रांची(RANCHI): झारखंड की राजनीति का केंद्र संथाल को माना जाता है. इस क्षेत्र में जिस पार्टी की पकड़ मजबूत हुई तो राज्य की सत्ता का रास्ता यही से निकलता है. क्योंकि संथाल में 18 विधानसभा की सीट है. पिछले लोकसभा चुनाव में कमजोर हुए इंडी गठबंधन ने विधानसभा चुनाव में बढ़िया कम बैक किया था. संथाल की 18 विधानसभा में 14 पर फतेह हाशिल कर राज्य की सत्ता में काबिज हुई थी. अब लोकसभा चुनाव में भी परिणाम चार को आने वाला है.
जिसमें दुमका,गोड्डा और राजमहल है.तीन सीट में से एक पर जीत इंडी की तय मानी जा रही है. वहीं दो सीट पर काटे की टक्कर है. अगर बात गोड्डा सीट की करें तो यहाँ कांग्रेस और भाजपा में सीधी टक्कर है. एक ओर भाजपा से निशिकांत दुबे है जो तीन बार जीत कर दिल्ली जा चुके है. हर बार गठबंधन पीछे रह जाती है. लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में गोड्डा लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत आने वाली छ विधानसभा में से चार में गठबंधन में जीत हशील की थी.
वहीं दुमका को झामुमो का गढ़ माना जाता है. इस सीट पर सात बार गुरुजी जीत का परचम लहरा चुके है. लेकिन मोदी लहर में 2019 में भाजपा के सुनील सोरेन के हाथ हार का सामना करना पड़ा था. अब 2024 के रण में भाजपा से सीता है तो झामुमो से कद्दावर नेता नलिन सोरेन मैदान में है. दुमका की बात करें तो इस लोकसभा में छह विधानसभा क्षेत्र है. जिसमें से पाँच पर इंडी गठबंधन का कब्जा है. इससे साफ है कि दुमका में सीता मुश्किल में है.
अब राजमहल लोकसभा सीट की बात करें तो यहाँ भी छह विधानसभा है. जिसमें पाँच पर इंडी का कब्जा है. पिछले दो टर्म से झामुमो के विजय हासदा भाजपा को पटकनी दे चुके है. अब तीसरी बार मैदान में है. इस सीट पर राजनीति जानकार बताते है कि यहाँ का माहौल कुछ और है. जीत इंडी गठबंधन की तय मानी जारही है. इस लोकसभा क्षेत्र में ही हेमंत सोरेन का भी विधानसभा क्षेत्र आता है.
तीनों सीट को लेकर राजनीतिक जानकार बताते है कि यहाँ एनडीए की राह आसान नहीं है. राजमहल और दुमका में संथाल समुदाय के लोग अधिक रहते है. ऐसे में इस क्षेत्र से दो बड़े नेताओं की गिरफ़्तारी का असर चुनाव में देखा गया है. चाहे हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी हो या फिर आलमगीर आलम की. दोनों जेल में है लेकिन मतदाताओ में एक अलग संदेश गया है. जिसका नतीजा दिख सकता है. जहां तक बात गोड्डा लोकसभा की करें तो यहाँ कांग्रेस भाजपा के बीच अभिषेक झा रोड़ा बन सकते है. एक ओर गोड्डा में यादव और अल्पसंख्यक की संख्या बड़ी है तो देवघर में पंडा समाज के लोग जीत और हार तय करते है. अगर अभिषेक झा देवघर में सेंधमारी करने में सफल हुए होंगे तो परिणाम प्रदीप के पक्ष में जा सकता है.
4+