TNP DESK-आखिकार लम्बे इंतजार के बाद कांग्रेस ने गोड्डा से महागामा विधायक दीपिका पर दांव लगाने का फैसला कर लिया और इसके साथ ही यह साफ हो गया कि अब गोड्डा से सियासी दंगल में निशिकांत और दीपिका के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस ने दीपिका के नाम पर ही अपनी मुहर क्यों लगायी? जबकि उसके पास प्रदीप यादव से लेकर फुरकान अंसारी जैसे दूसरे तमाम चेहरे भी मौजूद थें. याद रहे कि वर्ष 2002 में भाजपा की सवारी करते हुए प्रदीप यादव ने भले ही गोड्डा में अपनी जीत दर्ज की हो, लेकिन उसके बाद वर्ष 2014 में कांग्रेस और 2019 में जेवीएम के टिकट मैदान में कूदने बावजूद वह जीत का परचम नहीं फहरा सकें. बावजूद इसके इस बार भी प्रदीप यादव के नाम पर मंथन हुआ, लेकिन यौन शौषण मामले में नाम उछलना भारी पड़ा, इन आरोपों के बीच कांग्रेस मुहर लगाने को तैयार नहीं हुई. इधर फुरकान अंसारी भी 2014 में कांग्रेस के टिकट पर निशिकांत के खिलाफ ताल ठोक चुके थें, उन्हे करीबन 60 हजार से मात खानी पड़ी थी, इधर उनकी उम्र भी बाधा बन रही थी. इस प्रकार सिर्फ दीपिका का चेहरा ही वह चेहरा था, जिसको सामने रख कर निशिकांत की चौथी पारी पर विराम लगाने संभावना तलाशी जा सकती थी. लजिसके बाद काफी मंथन के बाद कांग्रेस ने दीपिका के नाम पर अपनी मुहर लगा दी.
सामाजिक समीकरण के हिसाब से भी दीपिका का एक सशक्त उम्मीदवार
लेकिन इसके साथ ही कांग्रेस को गोड्डा के सामाजिक समीकरण में भी दीपिका का चेहरा फीट बैठता नजर आया. यहां याद रहे कि गोड्डा में करीबन ढाई लाख यादव, तीन लाख अल्पसंख्यक, दो लाख ब्राह्मण, ढाई से तीन लाख वैश्य, डेढ़ लाख के करीब आदिवासी, एक लाख के करीब भूमिहार, राजपूत, कायस्थ और शेष पचपौनियां और दलित जातियां है. यादव और अल्पसंख्यक चेहरे को आजमा चुकी कांग्रेस, यहां एक नये सामाजिक समीकरण की तलाश में थी और लाख ब्राह्मण मतदाताओं के बीच दीपिका का चेहरा उसे एक मुफीद चेहरा नजर आया. ध्यान रहे कि दीपिका खुद तो ब्राह्मण जाति से आती है, लेकिन शादी कुर्मी घराने में हुई है. इस प्रकार दीपिका के चेहरे में ब्राह्मण जाति के मतदाताओं के साथ ही दूसरी पिछड़ी जातियों की गोलबंदी की संभावना भी दिखती है. इसके साथ ही दीपिका का खांटी झारखंडी चेहरा ने भी अपना रंग दिखलाया, जबकि भाजपा के निशिकांत के उपर बाहरी होने का आरोप लगता रहता रहा है.
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