PESA कानून पर हाई कोर्ट सख्त, कानून के मसौदे को लेकर हेमंत सरकार रेस, जानिए ये कानून झारखंड के लिए क्यों है जरूरी
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टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : पेसा कानून को लेकर झारखंड हाईकोर्ट ने कड़ा रूख अपनाया है. निर्देश देते हुए कहा है कि राज्य में पेसा कानून लागू करने को लेकर सरकार तिथी निर्धारित कर शपथ पत्र के माध्यम से अदालत को बताए. अब इस कानूनी मसौदे को लेकर हेमंत सरकार भी रेस है. पंचायती राज विभाग ने नियमावली का ड्राफ्ट तैयार कर कैबिनेट विभाग को भेज दिया था. अब कैबिनेट विभाग ने यह फ़ाइल अंतिम मंजूरी के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भेज दी है.
समझिए झारखंड में आदिवासियों के लिए लिए क्यों जरूरी है पेसा कानून
PESA कानून, जिसे 1996 में लागू किया गया. अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों को उनकी सांस्कृतिक पहचान, संसाधनों और स्वशासन का अधिकार प्रदान करने के लिए बनाया गया है. झारखंड में लगभग 32% जनसंख्या आदिवासी है, और राज्य का बड़ा हिस्सा अनुसूचित क्षेत्रों के अंतर्गत आता है.
आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा
PESA कानून आदिवासियों को उनके जल, जंगल और जमीन (जल-जंगल-जमीन) पर स्वामित्व का अधिकार देता है. यह उनके पारंपरिक अधिकारों की रक्षा करता है, जो बाहरी हस्तक्षेप और शोषण से खतरे में रहते हैं. यह कानून आदिवासी समुदायों की पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं और परंपराओं को संरक्षित करता है.
स्वशासन का अधिकार
PESA ग्राम सभाओं को सशक्त बनाता है, जिससे विकास योजनाओं और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग का निर्णय आदिवासी समुदाय स्वयं ले सके. इसके साथ ही झारखंड में खनिज संसाधनों की प्रचुरता है, लेकिन इसका लाभ आदिवासी समुदाय को कम मिलता है. PESA कानून उन्हें खनिज संपत्ति पर स्वामित्व का अधिकार प्रदान करता है.
24 सालों के बाद भी सरकार क्यों नहीं कर पायी इसे लागू
झारखंड सरकार ने PESA कानून को लागू करने के लिए कदम तो उठाए हैं, लेकिन इसके कार्यान्वयन के लिए अधिसूचना जारी नहीं हुई है. विपक्ष और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि सरकार खनिज और भूमि अधिग्रहण में कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता दे रही है. आदिवासी संगठनों की मांग है कि ग्राम सभाओं को शक्तियां दी जाएं. यहां यह भी कहना गलत नहीं होगा कि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक सुस्ती के कारण यह लंबित है.
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