Ranchi-सीता सोरेन के इस्तीफे के साथ ही झारखंड की सियासत में कई रंग एक साथ देखने को मिल रहे हैं. एक तरफ कल्पना सोरेन परोक्ष रुप से सीता सोरेन पर निशान साधते हुए इस बात का तोहमत लगा रही है कि जिस दुर्गा सोरेन ने अपनी पूरी जिंदगी झारखंडी अस्मिता के लिए पूंजिपतियों और सामन्तवादियों से संघर्ष किया. झामुमो की उस समाजवादी और वामपंथी विचाराधारा को तिलाजंलि देते हुए सीता ने भाजपा का दामन थाम लिया. यह आदिवासी समाज की उस परंपरा के विपरीत है, आदिवासी समाज ने कभी पीठ दिखाकर, समझौता कर, आगे बढ़ना नहीं सीखा. झारखण्डियों के डीएनए में झुकना नहीं होता, सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है सतत संघर्ष ही”
सीता का पलटवार
अब कल्पना के इस वार पर प्रतिकार करते हुए सीता सोरेन ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर लिखा है कि” मेरे पति स्वर्गीय दुर्गा सोरेन जी के निधन के बाद से मेरे और मेरे बच्चों के जीवन में जो परिवर्तन आया, वह किसी भयावह सपने से कम नहीं था। मुझे और मेरी बेटियों को न केवल उपेक्षित किया गया, बल्कि हमें सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी अलग-थलग कर दिया गया, ईश्वर जानता है कि मैंने इस दौर में अपने बेटियों को कैसे पाला है। मुझे और मेरी बेटियों को उस शून्य में छोड़ दिया गया, जहां से बाहर निकल पाना हमारे लिए असंभव लग रहा था। मैंने न केवल एक पति खोया, बल्कि एक अभिभावक, एक साथी और अपने सबसे बड़े समर्थक को भी खो दिया, मेरे इस्तीफे के पीछे कोई राजनीतिक कारण नहीं है। यह मेरी और मेरी बेटियों की पीड़ा, उपेक्षा और हमारे साथ हुए अन्याय के खिलाफ एक आवाज है। जिस झारखंड मुक्ति मोर्चा को मेरे पति ने अपने खून-पसीने से सींचा, वह पार्टी आज अपने मूल्यों और कर्तव्यों से भटक गई है। मेरे लिए, यह सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि मेरे परिवार का एक हिस्सा था। मेरा निर्णय भले ही दुःखदायी हो, लेकिन यह अनिवार्य था। मैंने समझ लिया है कि अपनी आत्मा की आवाज़ सुनना और अपने आदर्शों के प्रति सच्चे रहना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। मैं समस्त झारखंडवासियों से अनुरोध करती हूं कि मेरे इस्तीफे को एक व्यक्तिगत संघर्ष के रूप में देखें, न कि किसी राजनीतिक चाल के रूप में, वरना अगर मैं और मेरे बच्चों ने मुँह खोलकर भयावह सच्चाई उजागर किया तो कितनों का राजनैतिक और सत्ता सुख का सपना चूर चूर हो जायेगा और झारखंड की जनता वैसे लोगों के नाम पर थूकेंगी, जिन्होंने हमेशा से दुर्गा सोरेन और उनके लोगों को मिटाकर समाप्त करने की साज़िश की है”
सीता सोरेन की इस वेदना से उठते सवाल
और सीता की इस वेदना के साथ ही दीवारों में दफन सोरेन परिवार का अंतर्कलह भी सरे आम आ गया. इस पोस्ट के बाद यह भी साफ हो गया कि यह वेदना आज की नहीं है. यह तड़प, व्यथा और सियासी अवसाद सीता के अंदर लम्बे समय से पनप रही थी. बहुत संभव है कि चंपाई सरकार में हिस्सेदारी नहीं मिलने के बाद यह तड़प और भी बढ़ गयी हो. साथ ही हेमंत की गिरफ्तारी के बाद जिस तरीके से कल्पना पार्टी का चेहरा बन कर सामने आती दिखी, उसके बाद तो जैसे सीता को यह विश्वास हो गया कि झामुमो के साथ सियासत की गाड़ी हांक वह ना तो अपना भविष्य को संवार सकती है और ना ही अपनी बेटियों को तकदीर संवार सकती है. और शायद इसी के बाद सीता ने उस भाजपा के साथ जाने का फैसला किया, जिस भाजपा की ओर से चंद दिन पहले तक आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप और हाउस ट्रेडिंग मामले की जांच एक बार फिर से शुरु करने की बात कही जा रही थी. निशिकांत दुबे तो सीधे सीधे जेल जाने की चेतावनी दे रहे थें. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सीता के बेटियों के सीने में कौन सा वह राज छिपा है, जिसके उजागर होने के बाद हेमंत सोरेन की सियासत पर विराम लग सकता है. फिलहाल इस राज के खुलासे के लिए हमें इंतजार करना होगा. देखना होगा कि दो गोतनियों की यह लड़ाई आने वाले दिनों में किस मुकाम तक पहुंचता है, और सियासत के अभी कौन कौन से रंग और देखने को मिलता है.
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