Ranchi-लोकसभा चुनाव के पहले धनबाद की सियासत दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुकी है. हर दिन साजिश और षडयंत्र की एक नयी पटकथा लिखी जा रही है और समर के शुरुआत के पहले ही विरोधी खेमे को पटकनी देने की रणनीति तैयार की जा रही है और यह खेल भाजपा और कांग्रेस दोनों ही ओर से खेला जा रहा है. दावा किया जाता है कि इस बार भाजपा की कोशिश एक नाराज कांग्रेसी विधायक को कमल चुनाव चिह्न थमा मैदान में उतारने की है. ताकि इस सियासी समर की औपचारिक शुरुआत के पहले ही कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में खड़ा कर दिया जाय. वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अमहद मीर ने धनबाद के अखाड़े में स्थानीय उम्मीदवार लाने का एलान कर भाजपा के इस प्लान में पलीता लगा दिया है. गुलाम अहमद मीर का यह एलान धनबाद की सियासत में लोकसभा का चुनाव लड़ने की चाहत रखने वाले सारे कांग्रेसी विधायकों और कार्यकर्ताओं के लिए एक खुला पैगाम है कि खेल अभी खत्म नहीं हुआ. पार्टी आलाकमान हर नाम पर विचार कर रही है, और बहुत संभव है कि जब प्रत्याशी का एलान हो, उस सूची में आपका भी नाम हो. साफ है कि गुलाम अहमद मीर को भाजपा की ओर से रची जा रही इस साजिश का भान हो चुका है, और यह एलान भाजपा के उसी प्लान में प्लान में पलीता लगाने की सोची समझी रणनीति है.
ददई दूबे की मौजूदगी में स्थानीय उम्मीदवार देने का एलान
लेकिन गुलाम अहमद मीर का यह एलान पूर्व सांसद और वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता ददई दूबे की सियासत चाहत पर पूर्ण विराम भी है. क्योंकि इस एलान के बाद धनबाद की सियासत में ददई दूबे की सारी संभावना खत्म होती नजर आने लगी है. यहां याद रहे कि ददई दूबे वर्ष 2004 में धनबाद से सांसद थें, लेकिन जब 2009 में पीएन सिंह ने अपने जीत के कारवें की शुरुआत की तो लगातार तीन बार जीत दर्ज जीत हासिल करते गयें और इधर ददई दूबे की सियासत गुमनामी की शिकार होती गयी. लगातार तीन बार कमल खिला कर पीएन सिंह ने ददई दूबे को धनबाद की सियासत में वापसी का मौका नहीं दिया. लेकिन उनकी चाहत खत्म नहीं हुई, और आज भी ददई दूबे कांग्रेस से टिकट पाने की चाहत में लाईन में लगे थें, लेकिन स्थानीय कार्यकर्ताओं के द्वारा इसका व्यापक विरोध शुरु हो गया. इसकी झलक कल प्रदेश प्रभारी गुलाम अहमद मीर और राजेश ठाकुर की उपस्थिति में भी देखने को मिली
कांग्रेस पर यादवों की उपेक्षा का आरोप
जैसे ही बैठक की शुरुआत हुई, एक के बाद एक कार्यकर्ता स्थानीय उम्मीदवार की मांग करने लगें. स्थानीय उम्मीदवार की मांग तेज होते देख ददई दूबे कई कार्यकर्ताओं के साथ उलझते ही नजर आयें. इसी बीच कांग्रेसी कार्यकर्ता सुंदर यादव ने भी ददई दूबे की उम्मीदवारी का विरोध कर दिया, और इसके साथ ही पार्टी प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी को चुनौती भी दे डाली कि यदि इस बार भी किसी बाहरी चेहरे को उम्मीदवार बनाया गया तो एक भी यादव कांग्रेस को वोट नहीं देगा. सुंदर यादव का दावा था कि धनबाद संसदीय सीट पर यादवों की 12 फीसदी आबादी है, और हम सिर्फ स्थानीय उम्मीदवार की मांग कर रहे हैं, लेकिन यहां तो अपनी बात रखने देने का अवसर भी नहीं दिया जा रहा है. ठीक इसके बाद प्रदेश प्रभारी ने यह एलान कर दिया कि इस बार किसी स्थानीय कार्यकर्ता को भी चुनाव में उतारा जायेगा, और वह चेहरा कौन होगा, जल्द ही इसकी घोषणा कर दी जायेगी.
बाहरी उम्मीदवार देने के कारण कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में पसर रही थी नाराजगी
यहां फिर से याद दिला दें कि धनबाद के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि इस बार भाजपा की रणनीति कांग्रेस के एक विधायक को तोड़ कर कमल का टिकट थमाने की है, दावा किया जाता है कि उस विधायक की चाहत लोकसभा का चुनाव लड़ने की है, और उसके द्वारा अपनी इस चाहत की जानकारी कांग्रेस आलाकमान को भी दे दी गयी है, इस हालत में जब प्रदेश प्रभारी इस बात का एलान कर रहे हैं कि उम्मीदवार स्थानीय ही होगा. धनबाद की सियासत में सक्रिय सारे स्थानीय कार्यकर्ताओं को एक राहत की खबर मिली होगी. क्योंकि जिस प्रकार से पहले कांग्रेस के द्वारा बाहरी चेहरों को सामने कर धनबाद की सियासत को साधने की कोशिश की जाती रही है, उसके कारण ना सिर्फ विधायकों में बल्कि आम कार्यकर्ताओं के बीच भी नाराजगी पसरती रही है. अब देखना होगा कि वह स्थानीय चेहरा कौन है?
सियासी गलियारों में उछल रहा है अशोक सिंह का नाम
हालांकि स्थानीय कार्यकर्ताओं के द्वारा एक नाम अशोक सिंह का भी उछाला जा रहा है. पिछले कुछ दिनों से धनबाद की सियासत में अशोक सिंह की सक्रियता में भी तेजी देखी जा रही है. सामाजिक कार्यों में भी सक्रियता बढ़ी है. इसके पीछे मुख्य वजह टिकट की चाहत है. और स्थानीय उम्मीदवार होने की घोषणा के बाद इसकी संभावना भी दिखलाई पड़ने लगी है. हालांकि दावेदार और भी हैं. इस हालत में किसके हिस्से टिकट आता है. फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. क्योंकि ददई दूबे भी सियासत के पुराने खिलाड़ी है, दावा किया जाता है कि दिल्ली दरबार तक उनकी पकड़ और पहुंच है. लेकिन ददई दूबे की मुश्किल यह है कि जिस कांग्रेस का वह हिस्सा हुआ करते थें. पिछले कुछ दिनों में उसका सिर्फ चेहरा ही नहीं बदला है, उसकी सियासत भी बदली नजर आ रही है. जब राहुल गांधी इस बात का एलान कर रहे हैं कि “जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी” तो यह सिर्फ महज नारा नहीं है. यह कांग्रेस की बदलती सियासत की खुली इबादत भी है.
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