्णा के चेहरे के सहारे भाजपा 2.60 यादव जाति को अपने पाले में मान रही है? क्या सब कुछ उसी दिशा में जाने वाला है. क्योंकि जयप्रकाश वर्मा भले ही चुप्पी साध गयें हो, लेकिन भूतपूर्व विधायक राजकुमार यादव पूरे दम खम के साथ विनोद सिंह के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. इस प्रकार साफ है कि इस बार हार जीत के इस खेल में यादव जाति के साथ ही कोयरी जाति की व्यूह रचना भी नजर रखनी होगी, और विनोद सिंह का रास्ता इस बात से भी खुलता नजर आयेगा कि सामान्य जातियों के बीच वह कितनी बड़ी सेंधमारी कर पाते हैं, लेकिन इतना साफ है कि अभी चंद दिन पहले तक जिस कोडरमा में अन्नपूर्णा देवी की एकपक्षीय जीत के दांवे किये जा रहे थें, वह हर गुजरते दिन के साथ संघर्षपूर्ण मुकाबले में तब्दील होता नजर आने लगा है.
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