रांची(RANCHI): समान नागरिक संहिता की मांग जोरों पर है . सरकार भी इससे संबंधित कानून पेश करने की तैयारी मे है. लेकिन हममें से बहुत को ये नही पता की आखिर समान नागरिक संहिता किसे कहते है. क्यों लोग इसके समर्थन और विरोध में हैं. आज इस लेख मे हम जानेंगे समान नागरिक संहिता के बारे मे सब कुछ.......
समान नागरिक संहिता जैसा की नाम से स्पष्ट है भारत के सभी वर्ग के नागरिकों पर एक समान रूप से लागू होने वाला एक कानून है. अब तक देश मे हर वर्ग और धर्म के लिए कानून अलग अलग है और अलग अलग कानून को मानने वाले अक्सर एक समान कानुनु व्यवहार से वंचित हो जाते है. समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है. दूसरे शब्दों में, अलग-अलग पंथों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' का मूल भावना है. समान नागरिक कानून से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी पंथ क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है. यह किसी भी पंथ जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है.
क्या वर्तमान कानून हो जाएगा खत्म
बता दें समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है. अभी हर धर्म के हिसाब से अलग अलग कानून लागू होता है जैसे हिन्दू बहुविवाह नहीं कर सकते लेकिन मुस्लिम कर सकते है, हिन्दू लड़किया कानून का सहारा लेकर पिता के संपत्ति में अधिकारी हो सकतीं है लेकिन मुस्लिम या आदिवासी नही हो सकती. इसी तरह रिश्तों मे विवाह ऊतर भारतीय हिन्दू नही करते लेकिन दक्षिण भारतीय मामा भांजी मे विवाह शुभ मानते हैं. यदि समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है, तो वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, जिससे उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निपटा जा सकेगा. वर्तमान में अधिकांश भारतीय कानून, सिविल मामलों में एक समान नागरिक संहिता का पालन करते हैं, जैसे- भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882, भागीदारी अधिनियम, 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 आदि. फिर भी कुछ बातें है जो इसके अंतर्गत नही आती है. जैसे संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन का अधिकार, विवाह, तलाक और गोद लेने का अधिकार.
जानिए क्या है समान नागरिक संहिता का इतिहास
समान नागरिक संहिता (UCC) की अवधारणा का विकास औपनिवेशिक भारत में तब हुआ, जब ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता लाने की आवश्यकता पर बल दिया गया, हालाँकि रिपोर्ट में हिंदू व मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस एकरूपता से बाहर रखने की सिफारिश की गई. ब्रिटिश शासन के अंत में व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों की संख्या में वृद्धि ने सरकार को वर्ष 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिये बी.एन. राव समिति गठित करने के लिये मजबूर किया. इन सिफारिशों के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिये निर्वसीयत उत्तराधिकार से संबंधित कानून को संशोधित एवं संहिताबद्ध करने हेतु वर्ष 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के रूप में एक विधेयक को अपनाया गया. हालाँकि मुस्लिम, इसाई और पारसी लोगों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून थे.
भारत की धार्मिक स्थिति और कॉमन सिविल कोड
भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं है, बल्कि भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं. हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध के लिये एक व्यक्तिगत कानून है, जबकि मुसलमानों और इसाइयों के लिए अपने कानून हैं. मुसलमानों का कानून शरीअत पर आधारित है जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के कानून भारतीय संसद के संविधान पर आधारित हैं. समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में है. इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा. सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42 वें संशोधन के माध्यम से 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द को प्रविष्ट किया गया. इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान का उद्देश्य भारत के समस्त नागरिकों के साथ धार्मिक आधार पर किसी भी भेदभाव को समाप्त करना है, लेकिन वर्तमान समय तक समान नागरिक संहिता के लागू न हो पाने के कारण भारत में एक बड़ा वर्ग अभी भी धार्मिक कानूनों की वजह से अपने अधिकारों से वंचित है.
जानिए क्या होगा विधि में बदलाव
समान नागरिक संहिता का अर्थ एक ऐसे कानून से है जो धर्मनिरपेक्ष हो, जो किसी भी जाति या धर्म से ऊपर उठकर एक देश का सभी नागरिकों के लिए समान हो. इसको सभी जाति मज़हब के लिए समान होने के कारण उसे धर्म निरपेक्ष कानून भी कहा जाता है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य की मानता है. इसके आने के बाद सभी धर्मों के पर्सनल लॉ बोर्ड समाप्त हो जाएंगे और सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून बनाए जा सकेंगे और साथ में सभी के लिए अलग अलग अदालतों की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. भारत में कॉमन सिविल कोड का विरोध सबसे ज्यादा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड करता है उनका तर्क है की इसको लागू करने का अर्थ है की सभी धर्मों पर हिंदू कानून लागू करना. शरीयत के अनुसार मुस्लिम कुछ भी नही कर पाएंगे जैसे मुस्लिमों का 3- 4 शादियां करना बंद हो जाएगा और तलाक लेने के लिए भी उनको कोर्ट के जरिए जाना होगा. वे शरीयत के अनुसार अपने परिवार को जायदाद का बटवारा नही कर सकेंगे. समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद शादी, तलाक, दहेज, उत्तराधिकार के मामलों में हिंदू, मुसलमान और ईसाइयों पर एक समान कानून ही लागू होगा. न्यायपालिका पर दबाव कम होगा और धर्म के कारण वर्षों से पड़े केस जल्दी से सुलझा लिए जायेंगे. और कोई भी आसानी से धर्म के आधार पर राजनीति नहीं कर पाएगा. समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार आएगा मुस्लिम में तीन शादियां करने का रिवाज टूटेगा और तीन बार तलाक कहने से शादी खत्म नहीं होगी.
जानिए कौन लागू कर सकता है समान नागरिक संहिता?
भारतीय संविधान अनुच्छेद 44 के अनुसार समान नागरिक संहिता लागू करना राज्य का कर्तव्य मानता है. लेकिन शादी, तलाक, विरासत और संपत्ति पर अधिकार आदि सामाजिक मुद्दे समवर्ती सूची में आते है इसलिए केंद्र और राज्य दोनो सरकारें इसपर कानून बना सकती है. विशेषज्ञों का मानना है की केंद्र सरकार कानून लाकर जल्द से जल्द इसको लागू कर दे. कानून में समरूपता लाने के लिये विभिन्न न्यायालयों ने अक्सर अपने निर्णयों में कहा है कि सरकार को एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिये.
जानिए किन देशों में लागू है समान नागरिक संहिता
विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं. समान नागरिक संहिता से संचालित पन्थनिरपेक्ष देशों की संख्या बहुत अधिक है:-जैसे कि अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की , इंडोनेशिया, सूडान, इजिप्ट, जैसे कई देश हैं जिन्होंने समान नागरिक संहिता लागू किया है.
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