देश के तीन सपूतों को आज हम क्यों याद करते हैं, जानिए शहीद दिवस पर विशेष

टीएनपी डेस्क (TNP DESK): परतंत्र भारत में आज का दिन शहादत के रूप में इतिहास के पन्नों में लिखा गया. साल 1931 में देश के तीन सपूतों को फांसी दे दी गई. मां भारती के सम्मान और उसके रक्षा के इन दीवानों की शहादत को हम आज के दिन याद करते हैं. आज 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है. 94 साल पूर्व यानी 1931 में एक साथ भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी. भारत माता के इन तीन वीर सपूतों ने हंसते हुए फांसी के फंदे पर झूलना पसंद किया.
जानिए भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहादत के बारे में
अंग्रेजों के खिलाफ देश में घुसा गुलामी की जंजीर में बंधे भारतीय इससे आजाद होना चाहते थे. अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने वाले कई आंदोलनकारी हुए. इनमें से भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है. 23 मार्च 1931 को इन्हें फांसी दी गई थी. यह वह तारीख है, जिस दिन दुख गर्व और गुस्सा जैसी तमाम भावनाएं उत्पन्न हुई. गर्व इस बात पर होता है कि तीनों आंदोलनकारी ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दिया. आज का दिन अंग्रेजी हुकूमत पर गुस्से को भी याद दिलाता है. ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचार की याद दिलाता है.
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु 23-24 साल की उम्र वर्ग के थे. भगत सिंह की उम्र 23 साल थी. उनके विचार काफी क्रांतिकारी उनकी बातों को सुनकर लोगों की रगों में जोश भर जाता था. सुखदेव लाहौर षड्यंत्र केस के आरोपी थे. इनके विचार भी तत्कालीन भारत के युवाओं में जोश भरते थे. राजगुरु भी बड़े आंदोलनकारी थे. उनका मानना था कि भारत माता की सेवा सबसे बड़ा धर्म है.
मां भारती की इन सबों की कुर्बानी को देश याद करता है. प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है. भगत सिंह का नारा था कि मुझे गर्व है कि "मैं एक क्रांतिकारी हूं. मैं बेड़ियों में जकड़ कर नहीं मरूंगा. क्रांति की ज्वाला बनकर मरूंगा. वह मुझे मार सकते लेकिन मेरे विचार को नहीं मार सकते. मैं महत्वाकांक्षा और आकर्षण से भरपूर, लेकिन जरूरत पड़ने पर मैं सब कुछ त्याग सकता हूं".
इतिहास के पन्नों में आज की तारीख दर्ज है. 23 मार्च 1931 को लाहौर में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी. ऐसे में शहीद दिवस साधारण, साहस और परिणाम को याद करने का अवसर है. जिन्होंने ऐसा आंदोलन के लिए खुद को समर्पित कर दिया.
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