टीएनपी डेस्क(Tnp desk):-नीतीश कुमार बिहार की सियासत का वह चेहरा हैं, जो मौके की नजाकत देखकर और भांप कर अपने मोहरे बिछाते हैं और अपनी चाल चलते हैं. उनके बारे में कहावत है कि ऐसा कोई सगा नहीं जिसे नीतीश ने ठगा नहीं. राजनीति में इन्हें पलटू चाचा और कुर्सी कुमार जैसे नामों से नीतीश कुमार शुमार किए जाते रहें हैं. दरअसल, जेपी आंदोलन की उपज नीतीश ने राजनीति का ककहरा तो सीखा. लेकिन, किसी विचारधारा को नहीं अपनाई, बल्कि सत्ता पर कैसे काबिज रहना है औऱ कुर्सी कैसे हासिल करते रहनी है. इसकी अक्ल हमेशा दिखाते रहे. कबी भाजपा तो कभी राजद के साथ मिलकर बिहार की सल्तनत हांकते रहें .
सियासी गलियारो में नीतीश की अपनी पैठ, पूछ और परख भी है. अपनी जमीन औऱ जनाधार भी है और किस वक्त कैसी चाल चलनी है औऱ किसे साधना है. इसे भी महरत हासिल है.
सियासत का लंबा तजुर्बा रखने वाले नीतीश कुमार का इतिहास झटके पे झटके देने वाला रहा है. इनके पिछले पन्ने पलटने पर यही दिखाई पड़ता है कि . उन्हें हमेशा सुर्खियों में बने रहना आता है और हर वक्त फायदे की सियासत में सिकंदर बने रहते हैं. आईए एक नजर डालते हैं इंजीनियर रहें नीतीश के पाला बदलने वाले पिछली घटनक्रम पर
लालू को दिया झटका
साल 1990 को देखे तो, नीतीश कुमार की मदद से लालू प्रसाद ने राम सुंदर दास को हटाकर मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि, बाद में दोनों के रिश्तों में तल्खी आई . इस खटास के चलते 1994 में नीतीश तत्कालिन जनत दल से अलग हो गये थे और जार्ज फर्नाडीस के साथ समता पार्टी का गठन किया था. 1995 चुनाव में वामदलों के साथ चुनाव लड़ा. लेकिन, उतनी सफलता नहीं मिली. इसके बाद सीपीआई से अलग हटकर एनडीए से हाथ मिला लिया था. भाजपा के साथ उनका रिश्ता लंबा चला और 2010 विधानसभा चुनाव तक चलता रहा. इस चुनाव में एनडीए को बड़ी जीत मिली थी. बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन नीतीश 2012 में नरेन्द्र मोदी का कद बढ़ने से असहज महसूस होने लगे थे.
2014 में लड़ा अकेले लोकसभा चुनाव
अंदर ही अंदर इतने बेचैन हो उठे की गठबंधन तोड़ 2014 लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का एलान कर दिया. जिसमे उनकी पार्टी को सिर्फ 2 सीट ही मिली. जिसके बाद नीतीश ने मुख्यमंत्री पद भी छोड़ दिया.बाद में लालू प्रसाद के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सीएम बनें. इसके बाद हुए चुनाव में बीजेपी को झटका लगा, क्योंकि महागधबंधन को बड़ी सफलता मिली.
2017 में राजद को दिया झटका
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार हमेशा मुख्यमंत्री बनें रहे. उनकी पलटी 2017में देखने को मिली. जब महागठबंधन में ही तमाम तरह की खामियां दिखने लगी . डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का IRCTC घोटाले में नाम आया, इसके बाद नीतीश बाबू ने 'अंतरआत्मा' की आवाज सुनते हुए महागठबंधन खत्म कर दिया और सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के तुरंत बाद वो बीजेपी में शामिल हो गए और गठबंधन करके सरकार बना ली.
2020 में बीजेपी के साथ सरकार
नीतीश ने 2017में महागठबंधन से पलटी मारकर बीजेपी के साथ हुए थे और 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में सरकार बनायी थी. इस दरम्यान भी मुख्यमंत्री नीतीश ही बनें, जबकि उनकी पार्टी ने महज 45 सीट जीती थी , जबकि उसकी सहयोगी भाजपा ने 78 सीट लायी थी. इतनी कम सीट जेडीयू लाने के बाद भी भाजपा ने दरियादिली दिखायी और नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया. सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन, नीतीश के मन में कुछ दूसरी ही ख्वाहिशें पल रही थी. इसका रिजल्ट देखने को मिला .
2022 में भाजपा से अलग हुए
भाजपा में रहकर नीतीश बाबू ने लगातार लालू परिवार के खिलाफ हमला बोलते रहें. लेकिन, अचानक 2022 में फिर पलटी मार दी और भाजपा से अलग होकर आरजेडी,कांग्रेस और वाम दल के साथ मिल गये. एकबार फिर खुद सीएम बनें और तेजस्वी को डिप्टी सीएम बना दिया. इस दरम्यान भाजपा के खिलाफ खूब बोलते रहे. एनडीए को हराने के लिए इंडिया की गठबंधन देशभर में तैयार कर लिया और यह बोलते फिरते थे कि देश का लोंकतंत्र खतरे में हैं. इसे बचाने के सभी को एक होना पड़ेगा . भाजपा के खिलाफ सभी को एकजुट करने के बाद नीतीश कुमार सभी को भरोसे में लेकर एकबार फिर पलटी मार दी है.
2024 में महगधबंधन को दिया झटका
17 महीने महगठबंधन से रहने के बाद 28 जनवरी को राज्यपाल को नीतीश कुमार इस्तीफा दे दिया और एकबार फिर भाजपा के साथ जुड़ गये. अब फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे. इन चार सालों में देखे तो नीतीश बाबू की पलटी ने चार सालों में दो बार इस्तीफा दिया और तीन बार सरकार बनायी.
बिहार की सियासत को समझे जाने और पिछले पन्ने पलटे तो पलटू राम नीतीश कुमार ने पिछले दो दशक तक भाजपा और राजद को नचाते रहें. सहयोगी कोई भी हो लेकिन, मुख्यमंत्री की कुर्सी उनकी फिक्स है. इस बार भी भाजपा के साथ सरकार बनायेंगे. लेकिन, मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार के पास ही रहेगी.
4+