मोतीहारी(MOTIHARI): बिहार के कई गांव ऐसे हैं जहां आज भी विकास की रोशनी नहीं पहुच पाई है. हां इतना जरूर है कि चुनाव के दौरान जनप्रतिनिधि गांव के विकास के बड़े-बड़े वादे करते हैं लेकिन चुनाव जीतते ही उन वादों की हवा निकल जाती हैं. इसी से जुड़ी एक खबर मोतिहारी से सामने आई है जरा देखिये इस खबर को ....
ये तस्वीर है जिले के पताही प्रखंड के बेलाहीराम पंचायत की है. जहाँ की एक आबादी को आज तक गांव जाने के लिये काली सड़क नसीब नहीं हो पाई है. इस गांव के लोगों को अपने गांव में जाने का व गांव से बाहर जाने का एक साधन है तो वो है यह बांस बल्लो से स्व निर्मित चचरी का पुल. यही नहीं बल्कि गांव के बच्चे को स्कूल जाने के लिए इसी चचरी के पुल का सहारा लेना पड़ता है. इतना ही नहीं बच्चे अपना भविष्य संवारने के लिए जान जोखिम में डालकर इसी चचरी पुल के सहारे स्कूल आते-जाते हैं. इस बीच एक घटना भी घटित हो जाती है. हुआ यूँ कि इस चचरी पुल से होकर गुजर रही बेलाही गांव निवासी नारायण साह की पुत्री का इसी पुल से जाने के क्रम में पैर फिसल गया जिसमें वो नदी में डूबने से तो बची पर जख्मी हो गई. उसका एक पैर टूट गया, जिसे स्थानीय स्तर पर इलाज कराया जा रहा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस चचरी पुल से गिरकर पहले भी कई बार बच्चे गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं. किसी का हाथ टूटा तो किसी का पैर. बावजूद इसके इस समस्या को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया.
ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर बनाया पुल
प्रशासन के साथ ही जन प्रतिनिधि भी मौन हैं. यह चचरी पुल पताही प्रखंड क्षेत्र के बेलाही राम गांव से होकर गुजरने वाली शेरा नदी के ऊपर कायम है. हालांकि शेरा नदी के ऊपर पुल का निर्माण कराया गया था. लेकिन वर्ष 2020 में आई बाढ़ का पानी पुल को अपने साथ बहा ले गई. इसके बाद से ग्रामीणों ने प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक से गुहार लगाई, लेकिन किसी ने सुधि नहीं ली. थक हारकर ग्रामीणों ने आपस में चंदा इकट्ठा कर नदी के ऊपर चचरी पुल का निर्माण किया और उसी पुल के सहारे आवाजाही शुरू कर दी. हालांकि इस चचरी पुल से सफर करना मतलब अपनी जान को जोखिम में डालने के बराबर है. लेकिन लोग करें तो क्या करें.
सबसे बड़ी बात है पिछले दो बार से यहाँ से बीजेपी के विधायक के तौर पर लालबाबू गुप्ता चुनाव जीतते आए हैं. वे कुछ दिन पहले नीतीश कुमार के साथ सरकार में भी थे बावजूद उनको इस मासूम बच्चों पर तरस नहीं आया और वे इस समस्या से मुंह मोड़ते रहे. अंततः इस गांव के लोगों ने अपनी समस्या को खुद सुलझाने का प्रयास किया और आत्म निर्भरता दिखाते हुए लोगों ने चंदा इकट्ठा किया और बास बल्ले से चचरी के पुल का निर्माण कर दिया. और अब अपनी जान जोखिम में डाल लोग इसी पुल के सहारे आते जाते हैं.
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