Patna-कभी इंडिया गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री का चेहरा माने जाने वाले नीतीश कुमार ने वेलेंटाइन डे से ठीक 14 दिन पहले राजद के साथ अपने 17 माह के रिश्ते को विराम दे दिया और बड़ी ही खुबसूरती के साथ अपने पुराने पार्टनर भाजपा के साथ एक बार फिर से गलबंहिया करते हुए नौंवी बार सीएम की कुर्सी पर विराजमान हो गयें, सुशासन बाबू के लिए पुरानी दोस्ती तोड़ना और नये रिश्तों बनाने का यह खेल, नया नहीं है. उनकी गिनती तो देश के उन सियासतदानों में होती है, जो हर वक्त, हर क्षण नये रिश्ते बनाने और पुराने रिश्तों को चटकाने के लिए बेकरार रहते हैं, वह किसी वेलेंटाइन डे का इंतजार नहीं करते, उनके दरवाजे पर हर दिन चाहने वालों की लम्बी कतार लगी होती है, लोग नजर जमाये रहते हैं कि सामने वाला रिश्ता कब विराम लेता है और कब नयी दोस्ती के लिए बंद दरवाजे और खिड़कियों से पर्दा उठता है. जैसे ही इशारा हुआ कि पल भर में सब सेट हो जाता है, लेकिन इस खेल में सरकार तो चली जाती है, लेकिन सीएम का चेहरा यानी दुल्हा सिर्फ एक ही होता है. उस चेहरे में कोई बदलाव नहीं होता.
इस बार का शीर्षासन कुछ फंसता नजर आने लगा
लेकिन इस बार का शीर्षासन कुछ फंसता नजर आने लगा है. और शायद यही कारण है कि सीएम नीतीश अपने पुराने पार्टनर के खिलाफ कोई बड़ा हमला बोलने को तैयार नहीं है. इस बेवफाई की वजह क्या थी, उस रहस्य का पर्दा उठाने को तैयार नहीं है. इस बार वह सब कुछ पर्दे में रखना चाहते हैं, ना सिर्फ पुरानी दोस्ती के मधुर क्षणों पर्दे में रखने के आतूर दिख रहे हैं, बल्कि इस नयी दोस्ती की क्या वजह रही, कौन सा सपना दिखाया गया, उसका भी राज खोलने को तैयार नहीं है. दावा तो यह किया जा रहा है कि वह इस नये रिश्ते के लिए तैयार नहीं थें, लेकिन उनके चारों तरफ का फंदा इस कदर कस दिया गया था कि उनकी भी हालत हेमंत सोरेन की होने वाली थी. और वह इस बढती उम्र में, जब उनका यादास्त भी उनका साथ नहीं दे रहा है, यह सब कुछ झेलने को तैयार नहीं थें, आखिरकार सरेंडर कर अपनी मान मर्यादा या सम्मान बचाना पड़ा. हालांकि मान सम्मान का बट्टा तो हर पलटी के बाद लगता है, इस पलटी के बाद भी लगा है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या चाचा एक और पलटी लेते हैं, तो भतीजा उस बेवफाई के दर्द को भूल जायेगा, अपने बूढ़े-थके और सियासी रुप से करीबन असहाय हो चुके चाचा को ठुकराने की हिम्मत कर पायेगा, सियासत में कुछ भी कहा नहीं जा सकता, यहां दरवाजे कभी भी किसी के लिए स्थायी रुप से बंद नहीं होते, यदि दरबाजा बंद होने का प्रचलन होता तो केन्द्रीय अमित शाह चिल्ला चिल्ला कर बोल रहे थें कि नीतीश बाबू आपके लिए सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं, यहां तक की खिड़कियों पर भी ताला लगा दिया गया है, ताकि उस रास्ते भी आप अंदर नहीं आ सकें, लेकिन दरवाजे भी खुले और खिड़कियां भी खुली.
विधान सभा के फ्लोर पर होगा खेला
लेकिन यहां मुख्य सवाल तेजस्वी के उस दावे का है कि अभी खेल होना बाकी है, अभी तो चाचा ने अपना करतब दिखलाया है, भतीजे का करतब अभी सामने नहीं आया है, और यह खेल 10 फरवरी को होगा. दरअसल दावा किया जाता कि राजद विधान सभा के प्लोर पर इस सरकार को गिराने का इरादा रखती है. और जिस तरीके से इस सरकार के असली मांझी यानी जीतन राम मांझी की हसरतें तेज हो रही है, एक मंत्री के बदले दो मंत्री की मांग हो रही है, एक मंत्री पद को अपनी पार्टी के साथ अन्याय बताया जा रहा है, दूसरी ओर गोपाल मंडल जैसे विधायक पहले ही यह दावा कर चुके हैं कि यदि नीतीश कुमार ने इस बार पलटी मारी तो सब कुछ मटियामेट हो जायेगा, और खबर तो यह भी है कि जदयू के कई विधायक भी तेजस्वी के सम्पर्क में हैं, यदि इन विधायकों ने पाला नहीं भी बदला, सिर्फ वोटिंग के दौरान प्लोर से गायब हो गयें, तो यह सरकार एक ही झटके में चली जायेगी. और इस प्रकार तेजस्वी का दावा सत्य साबित होगा.
क्या इतनी आसान है यह रणनीति
लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या यह खेल इतना आसान है? क्या वाकई तेजस्वी अपने चाचा को उनकी सियासी जिंदगी का सबसे बड़ा झटका देने जा रहे हैं? तो यदि इसकी बारीकियों पर नजर दौड़ने की कोशिश करें तो भतीजा तेजस्वी का यह पेंच फंसता नजर आता है, यदि तेजस्वी अपने मास्ट्रर स्ट्रोक से एक ही झटके में विधान सभा के अंदर यह साबित देते हैं कि चाचा के पास बहुमत नहीं है. मांझी की नीयत डोल भी डोल जाती है, गोपाल मंडल और दूसरे विधायक भी गच्चा दे जाते हैं, तो चाचा की विदाई तो जायेगी, और इसके साथ ही चाचा के सियासी तिलिस्म का सदा के लिए अंत भी हो जायेगा. लेकिन बड़ा सवाल तो यही है कि भतीजे के हाथ क्या लगेगा? क्योंकि सरकार बनाने के लिए भतीजे के पास बहुमत चाहिए, और इसके लिए जरुरी है कि जदयू में संवैधानिक रुप से टूट हो, कमसे कम 15 विधायक एक साथ विधान सभा अध्यक्ष के सामने राजद के साथ जाने का प्रस्ताव पेश रखें, जो वर्तमान हालत में मुश्किल नजर आता है, और जैसे ही इसकी परिस्थितियां निर्मित होती है, सियासी अनिश्चितता का हवाला देते हुए भाजपा के पास राष्ट्रपति शासन लगाने का सुनहरा अवसर होगा, यानी चाचा भी साफ और भतीजा भी पार, तो क्या तेजस्वी इस खतरे की ओर बढ़ेंगे, इतने नासमझ तो तेजस्वी नजर नहीं आते, और लालू इस ठंड में सिर्फ गुनगुनी धूप का आनन्द नहीं ले रहे हैं, उन्हे पता कि उनके भाई ने जिस सियासी चाल का ताना बाना बूना है, अभी उसमें किसी भी प्रकार के छेड़छाड़ करने का मतलब है कि भाजपा के मंसूबों को पूरा करना. और यही राजद की मजबूरी है, जिसके देख कर चाचा नीतीश मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं. साफ है कि अभी भी तेजस्वी को अपने चाचा और पिताजी से सियासत की बारीकियों को समझना है, फिलहाल बिहार की सियासत में उस्ताद तो सिर्फ उनके चाचा और पिताजी ही है. हां, तेजस्वी सबसे मजबूत खिलाड़ी के रुप में सामने जरुर आ रहे हैं, और निश्चित रुप से उनका भविष्य उज्जवल है.
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