Ranchi-2024 के महासंग्राम को लेकर भाजपा जहां इस बात को लेकर पूरी तरह मुतमईन है कि वह एक बार फिर से 14 में से कम से कम 12 सीटों पर कमल खिलाने जा रही है. वहीं दूसरी ओर उसके नेताओं में कांग्रेस में अपना सियासी भविष्य तलाशने की होड़ लगती दिख रही है. शक की पहली सुई गिरिडीह लोकसभा से पांच बार के सांसद रहे रविन्द्र पांडेय की ओर बढ़ा, दावा जा रहा है कि वह लगातार दिल्ली में राहुल गांधी के करीबियों से सम्पर्क में हैं, उसके बाद अचानक जयंत सिन्हा को लेकर चर्चा तेज हो गयी, दावा किया जा रहा है कि जयंत सिन्हा का मन भी अब भाजपा में घूट रहा है और वह अपने पिता यशवंत सिन्हा के सियासी राह पर चलते हुए भाजपा का साथ छोड़ सकते हैं.
जयंत सिन्हा का हृदय परिवर्तन
दावा यह भी किया गया कि कभी मॉब लिंचिग के आरोपियों को फूल माला के साथ स्वागत करने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयंत सिन्हा का अब हृदय परिवर्तन हो चुका है, उन्हे अब राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान में भारत का सुनहरे भविष्य दिखयायी पड़ने लगा है, जहां सबों को जोड़ने की बात होती है, धर्म और जाति के नाम पर विभाजन की सारी खाईयों को मिटाने का दावा किया जाता है, जयंत सिन्हा अब उसी मोहब्बत का दुकान का हिस्सा बनने को बेकरार हैं, लेकिन अभी जयंत सिन्हा और रविन्द्र पांडेय को लेकर चर्चाओं को विराम भी नहीं लगा था कि इस सूची में 2019 में रांची संसदीय सीट से बेटिकट कर दिये गये रामटहल चौधरी का नाम भी इसमें शुमार हो गया.
जदयू के बाद रामटहल ने कांग्रेस की ओर बढ़ाया कदम
रामटहल चौधरी को लेकर चर्चा है कि कांग्रेस के आला नेताओं के साथ उनकी बातचीत अंतिम दौर में है. और वह किसी भी वक्त पंजे की सवारी का एलान कर सकते हैं. ध्यान रहे कि इसके पहले रामटहल चौधरी के बारे में जदयू के सम्पर्क में होने की बात कही जा रही थी, सीएम नीतीश के साथ उनकी बंद कमरे की मुलाकात सुर्खियां भी बनी थी, तब दावा किया गया था कि वह जल्द ही जदयू में शामिल होकर अपने बेटे को रांची संसदीय सीट से उम्मीदवार बना सकते हैं, लेकिन अब तो खबर आ रही है, उसके अनुसार उन्होंने भी जदयू के बजाय कांग्रेस में अपना सियासी भविष्य तलाशने का फैसला किया है.
रांची संसदीय सीट से पांच पांच बार के सांसद रहे हैं रामटहल
दरअसल रांची संसदीय सीट पर कभी भी जदयू की ओर से कोई प्रत्याशी नहीं उतारा गया है. और यदि इस संसदीय सीट से जदयू का उम्मीदवार होता तो यह एक बड़ा सियासी प्रयोग माना जाता. तब दावा किया जा रहा था कि जिस प्रकार सीएम नीतीश इंडिया गठबंधन के शिल्पकार के रुप में सामने आये हैं, उनकी बात तो तव्वजों देते हुए यह सीट जदयू को देकर झारखंड के कुर्मी मतदाताओं को साधने की कवायद की जा सकती है. और इसके साथ ही झारखंड की सियासत में जदयू की पुनर्वापसी हो सकती है. लेकिन खबर यह है कि कांग्रेस रांची सीट छोड़ने को तैयार नहीं थी, और कांग्रेस के इसी फैसले के बाद रामटहल चौधरी ने कांग्रेस की ओर हाथ बढ़ाने का फैसला लिया, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यदि कांग्रेस रामटहल चौधरी या उनके बेटे को उम्मीदवार बनाती है, तो सुबोधकांत के सियासी भविष्य का क्या होगा.
पहले भी सुबोधकांत सहाय और रामटहल चौधरी में होता रहा है मुकाबला
दरअसल रांची संसदीय सीट में कुर्मी मतदाताओं की बहुलता है, और इसी ताकत के बूते रामटहल चौधरी 1991,1996, 1998,1999 में लगातार सफलता का परचम लहराते गयें, हालांकि 2004 और 2009 में सुबोधकांत सहाय ने कांग्रेस परचम लहराने सफलता हासिल की. लेकिन 2014 में एक बार फिर से रामटहल चौधरी ने वापसी कर अपनी मजबूत पकड़ का परिचय दिया. लेकिन 2019 में भाजपा ने रामटहल चौधरी को पैदल कर सियासी सन्यास लेने का इशारा कर दिया, लेकिन रामटहल चौधरी अपने गुरु लालकृष्ण आडवाणी के रास्ते चलने को तैयार नहीं थें. और निर्दलीय मैदान में उतरने का एलान कर दिया, लेकिन मोदी की उस आंधी में वह चारों खाने चित हुए, लेकिन अब उन्हे लगता है कि वह मोदी लहर देश से गुजर चुका है, भले ही भाजपा तीन तीन राज्यों में जीत का परचम फहराने में कामयाब रही हो, लेकिन अब जिस तरीके से पूरे देश में इंडिया गठबंधन अपनी जड़ों को मजबूत बना रहा है, उसके बाद भाजपा के सामने एक नया सियासी संकट खड़ा हो चुका है, क्योंकि इन तीनों ही राज्यों में उसका मुकाबला काग्रेंस के साथ था, लेकिन यहां उसके मुकाबले इंडिया एलाइंस होगा, और यदि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस ने इंडिया एलाइंस के दूसरे घटक दलों को अपने साथ खड़ा करने की सियासी चतुराई दिखलाई होती, तो उसे इस हार का सामना नहीं करना पड़ता.
कांग्रेस को मिल सकता है एक मजबूत कुर्मी चेहरा
लेकिन मुख्य सवाल यह है कि कांग्रेस सुबोधकांत के कीमत पर रामटहल पर अपना दांव क्यों लगायेगी, तो उसका गणित बेहद साफ है, और है झारखंड का कुर्मी पॉलिटिक्स, कांग्रेस को झारखंड की सियासत में एक मजबूत कुर्मी चेहरे की तलाश है, और उसकी यह कमी उसे रामटहल चौधरी के रुप में दूर होती दिख रही है. फिर सवाल खड़ा होता है कि सुबोधकांत का क्या होगा, 1989 से लेकर अब तक तीन तीन बार इस सीट पर अपनी जीत का परचम लहराते रहे सुबोध कांत क्या सियासी अंधरे की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, क्या पिछला इतिहास एक बार फिर से दुहराया जाने वाला है, क्या एक बार फिर से रामटहल चौधरी सुबोधकांत को सियासी मात देने जा रहे हैं, इसका जवाब तो टिकट वितरण के बाद ही होगा, क्योंकि अभी इस सियासत में कई रंग खिलने बाकी है, अभी कई पालाबदल होना बाकी है, कुछ इधर आयेंगे तो कुछ उधर भी जायेगे, अभी सियासत का यह मंच पूरी तरह से सजा नहीं है. अभी इसके कई किरदार सामने आने बाकी है.
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