TNPDESK-रांची जिले का मांडर विधान सभा, गुमला जिले का गुमला और सिसई विधान सभा और लोहरदगा विधान सभा को अपने आप में समेटे लोहरदगा लोकसभा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. यदि इस लोकसभा के इतिहास को खंगालने की कोशिश करें तो वर्ष 1989 के पहले तक इस लोकसभा में एकछत्र कांग्रेस का डंका बजता था. लेकिन वर्ष 1989 में यहां पहली बार ललित उरांव के रुप में कमल का खिलता है. कुल मिलाकर इस सीट पर अब तक आठ बार पंजा तो छह बार कमल खिल चुका है.
झारखंड की राजनीति का एक मजबूत आदिवासी चेहरा और कांग्रेसी नेता रहे कार्तिक उरांव को इस लोकसभा सीटे से तीन-तीन बार प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. हालांकि 1977 के इंदरा विरोधी लहर में कार्तिक उरांव को भी हार का सामना करना पड़ा था, तब जनता पार्टी के लालू उरांव ने कार्तिक उरांव को सियासी पटकनी देने में कामयाबी हासिल की थी. उसके बाद ललित उरांव कमल की सवारी कर दो-दो बार संसद की दहलीज तक पहुंचने में सफल रहें, वर्तमान सांसद सुदर्शन भगत की भी यह तीसरी पारी है. इसके पहले वर्ष 2009, 2014 और 2019 में वह अपना झंडा बुलंद कर चुके हैं.
क्या चौथी बार सुदर्शन भगत को मौका देगी भाजपा
इस हालत में यह एक बड़ा सवाल है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सुदर्शन भगत को आगे कर कार्तिक उरांव के इस रिकार्ड को तोड़ने का अवसर देगी या मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की राह चलते हुए इस पारी को विराम देकर किसी नये चेहरे की तलाश करेगी.
कांग्रेस के राज्य सभा सांसद धीरज साहू परिवार का बजता है यहां डंका
यहां यह भी ध्यान रहे कि यह वही लोहरदगा है, जहां से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज साहू आते हैं, इनका पुस्तैनी आवास इसी जिले में है, आज भी जिले में धीरज साहू और उनके परिवार का जलवा चलता है, हालांकि जिस वक्त औडिशा और राजधानी के ठिकानों से पांच सौ करोड़ रुपये का कैश मिलने की खबर चल रही थी, तब राजधानी रांची में यह सवाल भी उमड़-घूमड़ रहा था कि देश प्रदेश में अपनी संपत्ति से डंका बजाने वाले धीरज साहू ने इस इलाके की तस्वीर बदलने की पहल क्यों नहीं की. उनकी इस अपार संपदा के बावजूद आज भी इस लोकसभा क्षेत्र में इतनी भूखमरी, बेबसी और बेरोजगारी क्यों है? कम से कम इस इलाके के युवको को अपनी ही शराब कंपनियों और ठेकों में नौकरी दे देतें, कुछ परिवारों की जिंदगी में तो खुशहाली आ जाती. कई आदिवासी मूलवासी युवकों को जिंदगी का राह मिल जाता.
पिछले तीन लोकसभा चुनावों में कैसा रहा संघर्ष
यदि हम इन बातों को विराम देकर हम पिछले तीन लोकसभा चुनावों के परिणाम को खंगालने की कोशिश करें तो वर्ष 2009 में सुदर्शन भगत ने यहां कमल छाप पर जीत का परचम लहराया था, तब भाजपा के मुकाबले कांग्रेस ने यहां से वर्तमान वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव को मैदान में उतारा था, जबकि वर्तमान में विशुनपुर विधान सभा से झामुमो विधायक चमरा लिंडा बतौर स्वतंत्र प्रत्याशी मैदान में थें, और तब चमरा लिंडा ने रामेश्वर उरांव के 1,29,622 मतों की तुलना में 1,136,345 वोट लाकर अपनी मजबूत दावेदारी का सबूत पेश कर दिया था. वर्ष 2014 के मुकाबले में यहां से भाजपा की ओर से एक बार फिर से सुदर्शन भगत ही मैदान में थें, बावजूद इसके कांग्रेस ने अपने पुराने प्रत्याशी रामेश्वर उरांव को ही मैदान में उतारने का फैसला किया और रामेश्वर उरांव एक बार फिर से महज छह हजार से मतों से मैदान से बाहर हो गयें, जबकि चमरा लिंडा इस बार भी टीएमसी की सवारी करते हुए 1,18,355 मतों के साथ एक बार फिर से अपनी मजबूत दावेदारी दर्ज कर गयें.
अपनी दावेदारी छोड़ने को तैयार नहीं कांग्रेस
इस हार दर हार के बावजूद कांग्रेस ने इस सीट से अपनी दावेदारी नहीं छोड़ी, और वर्ष 2019 में उसने एक बार फिर से अपना दम लगाया, लेकिन इस बार उसने अपना प्रत्याशी जरुर बदला, अपने जिलाध्यक्ष सुदर्शन भगत को भाजपा के सुदर्शन भगत के मुकाबले मैदान में उतार कर बाजी पलटने की अंतिम कोशिश की. इस बीच चमरा लिंडा जेएमएम में शामिल हो चुके थें और साथ ही वह विशुनपुर से विधायक भी निर्वाचित हो चुके थें, दावा किया जाता है कि इस बार भी यदि कांग्रेस ने इस सीट को झामुमो को सौंप दिया होता तो चमरा लिंडा को आगे कर झाममो इस सीट को बेहद आसानी से निकाल ले जाती. लेकिन हार दर हार के बावजूद कांग्रेस आज भी इस सीट को छोड़ने को तैयार नहीं, वह आज भी अपने पुराने दिन का याद समय काटती दिख रही है.
क्या है इंडिया गठबंधन की गुंजाईश
अब इस पृष्ठभूमि में यही इस सीट से इंडिया गठबंधन की जीत की गुंजाईश का आकलन करने की कोशिश करें तो कहा जा सकता है कि यदि सही प्रत्याशी और सिम्बल के साथ भाजपा को चुनौती पेश की जाय तो भाजपा का यह किला अभेद नहीं है. इंडिया गठबंधन बेहद आसानी यहां भाजपा को पटकनी दे सकता है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि तमाम हार के बावजूद क्या कांग्रेस अपना दांवा छोड़ने को तैयार होगी, इसका फैसला कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को करना है. लेकिन इतना निश्चित है झामुमो अपने बैनर तले चमरा लिंडा को आगे कर इंडिया गठबंधन को जीत का तोहफा प्रदान कर सकती है. देखना होगा कि इंडिया गठबंधन की दिल्ली बैठक के बाद झारखंड में क्या फैसला होता है? झामुमो, जदयू, राजद के साथ ही कांग्रेस के हिस्से में कितनी सीटें आती है और कांग्रेस को कितनी सीटों पर सिमटना पड़ता है.