क्या झारखंड की राजनीति में एनडीए के लिए झामुमो "सायलेंट किलर" साबित होगा, पढ़िए क्यों तेजी से हो रही यह चर्चा

धनबाद(DHANBAD): वैसे तो सोमवार से झामुमो का महाधिवेशन शुरू है, लेकिन इसके पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा एनडीए को झटका पर झटका दे चुका है. ताला मरांडी को पार्टी में शामिल कराने के बाद झामुमो ने आजसू में भी बड़ी सेंधमारी कर दी है. लोहरदगा से आजसू पार्टी के पूर्व प्रत्याशी नीरू शांति भगत अपने सैकड़ो कार्यकर्ताओं के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हो गई है. आजसू के लिए यह एक बड़ा झटका कहा जा रहा है. इतना ही नहीं, विधानसभा चुनाव के ठीक पहले टिकट नहीं मिलने से नाराज उमाकांत रजक ने आजसू छोड़कर झामुमो का दामन थामा और चंदनकियारी विधानसभा सीट से झामुमो के टिकट पर वह विधायक चुन लिए गए है. चंदनकियारी विधानसभा सीट से भाजपा के नेता अमर कुमार बाउरी को उन्होंने पराजित किया.
भाजपा के साथ -साथ आजसू भी है झामुमो के लपेटे में
चुनाव के बाद भी झारखंड मुक्ति मोर्चा रुकने को तैयार नहीं है. भाजपा के बाद आजसू को झटका दिया है. यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि पिछले कुछ वर्षों में झामुमो , कांग्रेस और राजद को छोड़कर कई नेता भाजपा में शामिल हुए. लेकिन वह लंबे समय तक भाजपा की राजनीति नहीं कर पाए. भाजपा के पूर्व अध्यक्ष ताला मरांडी के झामुमो में शामिल होने के बाद यह सवाल एक बार फिर जीवित हो गया है. पूछा जा रहा है कि आखिर क्या वजह है कि भाजपा में दूसरे दल के बड़े-बड़े नेता शामिल तो हो जाते हैं, लेकिन वह रुक नहीं पाते. ताला मरांडी, हेमलाल मुर्मू, कुणाल षाड़ंगी , उदय शंकर सिंह, गौतम सागर राणा, गिरिनाथ सिंह जैसे नेता झामुमो , कांग्रेस या फिर राजद जैसे दलों से भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए. फिर दूसरे दलों में चले गए.
तो क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास आगे भी सेंधमारी की है योजना
तो क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा विधानसभा में मिली प्रचंड सफलता के बाद अधिक उत्साहित है और वह ताबड़तोड़ एनडीए में सेंधमारी की योजना पर काम कर रहा है. बता दे कि अभी तो लोकसभा चुनाव में ही ताला मरांडी भाजपा का गुणगान करने से नहीं थक रहे थे. राजमहल से वह भाजपा के प्रत्याशी थे. यह अलग बात है कि राजमहल से वह चुनाव हार गए. अब वह भाजपा को छोड़कर झामुमो में शामिल हो गए है. मतलब हेमलाल मुर्मू के बाद ताला मरांडी भी घर वापसी की है. ताला मरांडी के बाद अब संथाल से कौन भाजपा छोड़ेगा ,इसकी भी अटकले तेज है. ताला मरांडी की भी राजनीतिक जीवन की शुरुआत झामुमो से हुई थी. लेकिन कई पार्टियों से घूमते हुए फिर वह झामुमो में चले गए है. झामुमो में जाकर ताला मरांडी ने भाजपा को तगड़ा झटका दिया है. कोई कह सकता है कि संथाल परगना में ताला मरांडी का बहुत कुछ राजनीतिक प्रभाव नहीं था. लेकिन इस बात से कौन इंकार करेगा कि भाजपा के आदिवासी नेता नहीं थे. वैसे भी भाजपा संथाल परगना में संघर्ष कर रही है. संघर्ष तो फिलहाल वह समूचे झारखंड में कर रही है.
कोशिश तो की लेकिन संथाल में भाजपा को नहीं मिली सफलता
विधानसभा चुनाव में भाजपा को संथाल के 18 में से केवल एक सीट हाथ लगी. अब तो ताला मरांडी भी भाजपा छोड़ चुके है. भोगनाडीह में ताला मरांडी को झामुमो में शामिल करा कर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भाजपा को यह बता दिया है कि संथाल की राह कठिन है. वैसे संथाल परगना को लेकर भाजपा, जो भी प्रयास करती है, बहुत सफल नहीं हो पाता . लोकसभा चुनाव के ठीक पहले शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन को भाजपा में शामिल कराकर बड़ा संदेश देने की भाजपा ने कोशिश की. लेकिन इसका भी बहुत फायदा भाजपा को नहीं मिला. सीता सोरेन दुमका लोकसभा से तो चुनाव हार ही गई, फिर जामताड़ा से विधानसभा चुनाव भी हार गई. संथाल परगना में लोबिन हेंब्रम को भी भाजपा ने अपने पाले में किया. लेकिन बहुत लाभदायक नहीं रहा. अगर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की बात कर ली जाए, तो चंपई सोरेन के भी पार्टी में शामिल होने का बहुत फायदा भाजपा को नहीं मिला. यह अलग बात है कि चंपई सोरेन अपनी सीट बचाने में सफल रहे थे.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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