टीएनपी डेस्क (TNP DESK):-अभी तक दिनेश गोप के कारनामें, उसका कुख्यात काम और ख़ौफ़ की दुनिया के सरताज बनने के कई किस्से हमे सुनने को मिल रहें हैं. लेकिन, जंगलों में नक्सली बनाने की तालीम और सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकने वाला दिनेश गोप, खुद तो सियासत में हाथ अजमा नहीं सकता था. मगर उसपर अपनी दखल रखता था.क्योंकि, वह जानता था सत्ता के करीब रहकर ही वह खुद को महफूज और ताकतवर बना सकता है. लिहाजा, दिमाग का शातिर दिनेश सियासत पर भी अपनी धमक और पकड़ बनाने से पीछे नहीं रहा . उसकी तूती ऐसी थी कि, उसके इशारे पर लोग वोट देते थे और विधायक बनाने में सहयोग करता था. उसका डर, हनक और असर इतना था कि, कोई उसकी बात काटने हिमाकत नहीं करता था. दूसरा पहलू ये भी था कि, वह समाजिक कामों में अपनी भागीदारी से भी उसकी पकड़ बन गई थी. स्कूल खोलना, गरीब की बेटियों की शादी में मदद करना, लड़ाई -झगड़े को निपटना , वक़्त पर पैसे की इमादद जैसे काम करके लोगों की नजर में वह रोबिनहुड की छवि गढ़े हुए था.लिहाजा इसके चलते भी उसकी जमीनी स्तर पर पैठ और पहुंच आम लोगों पर गहरी बन गई थी.
कई जिलों में बनायी थी धाक
खूंटी, सिमडेगा, लोहरदगा,चाईबासा और गुमला जिले के कुछ इलाकों में दिनेश गोप का संगठन पीएलएफआई मददगार के किरदार में रही. ये तो सच है कि दिनेश गोप को दुनिया एक दुर्दात नक्सली मानती थी. उसकी पहचान कातिल के साथ-साथ उस इलाके में एक खैवनहार और तारणहर के तौर पर भी थी. इसी के चलते अपने आसपास की विधानसभा सीट पर उसकी पकड़ मजबूत थी. पीएलएफआई का समर्थन अंदर से जिसे भी मिलता था, उसका पलड़ा भारी हो जाता था. झारखंड में पहली बार हुए पंचायत चुनाव में संगठन के दबाव पर कई जिला परिषद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुने गये थे . इतना ही नहीं उसके ही संगठन के जीदन गुड़िया ने अपने प्रभाव से अपनी पत्नी जोनिका गुड़िया को जिला परिषद चुनाव में जीत दिलायी थी. जोनिका निर्विरोध अध्यक्ष चुनी गई थी.
PLFI का चुनाव में अपना एजेंडा
इसी तरह जेल में रहने के दौरान ही पौलिस सुरीन भी तोरपा से विधायक चुने गये थे. पीएलएफआई ने उसका समर्थन किया था . खूंटी में भी बीजेपी विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा को कड़ी टक्कर मिली थी. मिलाजुला के देखा जाए तो खूंटी इलाके में पीएलएफआई का अच्छा-खासा दबदबा था . हालांकि, वक्त के साथ संगटन के कमजोर पड़ते ही , सियासत में भी सिक्का कमजोर पड़ने लगा .बताया जाता है कि, उस दौरान दिनेश गोप का कद इतना बढ़ गया था, कि उसके संबंध दिल्ली बैठे बड़े नेताओं से भी हो गये थे. जब उसका संगठन उफान पर था तो उसकी पहचान और पहुंच भी काफी बढ़ गई थी. गुपचुप तरीके से उससे मिलने बड़े-ब़ड़े नेता-अफसर तक आते थे.
दिनेश गोप राजनीति की ताकत और पहुंच को जानता था. उसे मालूम था कि जो रक्तचरित्र का आवरण गढ़ रखा है. इससे सबकुछ न तो हासिल किया जा सकता है और न ही लंबे समय तक टिका जा सकता है. लिहाजा, लंबी रेस का घोड़ा बनने के लिए राजनीति की लगाम थामना जरुरी है. बेशक आगे से नहीं पीछे से ही क्यों न हो.
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