Ranchi-इन दिनों बाबूलाल गंगा में डूबकी लगा कर झारखंड की सियासत में आस्था का प्रसाद बांटते नजर आ रहे हैं. जमीनी संघर्ष और आन्दोलन के बजाय वह सोशल मीडिया पर सीएम हेमंत के खिलाफ अपनी भड़ास निकालते कुछ ज्यादा ही नजर आ रहे हैं. दूसरी ओर झारखंड संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह संगठन महामंत्री से कहीं आगे बढ़कर पार्टी अध्यक्ष की भूमिका का निर्वाह करते नजर आ रहे हैं. हर दिन उनकी तस्वीरें स्थानीय मीडिया की सुर्खियां बन रही है, छोटे से छोटे आयोजनों में भी उनकी उपस्थिति देखने को मिल रही है, चाहे राम मंदिर उद्घाटन के अवसर आमंत्रण अक्षत बांटने का कार्यक्रम हो या पार्टी की कोई दूसरी गतिविधियां हर जगह आप बाबूलाल के स्थान पर कर्मवीर सिंह को देख सकते हैं, इस हालत में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि झारखंड में पार्टी का चेहरा कौन है?
नयी सियासी लकीर खिंचने की तैयारी में तो नहीं हैं कर्मवीर
यहां याद रहे कि भाजपा में संगठन महामंत्री के रुप में आरएसएस कार्यकर्ताओं की तैनाती कोई नई बात नहीं है. माना जाता है कि संघ परिवार से आने वाले ये कार्यकर्ता बगैर किसी राग विद्वेष के पर्दे के पीछे रहकर पार्टी को एकजूट रखने में अपनी भूमिका का निर्वाह करेंगे, भाजपा में उनके जुड़ाव के कारण संघ परिवार को भाजपा के अंदर चल रहे गतिविधियों पर नजर रहेगी. लेकिन कर्मवीर जूदा राह पर चलते दिख रहे हैं, उनके तेवरों और खुली सक्रियता से इस बात का आभास होता है कि जैसे वह खुद ही पार्टी अध्यक्ष है, और जैसे चाहे वह पार्टी को हांकने की स्थिति में है, उनके लिए पर्दे के पीछे रहने की परंपरा का कोई अर्थ नहीं है. वह झारखंड की सियासत में नयी पंरपरा और सियासी लकीर खिंचने का मन बना चुके हैं.
क्या दिल्ली दरबार से दी गयी है कर्मवीर को अघोषित शक्ति
इस हालत में यह सवाल खड़ा होता है कि क्या यह सब कुछ कर्मवीर सिंह अपनी मर्जी से कर रहे हैं, या इसके पीछे दिल्ली दरबार के द्वारा दी गयी अघोषित शक्ति है. क्योंकि दिल्ली दरबार हर बार अपने फैसले से लोगों को चौंकाती रही है, क्या किसी ने सोचा था कि रातों रात पूर्व सीएम रघुवर दास को झारखंड का मायामोह छोड़कर ओड़िशा भेज सियासी वनवास अपनाने को मजबूर कर दिया जायेगा, तब यह माना गया था कि यह पूरी कवायद बाबूलाल मरांडी को झारखंड की सियासत में खुला हाथ देने के लिए किया गया है, ताकि बाबूलाल रघुवर दास की मौजदूगी के कारण अपने आप को बंधा नहीं पायें, लेकिन अब जिस तरीके से कर्मवीर सिंह की भूमिका देखने को मिल रही है, उससे लगता है कि दिल्ली दरबार ने बेशक रघुवर दास को सियासी वनवास अपनाने को मजबूर कर दिया हो, लेकिन बाबूलाल को भी खुली छुट्ट नहीं दी गयी है, उन पर सियासी नियंत्रण के लिए कर्मवीर सिंह को सक्रिय रहने का आदेश संदेश दे दिया गया है, ताकि बाबूलाल अपने आप को झारखंड भाजपा का भाग्य विधाता समझने की भूल नहीं कर बैठें.
अब तक अपनी कमिटी का गठन नहीं कर पाये बाबूलाल
यह सवाल इसलिए भी मौजूं नजर आता है, क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी संभाले हुए बाबूलाल को एक अर्सा हो गया, बावजूद इसके अभी तक उनके द्वारा अपनी कमिटी का गठन नहीं किया गया है, आज भी वह रघुवर राज के पदाधिकारियों को सहारे ही पार्टी को हांकते नजर आ रहे हैं, इस हालत में यह सवाल जरुर खड़ा होता है कि क्या बाबूलाल का अपनी कोर कमिटी भी बनाने की छूट नहीं है, अपने पंसद के चेहरें को आगे करने की भी ताकत नहीं दी गयी है, एक आदिवासी चेहरा होने के कारण सिर्फ उनका चेहरा आगे कर यहां के आदिवासी मूलवासियों को एक प्रतीकात्मक संदेश देने की कोशिश की गयी है, लेकिन वास्तविक अर्थों में उनके हाथ खाली है. और शायद यही कारण है कि आज भाजपा में हर नेता का अपनी डफली अपनी राग है. 2024 का जो महासंग्राम लड़ा जाना है, और उसके बाद विधान सभा में जिस तरीके से संथाल से कोल्हान तक झामुमो के साथ मुकाबला करना है, उसकी कोई तैयारी होती नहीं दिखती, बीच बीच में जरुर कोल्हान में शिविर का आयोजन कर एकजूटता का संदेश देने की कोशिश की जाती है, लेकिन मुश्किल तो यह है कि रघुवर दास के समय से पार्टी में पद संभाल रहे पुराने चेहरों को यह पता नहीं है कि भविष्य में उनका क्या होने वाला है. इस हालत में वह कितनी उर्जा के साथ मैदान में डटे होंगे,इसकी कल्पना की जा सकती है, दूसरी ओर जो चेहरे बाबूलाल के करीबी है, उन्हे भी इस बात का इंतजार है कि पार्टी में उन्हे भी हिस्सेदारी भागीदारी प्राप्त होगा, और तो और पार्टी ने विपक्ष के नेता पर जिस अमर बाउरी को आगे किया है, यह वही अमर बाउरी है, जिसे सियासी लांच बाबूलाल ने प्रदान किया था, और बाद में दूसरे विधायको के साथ वह भाजपा में पलटी मार गये थें, अब सियासत का दर्द यह है कि जिस अमर बाउरी के प्रति बाबूलाल के दिल में ना जाने कितना आक्रोश है, आज वही अमर बाउरी विपक्ष का चेहरा है, और वैसे चेहरे जो हर वक्त बाबूलाल के साथ खड़े रहें, बाबूलाल के साथ रहकर भी भाजपा से दूर हैं. कहा जा सकता है कि 2024 को लेकर आज के दिन भाजपा के पास कोई प्लान नहीं है, उसकी नजरे सिर्फ ईडी की गतिविधियों और मोदी नाम केवलम के जाप है. यदि झारखंड में मोदी मैजिक चला तो बल्ले बल्ले और नहीं चला तो भला विपक्ष की राजनीति से कौन खारिज कर सकता है, वैसे भी सीएम हेमंत ने कई बार कहा है कि इनके करतूतों के कारण जनता ने इन्हे लम्बे समय तक विपक्ष में रखने का मन बना लिया है. बावजूद इसके इतना तो कहा ही जा सकता है कि कर्मवीर सिंह की यह सक्रियता बाबूलाल के एक खतरे की अघोषित घंटी है.
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