Ranchi-राज्य में जारी सियासी चहलकदमी के बीच “जो गलत करेगा, उसे तो अंजाम भुगतना ही पड़ेगा” के अल्फाज के साथ तमिलनाडू प्रस्थान कर चुके, महामहिम सीपी राधाकृष्णनन झारखंड लौट चुके हैं, और इसके साथ ही इस बात की चर्चा तेज हो चुकी है कि क्या महामहिम किसी फैसले के करीब खड़े हैं. क्या उनके मन में कोई खिचड़ी पक रही है?
क्या हटने वाला है बंद लिफाफे से गोंद
क्या वह बंद लिफाफा, जिसकी मजमून हैरतअंगेज रुप से चंद भाजपा नेताओं के द्वारा मीडिया में साक्षा किया जा रहा था, और इस बात का दावा किया जा रहा था कि चुनाव आयोग ने लीज आवटंन मामले में सीएम हेमंत की सदस्यता खत्म करने का फरमान सुनाया है, हालांकि बंद लिफाफे की मजमून उनके हाथ कैसे लगी, इसका जवाब देने की हालत में आज भी कोई नहीं है, और यदि चुनाव आयोग ने सीएम हेमंत की सदस्यता खत्म करने का फरमान ही सुनाया था, तो पूरे एक साल तक यह लिफाफा बंद क्यों रहा, क्यों एक मुजरीम को सूबे झारखंड के तख्तोताज पर विराजमान रहने दिया गया? और दिया गया तो यह फैसला किसका था? तात्कालीन राज्यपाल ने इस बंद लिफाफे से गोंद हटाने की कोशिश क्यों नहीं की? क्या उस लिफाफा को पढ़ने के लिए एक विशेष सियासी माहौल का इंतजार किया जा रहा था? और क्या वह विशेष सियासी माहौल की पटकथा अब लिखी जा चुकी है. और क्या इस तरह के फैसले के पहले दिल्ली की सत्ता किस बात का इंतजार कर रही थी, और क्या वह इंतजार अब पूरा हो चुका है, और महामहिम उस बंद लिफाफे से गोंद हटाने का मन बना चुके हैं.
झारखंड के सियासी फिजाओं में एक साथ उमड़ रहे हैं कई सवाल
ऐसे दर्जनों सवाल एक साथ आज के दिन झारखंड की सियासी फिजा में तैर रहे हैं, चर्चा यह भी है कि सीएम हेमंत ने जिस तरीके से सातवें समन के बावजूद ईडी की नारफमानी किया, उसके बाद दिल्ली के दिमाग में राष्ट्रपति शासन का विकल्प मंडराने लगा है, लेकिन सवाल यह भी है कि फिर मणिपुर को लेकर दिल्ली की सत्ता में यह विचार क्यों नहीं कौंधा?जिस तरीके से पूरा मणिपुर जलता रहा, सार्वजनिक हिंसा होती रही, महिलाओं के साथ सामहिक बलात्कार का की घटनाएं होती रही, उसके वीडियो वायरल होते रहें. खुद वहां के सीएम इस बात का दावा करते रहें कि इस तरह की दर्जनों घटनाएं इस राज्य में घटी है. केन्द्रीय मंत्री के घर को भीड़ आग के हवाले करती रही, और सबसे बढ़ कर खुद राज्यपाल को यह कहने को मजबूर होना पड़ा कि राज्य में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज शेष रह नहीं गयी है, पूरा राज्य भीड़ के हवाले हो चुका है. बावजूद इसके मणिपुर के लिए दिल्ली दरबार के मन में यह ख्याल क्यों नहीं आया, तो क्या यहां इसलिए यह ख्याल आ रहा है कि राज्य में विपक्ष की सरकार है और वहां खुद भाजपा की सत्ता थी, सवाल यह भी है कि झारखंड को लेकर चित्कार करने वाले मणिपुर पर चुप्प क्यों हैं, झारखंड में तो किसी भी रुप में मणिपुर की स्थिति नहीं है.
क्या हुआ था अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का हस्श्र
यहां यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि मोदी सरकार में अब तक कुल सात बार राष्ट्रपति शासन का विकल्प आजमाया गया है, जिसमें दो बार भारी बेईज्जती का सामना करना पड़ा है. पहला मामला उतराखंड का है, जहां हरिश रावत की सरकार को चलता कर दिया गया था, लेकिन चंद ही दिनों में कोर्ट ने इस फैसले को उलट दिया, और एक बार से पूरे तामझाम के साथ हरिश रावत की सरकार की सत्ता में वापसी हो गयी, दूसरा मामला अरुणाचल प्रदेश का है, जहां राष्ट्रपति शासन के पहले कांग्रेस में फूट डालने का सियासी प्रयोग को बेहद खुबसूरती के साथ अंजाम दिया गया, एक ही झटके में उसके 11 विधायकों को भाजपा में शामिल करवा लिया गया, राष्ट्रपति शासन लगा और बाद में कांग्रेस से बगावत कर आये कलिखो पुल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बना ली गयी, लेकिन महज 26 दिनों में ही सुप्रीम कोर्ट ने उस सरकार को अवैध करार दे दिया, और कलखो को अपना इस्तीफा सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पूर्व सीएम कलिखो पुल मानसिक अवसाद में चले गयें और दावा किया जाता है कि इसी मानसिक असवाद में कलिखो पुल ने आत्म हत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. तो क्या भाजपा झारखंड में भी एक बार फिर से हाथ जलाने की तैयारी में हैं.
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