TNP DESK-लालू यादव पूरे फार्म में है, झारखंड हो या बिहार सियासत को अपनी उंगलियों पर नचाते दिख रहे हैं, लालू की इस बैटिंग से ना सिर्फ भाजपा हलकान है, बल्कि इंडिया गठबंधन का अहम घटक कांग्रेस की नींदे भी उड़ी नजर आ रही है, और बेचारगी का आलम यह है कि हर बार कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को लालू की शर्तों पर अपनी सियासत करनी पड़नी रही है. इसकी एक बानगी बिहार है. जहां कांग्रेस की हसरतें 15 सीटों पर अपने पहलवानों को उतारने की थी. लेकिन लालू ने साफ कर दिया कि कांग्रेस के इन सुस्त पहलवानों के भरोसे 2024 की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है. यदि गठबधंन को अपनी मिट्टी पलीद नहीं करवानी है, तो उसे हमारी उंगलियों पर नाचना होगा. यानि हमारी रणनीतियों पर अपनी सियासी बिसात बिछानी होगी और हुआ भी वही 15 सीटों की मांग करती रही कांग्रेस को आखिरकार 9 सीटों पर सरेंडर करना पड़ा. अब लालू वही रणनीति झारखंड में भी बिछाते नजर आ रहे हैं. सात की सीटों की मांग पर अड़ी कांग्रेस को लगभग झामुमो से हरी झंडी मिल चुकी थी, लेकिन जैसे ही लालू यादव को इस बात की भनक लगी कि चेहरों के टोटे से गुजर रही कांग्रेस इन तमाम सीटों पर जनाधार विहीन पहलवानों को मैदान में उतार कर इंडिया गठबंधन का खेल बिगाड़ सकती है. चतरा से गिरिनाथ सिंह तो पलामू से ममता भुईयां को पार्टी का सिम्बल थमा दिया.
क्या है पलामू का सामाजिक समीकरण
यहां ध्यान रहे कि अभी चंद दिन पहले ही लालू ने ममता भुइंया को भाजपा से राजद में शामिल करवाया था, उस समय भी यह खबर सामने आयी थी कि राजद की रणनीति ममता को पलामू के अखाड़े से उतारने की है, और इसके पीछे की वजह पलामू का सामाजिक समीकरण है. एक आकलन के अनुसार पलामू में अनुसूचित जाति 27 फीसदी, अनुसूचित जनजाति 11 फीसदी और अल्पसंख्यक 13 फीसदी है. हालांकि पिछड़ी जातियों का कोई प्रमाणित डाटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन दावा किया जाता है कि पलामू में अल्पसंख्यक-चार लाख, यादव 1.5 लाख, भईयां तीन लाख, रविदास 2.5, कोयरी कुर्मी 1.5 लाख और ब्राह्मण-राजपूत संयुक्त रुप से 1.5 लाख के करीब है. इस आंकडे के साथ लालू की रणनीति बेहद साफ है. अल्पसंख्यक और यादव को राजद का कोर वोटर माना जाता है, यदि ममता भुइंया को आगे कर तीन लाख की आबादी वाले भुईंया जाति को अपने पाले में खड़ा कर दिया जाता है तो बीडी राम की तीसरी पारी पर विराम लगाया जा सकता है.
लालू की रणनीति को सामने आती ही एक्टिव हुई थी कांग्रेस
लेकिन जैसे कांग्रेस की लालू के इस चाल की खबर मिली, कांग्रेस ने लालू की काट पर काम करना शुरु कर दिया. उसकी रणनीति भाजपा से प्रभात भुइंया को कांग्रेस में शामिल करवा कर मैदान में उतारने की थी. हालांकि इसके पहले तक पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के लेकर दूसरे छोटे-मोटे स्थायीय चेहरों के सहारे मैदान में उतरने की थी. लेकिन जैसे ही यह खबर सामने आयी की चेहरे को टोटे से गुजर रही कांग्रेस मीरा कुमार को मैदान में उतारने की है. गठबंधन के अंदर यह बहस तेज हो गयी कि आखिर मीरा कुमार को बिहार से लाकर पलामू में कितनी चुनौती दी जा सकती है? और उसके बाद भी लालू ने ममता भुइंय की इंट्री करवायी, लेकिन लालू की इस रणनीति में कांग्रेस को अपने हाथ से एक और सीट निकलता दिखा और उसने प्रभात भुइंया पर डोरा डालने की शुरुआत की, उधर लालू किसी भी कीमत पर झारखंड में दो सीट से कम पर लड़ने को तैयार नहीं थें. दावा किया जाता है कि जैसे ही लालू यादव को इस खेल की खबर मिली, ममता भुईँया को बुलाकर टिकट थमा दिया. हालांकि ममता भुइंया के द्वारा अभी तक इसकी औपचारिक घोषणा नहीं की गयी है, लेकिन यहां याद रहे कि जब लालू यादव ने पुर्णिया से बीमा भारती को सिम्बल दिया था, तो भी बेहद खामोशी से दिया गया था. टिकट वितरण के काफी दिन बाद तक सस्पेंस बना रहा था. इधर पप्पू यादव अपना जोर लगाते रहें, बाद में यह जानकारी सामने आयी कि बीमा भारती को तो टिकट भी मिल चुका है. कुछ यही स्थिति पलामू में बनती नजर आ रही है. इधर कांग्रेस अपने पहलवान की खोज में लगी है, उधर लालू ने टिकट देकर ममता को सियासी अखाड़े में भेज दिया है. अब देखना होगा कि लालू की इस रणनीति के बाद झारखंड में महागठबंधन के अंदर क्या उथल पूथल मचता है. हालांकि सियासी जानकारों का दावा है कि कांग्रेस के पास लालू के इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के सीवा कोई विकल्प नहीं है.
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