Ranchi- सीएम हेमंत को भेजे गये अपने पांचवें समन के बाद अचानक से ईडी की ओर से चुप्पी साध ली गयी है, ईडी समन के खिलाफ कोर्ट पहुंचे सीएम हेमंत को कोई बड़ी राहत नहीं मिली, जिसके बाद माना जा रहा था कि अब सीएम हेमंत को ईडी के सामने पेश होना ही होगा.
सीएम हेमंत के द्वारा सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट की दौड़ के बाद यह माना जा रहा था कि इस बार सीएम हेमंत आर-पार की लड़ाई के लिए अपने को तैयार कर रहे हैं. दूसरी तरफ ईडी भी यह जानते हुए कि मामला कोर्ट में है, बार बार समन जारी कर पेशी का निर्देश दे रही थी. दोनों के बीच के इस तकरार से यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि इस बार ईडी इतनी आसानी से इस मामले को खत्म नहीं करने जा रही है. हाईकोर्ट से मिली निराशा के बाद सीएम हेमंत को ईडी दफ्तर की दौड़ लगानी ही होगी. तथाकथित अवैध जमीन के मामले में अपनी सफाई देनी ही होगी. हालांकि खुद सीएम हेमंत और झामुमो का आरोप था कि ईडी इस बहाने सीएम हेमंत को गिरफ्तार करना चाहती है, यह पूरा मामला राजनीति के प्रेरित है, और ईडी अपने पॉलिटिक्ल बॉस के दवाब में उनके खिलाफ साजिश रच रही है.
जैसे ही हाईकोर्ट ने सीएम हेमंत की याचिका को खारिज कर किया, यह साफ हो गया कि अब महज औपचारिकता बाकी है, ईडी का एक और समन सामने आयेगा और सीएम हेमंत उसके समक्ष पेश हो जायेंगे. लेकिन इन तमाम कयासों को बड़ा झटका लगा, दिन पर दिन गुजरते गयें, लेकिन ईडी की ओर से कोई दूसरा समन जारी ही नहीं हुआ. अचानक से ईडी शांत हो गयी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो,
इस बीच ईडी का पूरा फोकस सीएम हेमंत से हटकर योगेन्द्र तिवारी पर शिफ्ट होता नजर आने लगा. रांची से दूर ईडी की टीम धनबाद, देवघर और गोड्डा में छापेमारी करने लगी, कथित शराब घोटाला के आरोपियों पर अपनी पकड़ बनाने लगी.
क्या है भाजपा का मिशन 14
ईडी की इस अप्रत्याशित शांति और चुप्पी पर अब सियासी हलकों में भी फुसफुसाहट शुरु हो गयी है. और इसके पीछे की सियासत पर मंथन शुरु हो गया है. एक के बाद एक दावे सामने आ रहे हैं, कई जानकारों का दावा है कि भाजपा और झामुमो के बीच एक गुप्त समझौता हो चुका है, समझौता यह है कि सीएम हेमंत निर्वाध रुप से अपना कार्यकाल को पूरा करेंगे, इसके बदले में वह 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने प्यादों को इस तरीके से सजायेंगे कि भाजपा का मिशन-14 कामयाब हो जाये.
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यहां बता दें कि झारखंड में लोकसभा की कुल 14 सीटें हैं, भाजपा इस हकीकत को भली-भांति समझ रही है कि आगामी लोकसभा चुनाव में उसे हिन्दी भाषा भाषी क्षेत्रों में भारी झटका लगने वाला है. इस हालत में यदि वह हेमंत सरकार से उलझ कर लोकसभा की इन 14 सीटों को हाथ से गंवाती है, तो उसके लिए दिल्ली की रास्ता नामुमिकन हो जायेगा. और यहीं से भाजपा का केन्द्रीय आलाकमान एक गुप्त समझौते की ओर बढ़ता है, हालांकि यहां स्पष्ट कर दें कि यह महज सियासी गलियारों की चर्चा है. लेकिन इसके साथ ही एक सच्चाई ध्यान में रखने की जरुरत है कि इस तरह की खबरों की कोई आधिकारिक पुष्टि कभी नहीं होती, हर राजनीतिक दल अपनी अपनी सुविधा के अनुसार इस प्रकार का चक्र-कुचक्र का निर्माण करता है, इसके विपरीत उसके समर्थक जमीन पर सियासी जंग लड़ते नजर आते हैं.