TNP DESK- पिछले तीन दिनों से कांग्रेस के राज्य सभा सांसद धीरज साहू सुर्खियों में है, खास कर पीएम मोदी के ट्वीट के बाद हर चैनल में इस पर बहस तेज हो चुकी है. एक चैनल का दावा था कि इतनी बड़ी राशि तो टाटा, बिड़ला और अडाणी समूह के मालिकों के घर में भी नहीं होगा, तो दूसरे का दावा था कि रुपये की गिनती करने के लिए अधिकारियों के द्वारा जिन मशीनों को लगाया गया था, नोटों के बंडलों की गिनती करते करते इन मशीनों से धूंआ निकलने लगा. तो किसी ने इसे प्रधानमंत्री मोदी के वादे से जोड़ कर देखा. और इस बात का दावा कर डाला कि अब इस देश में काले-कुबेर की दाल नहीं गलने वाली है, प्रधानमंत्री मोदी एक-एक कर सभी काले कुबेरों को जेल के सलाखों के पीछे भेजेंगे. दावा यह भी किया जाने लगा कि धीरज साहू इस विशाल राशि का इस्तेमाल 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पर करने वाले थें, लेकिन वक्त रहते भाजपा ने कांग्रेस की काली हसरतों पर पानी भेर दिया. इस प्रकार 2024 के महासंग्राम से पहले ही भाजपा झारखंड में अपनी फतह तय कर गयी.
काले कुबेरों की काली लिस्ट में धीरज साहू महज एक अदना सा खिलाड़ी
लेकिन इसके समानांतर कुछ जानकार यह सवाल भी उठा रहे हैं कि देश में कालेकुबेरों की काली लिस्ट में धीरज साहू महज एक अदना सा खिलाड़ी है. और धीरज साहू जैसे लोग यदि कांग्रेस के लिए इतने ही वफादार होते हो तो आज कांग्रेस की चुनावी रैलियों की दशा यह नहीं होती. कांग्रेस की चुनावी रैलियां भी पीएम मोदी की रैलियों की तरह ठसक के भरा होता. वहां भी कॉरपोरेट की ताकत दिखती. उसके पास भी बड़े-बड़े भव्य-आलिशान शामियाने और पंडाल होता.
दरअसल जिस धीरज साहू को निशाने पर लेकर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की जा रही है, उसके पहले धीरज साहू का अतीत समझना भी ज्यादा जरुरी है. धीरज साहू की यह संपत्ति कोई एक या दो दशक में नहीं बनी है, उसकी पिछली कई पीढ़ियां अरबपति रही है. यह वह परिवार है, जिसके दरवाजे पर स्वतंत्रता सेनानियों की भीड़ जुटती थी, यह वह परिवार है, जो उस वक्त भी अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा आजादी के लड़ाई में लगाता था, दावा किया जाता है कि सुभाष बाबू जब भी रांची आते थें, इसी परिवार के घर पर ठहरते थें. और आजादी के पहले से ही यह परिवार कांग्रेसी विचारधारा से जुड़ा है. यही इसकी ताकत और यही इसकी भूल है.
क्या कांग्रेसी होना ही इस छापेमारी की मुख्य वजह
अब सवाल यहीं से खड़ा होता है, तो क्या यह माना जाये कि धीरज साहू का कांग्रेसी होना ही इस छापेमारी की मुख्य वजह है? क्या 2024 के पहले ही झारखंड में ऑपेरशन लोट्स की शुरुआत हो गयी? यहां ऑपेरशन लोटस को बदले हुए स्वरुप में समझने की जरुरत है. क्योंकि जिस रुपये की बरामदगी के दावे किये जा रहे हैं, दावा किया जा रहा है कि धीरज साहू की संपत्ति की तुलना में यह तो कुछ भी नहीं है. हालांकि अभी इस मामले में धीरज साहू का कोई ब्यान नहीं आया है, लेकिन सवाल जरुर खड़ा होता है कि क्या यह विशाल राशि धीरज साहू का ही है या परिवार के दूसरे सदस्यों की भी इसमें हिस्सेदारी है. और यदि दूसरे सदस्यों की इसमें हिस्सेदारी है तो इसमें धीरज साहू का हिस्सा इसमें कितना है?
क्या कहता है कानून
यहां याद रह कि मौजूदा कानून के तहत घर में पैसा रखने की कोई सीमा नहीं है. देश के दूसरे उद्योपतियों के द्वारा भी बड़ी राशि रखी जाती रही है, लेकिन आपको इसका स्त्रोत बताना होगा. आयकर कानून के हिसाब से यदि आप स्त्रोत बताने में असमर्थ रहते हैं तो आप को जुर्माना और टैक्स का भुगतान करना पड़ सकता है. साफ है कि धीरज साहू के सामने मुख्य परेशानी इस आय का स्त्रोत बताने की है. और यह इतनी बड़ी समस्या नहीं है कि धीरज साहू इससे पार नहीं पा सकें. यहां यह भी बताना जरुरी है कि रेड के बाद यह राशि सरकार की नहीं हो जाती, आयकर विभाग को इस राशि को बैंक में रखना होता है. जब्ती की सूची तैयार करनी होती है. उसके बाद यह मामला कोर्ट मे जायेगा, यदि कोर्ट में आरोपी आय का स्त्रोत बताने में सफल हो जाता है, उसे उसका रुपया वापस किया जायेगा, हालांकि यदि टैक्स की चोरी हुई है तो उसे उसका भुगतान भी करना होगा. साफ है कि इस मामले में धीरज साहू से ज्यादा सटीक जबाव उनके चार्टेड अकाउंटेट के पास होगा, और चार्टेड अकाउंटेट तो मीडिया मे आकर अपना पक्ष फिलहाल रखने वाले नहीं है.
आप से भी पढ़ सकते हैं
असम सरकार के फैसले से स्वदेशी मुसलमान पर बहस तेज! क्या हेमंत सरकार भी इस दिशा में उठा सकती है कदम
यूपी-झारखंड में सीएम नीतीश की विशाल रैली! देखिये, कैसे खबर फैलते ही चढ़ने लगा सियासी पारा