Ranchi-लोकसभा चुनाव की अधिसूचना के साथ ही सियासी दलों में अपने-अपने प्रत्याशियों का एलान करने का दौर जारी है. भाजपा ने भी झारखंड की कुल 14 में से 11 सीटों पर अपने प्रत्याशियों का चेहरा साफ कर दिया है. लेकिन गिरिडीह सीट पर एनडीए का चेहरा कौन होगा? अभी भी संशय के बादल तैरते नजर आ रहे हैं. भाजपा सूत्रों का दावा है कि चूंकि यह सीट आजसू खाते की है. इसलिए प्रत्याशी कौन होगा?, इसका फैसला आजसू को करना है. इधर सियासी गलियारों में एक खबर यह भी तैर रही है कि आजसू की चाहत इस बार गिरिडीह के बदले हजारीबाग से चुनाव लडऩे की थी. लेकिन भाजपा भी गिरिडीह दंगल में उतरने को तैयार नहीं थी और उसने हजारीबाग से अपने प्रत्याशी का एलान कर आजसू के विकल्प बंद कर दिये और इसके साथ ही आजसू के लिए गिरिडीह के दंगल में उतरना एक सियासी मजबूरी बन गयी. दावा किया जा रहा है कि हजारीबाग से भाजपा प्रत्याशी के एलान के बाद आजसू की कोशिश गोमिया विधायक लम्बोदर महतो को दंगल में उतराने की थी. लेकिन लंबोदर महतो ने भी ताल ठोंकने से इंकार कर दिया और इस बात की घोषणा कर दी कि चन्द्रप्रकाश चौधरी ही आजसू के उम्मीदवार होंगे. लेकिन मुश्किल यह है कि चन्द्रप्रकाश चौधरी कहीं से चुनावी रंगत में दिख नहीं रहे. खबर है कि चन्द्रप्रकाश चौधरी की इच्छा इस बार लोकसभा के बदले विधान सभा में अपना किस्मत आजमाना की है. इस सियासी पसमंजर में साफ है कि गिरिडीह को लेकर चन्द्रप्रकाश चौधरी के अंदर कहीं ना कहीं कुछ दुविधा है. वहीं स्थानीय लोगों का दावा है कि इन पांच वर्षों में शायद ही कभी चन्द्र प्रकाश चौधरी जमीनी मुद्दों पर संघर्ष करते नजर आयें, उनकी उपस्थिति भी बेहद सीमित रही. दावा तो यह भी है कि चन्द्रप्रकाश चौधरी ने गिरिडीह से हटने मन बहुत पहले ही बना लिया था, और वह गिरिडीह के बदले हजारीबाग में कुछ ज्यादा ही सक्रिय नजर आ रहे थें. लेकिन मनीष जायसवाल के नाम का एलान के बाद उनके रास्ते बंद हो गयें.
इंडिया गठबंधन से गिरिडीह में चेहरा कौन?
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह असमंजस सिर्फ आजसू भाजपा में है. सवाल तो यह भी है कि इंडिया गठबंधन से गिरिडीह में चेहरा कौन होगा? मुथरा महतो से लेकर पूर्व विधायक जयप्रकाश वर्मा का नाम सुर्खयों में तो जरुर है. लेकिन कोई तस्वीर साफ होती नजर नहीं आती. हालांकि अंदरखाने सबसे अधिक चर्चा टुंडी विधायक महतो की ही हैं. बावजूद इसके मथुरा महतो में भी एक असमंजस देखी जा रही है, वैसे यह असमंजस चुनाव लड़ने को लेकर नहीं, बल्कि टिकट को लेकर हैं. उनका कहना है कि जब तक प्रत्याशियों का औपचारिक एलान हो जाता, कुछ भी बोलना उचित नहीं होगा? उनकी नजर राज्य की बदलती सियासत पर भी बनी हुई है. सीता सोरेन के पालाबदल के बाद वह काफी अर्लट दिख रहे हैं. इस बीच गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार सोनू मथुरा महतो के नाम का एलान भी कर दिया है. बावजूद इसके मथुरा महतो ने कहा कि सरफराज अहमद और सोनू बार बार तैयारी शुरु करने की बात कर रहे हैं, लेकिन तैयारी क्या करना है, हम तो इसी मिट्टी से है, हमारे लिए यह पीच कोई नई नहीं हैं. यानि मथुरा महतो पार्टी तमाम आश्वासन के बावजूद टिकट को लेकर बहुत मुतमईन नजर नहीं आते.
क्या सियासी दलों के अंदर जयराम को लेकर किसी विशेष रणनीति की तैयारी है?
इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि क्या पार्टी के अंदर किसी और नाम पर भी चर्चा चल रही है. क्या बदले सियासी हालात में झामुमो भी किसी और चेहरे की तलाश भी जारी है, या उसका गुणा भाग किया जा रहा है. जिसकी खबर मथुरा महतो को है और यदि आजसू से लेकर झामुमो में लगातार नये-नये चेहरे पर विचार किया जा रहा है तो उसका कारण क्या है? सियासी जानकारों का दावा है कि इसका एकमात्र कारण गिरिडीह अखाड़े में जयराम महतो की इंट्री है. जिस प्रकार से जयराम की सभाओं में युवाओं की भीड़ जुट रही है, बाहरी भीतरी के नारे लग रहे हैं. उसके बाद हर स्थापित सियासी दल के अंदर एक बेचैनी सी दिख रही है. हालांकि हर सियासी दल की चाहत जयराम को उसी के अखाड़े में सियासी शिकस्त देने की जरुर है. लेकिन यह एक मुश्किल टास्क नजर आने लगा है, और इसी मुश्किल टास्क को आसान बनाने के लिए तमाम उन चेहरों को एक बार फिर से खंगाला जा रहा है, जिसको आगे कर जयराम की इस लोकप्रियता का मुकाबला किया जा सके. चन्द्रप्रकाश चौधरी की उदासीनता और झामुमो अंदर के संकोच का कहानी यही है.
गिरिडीह का सियासी-सामाजिक समीकरण
हालांकि यदि हम वर्तमान सियासी समीकरण की बात करें तो गिरिडीह के छह विधान सभाओं में आज तीन पर झामुमो, एक पर कांग्रेस, एक पर भाजपा और एक पर आजसू है. गिरिडीह विधान सभा से झामुमो के सुदिव्य कुमार सोनू, डुमरी से झामुमो के बेबी देवी, गोमिया से आजसू के लम्बोदर महतो, बेरमो से कांग्रेस के कुमार जयमंगल, टुंडी से झामुमो के मथुरा महतो और बाधमारा से भाजपा के ढुल्लू महतो विधायक है. इस सियासी तस्वीर के साथ इंडिया गठबंधन की पकड़ कुछ मजबूत दिखलायी जरुर पड़ती है, लेकिन जयराम की इंट्री के बाद सारे समीकरणों पर सवाल खड़ा होने लगे हैं. रही बात सामाजिक समीकरण की तो एक आकलन के अनुसार गिरिडीह में अनुसूचित जनजाति की आबादी-15 फीसदी, अनुसूचित जाति 11 फीसदी और मुस्लिम आबादी-17 फीसदी है. जबकि पिछड़ी जातियों में कुर्मी मतदाताओं की आबादी सबसे ज्यादा करीबन 15 फीसदी है. इस आंकड़े के हिसाब से इंडिया गठबंधन की सियासी जमीन कुछ ज्यादा ही मजबूत नजर आती है. लेकिन मुख्य चुनौती यह है कि 15 फीसदी कुर्मी मतदाता इस बार किसके साथ खड़ा होगा? जिस अल्पसंख्यक को इंडिया गठबंधन अपना कोर वोटर मानता है. जयराम की इंट्री के बाद उसका रुख क्या होगा? कुल मिलाकर हर सियासी दल के सामने जयराम एक सवाल बन कर खड़ा नजर आता है. हालांकि आन्दोलन का चरित्र और सियासत का दांव की तासीर अलग होती है. उसके समीकरण अलग होते हैं, कई बार आन्दोलन के मुद्दे सियासी पीच से गायब नजर आते हैं, इस हालत में जयराम कितना कमाल कर पायेंगे, यह चुनावी नतीजों से ही तय होगा. हालांकि हनक जरुर दिख रही है. सवाल यह भी है कि यदि जयराम कुर्मी मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा अपने पाले में खड़ा करने में भी सफल हो जाते हैं, तो इसका नुकसान किसको होगा?