टीएनपी डेस्क(TNP DESK); कॉलेजियम के द्वारा पूर्व भाजपा नेता विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट का जज बनाने की अनुशंसा के बाद एक नया विवाद छिड़ गया है. ध्यान रहे कि 17 जनवरी को ही सीजेआई डीवाई चन्द्रचूड़ के नेतृत्व में पूर्व भाजपा नेता विक्टोरिया गौरी को जज बनाने की अनुशंसा की गयी थी, जिसके बाद भारत सरकार की ओर से गौरी के नाम पर मुहर लगा दी गयी.
वकीलों को गौरी के नाम पर आपत्ति, लेकिन याचिका खारिज
लेकिन मद्रास हाईकोर्ट को वकीलों को विक्टोरिया गौरी को जज बनाने का फैसला स्वतंत्र न्यायपालिका पर हमला नजर आया. उन्हें सरकार और कॉलेजियम का यह फैसला पसंद नहीं आया. उनके द्वारा सर्वोच्य न्यायालय में अपील दायर कर इस फैसले पर रोक लगाने की मांग की गई. लेकिन सुनवाई के दौरान ही उनकी याचिका खारिज कर दी गयी. खबर है कि जिस समय सर्वोच्च न्यायालय में मामले पर सुनवाई चल रही थी, ठीक उसी समय विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट में शपथ दिलवायी जा रही थी. गौरी के कथित भाजपा कनेक्शन पर जस्टिस गवई ने टिप्पणी करते हुए कहा “जज के नाते कोर्ट से जुड़ने के पहले मेरी भी सियासी पृष्ठभूमि रही है. लगभग 20 साल से जज हूं, मगर मेरी राजनीतिक पृष्ठभूमि कभी न्याय करने में बाधा नहीं बना”
गौरी की नियुक्ति न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वत्रंतता पर कुठाराघात
वकीलों का कहना है कि गौरी की नियुक्ति न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वत्रंतता पर एक कुठाराघात है. उनके द्वारा विक्टोरिया गौरी के द्वारा दिये गये कई कथित “धृणित भाषणों” को सामने लाया जा रहा है, उनका दावा है कि उन भाषणों में जहर उगला गया है. खास कर विक्टोरिया गौरी दो इंटरव्यू “द मोर थ्रेट टू नेशनल सिक्योरिटी एंड पीस” और “जिहाद या क्रिश्चियन मिशनरी और कल्चरल जेनोसाइड बॉय क्रिश्चियन मिशनरी इन भारत” को सामने रख कर गौरी की आलोचना की जा रही है. साथ ही आरएसएस की ओर से प्रकाशित एक पत्रिका में उनका एक लेख भी विवाद खड़ा कर रहा है.
राष्ट्रपति से न्याय की उम्मीद
यही कारण है कि वकीलों के द्वारा इस मामले में राष्ट्रपति से चिट्ठी लिख कर गौरी की सिफारिश को रद्द् करने की मांग की गयी है. इन वकीलों का कहना है कि पहले से ही देश में न्यायपालिका की छवि पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं, उसकी निष्पक्षता और स्वतंत्रता संदेह के दायरे में पहुंच चुका है, गौरी की नियुक्ति से न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर संदेह और भी घनिभूत होगा. न्यायपालिका की स्थिति और भी खराब होगी. वकीलों की सबसे बड़ी आपत्ति तो इस बात को लेकर भी है कि गौरी अपनी इस सोच के साथ किस प्रकार मुस्लिम और ईसाई समुदाय से जुड़े मामलों में न्याय कर पायेंगी, उनके द्वारा दिया गया हर न्याय संदेहास्पद होगा.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
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