बिहार(BIHAR): "ठाकुर का कुआं" कविता पाठ से शुरू हुए विवाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो चुप हैं लेकिन लालू प्रसाद ने अपनी पार्टी के सांसद के पक्ष में पूरी तरह से खड़े हो गए है. लालू प्रसाद यादव ने पूर्व सांसद आनंद मोहन को साफ-साफ कह दिया की जितनी बुद्धि होगी, उतना ही बोलेंगे. राजद विधायक और आनंद मोहन के पुत्र चेतन मोहन के बारे में भी कह दिया कि उसे भी बुद्धि नहीं है. इस प्रकार लालू यादव सांसद मनोज झा के समर्थन में पूरी तरह से आ गए है. मनोज झा को उन्होंने विद्वान व्यक्ति बताया है और साफ कर दिया है कि उन्होंने किसी समाज का अपमान नहीं किया है. इस विवाद की शुरुआत राजद के विधायक और आनंद मोहन के पुत्र ने ही की थी. इसके पूर्व सांसद आनंद मोहन ने मनोज झा के बहाने लालू प्रसाद को घेरते हुए कहा था कि अगर हम उनके साथ खड़े हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम राजनीतिक रूप से भिखमंगा है. अगर हमें कोई विधानसभा की दो सीट पर समर्थन करता है, तो हम 243 सीट पर सपोर्ट करेंगे और अगर लोकसभा की दो सीट पर सपोर्ट करता है तो हम सभी 40 सीटों पर समर्थन देंगे. मनोज झा को उन्होंने बीजेपी का एजेंट बता दिया. इसके पहले उन्होंने कहा था कि अगर मैं राज्यसभा में होता तो मनोज झा की जुबान खींचकर आसन की ओर उछाल देता. आनंद मोहन ने मनोज झा को अपना टाइटल हटा लेने की भी चुनौती दी थी. इस विवाद के बाद बिहार की राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले सवाल उठा रहे हैं कि क्या आनंद मोहन पलटने वाले है.
किस दल में आंनद मोहन हैं ,कोई नहीं जनता
सवाल उठे भी क्यों नहीं, बेटा चेतन आनंद शिवहर से राजद के विधायक है. आनंद मोहन की पत्नी भी राजद में है. खुद आनंद मोहन किस पार्टी में है, यह किसी को पता नहीं है. लेकिन जब से वह जेल से निकले, तब से बीजेपी और केंद्र सरकार के खिलाफ बोलते रहते है. लेकिन हाल में आनंद मोहन के पूरे परिवार ने आरजेडी सांसद मनोज झा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. तो क्या इसके राजनीतिक माने मतलब नहीं निकाले जाने चाहिए कि आखिर क्या हो गया कि आनंद मोहन राष्ट्रीय जनता दल और लालू प्रसाद के खिलाफ हो गए. यह सभी जानते हैं कि मनोज झा, लालू प्रसाद के प्रिय है. ऐसे में कविता पाठ को बहाना बनाकर विवाद करना क्या कोई संकेत दे रहा है. बिहार की राजनीति अभी "एनडीए" और "इंडिया" दोनों के केंद्र में है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर भी सवाल उठाते रहे है. ऐसे में वरीय नेताओं के क्या कदम होंगे , यह देखने वाली बात होगी. लेकिन लालू प्रसाद ने तो स्पष्ट कर दिया है कि वह मनोज झा के साथ हैं और उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा है.
नीतीश कुमार सरकार ने ही रिहाई का रास्ता साफ़ कराया
यह बात भी सच है कि नीतीश कुमार की सरकार ने ही नियम को शिथिल कर आनंद मोहन को जेल से बाहर निकालने का रास्ता साफ किया. फिर गठबंधन सरकार के खिलाफ आनंद मोहन ऐसे तो हल्ला नहीं बोल रहे होंगे. कुछ ना कुछ इसके पीछे राज होगा. यह अलग बात है कि इस राज को खुलने में अभी वक्त लगेगा लेकिन इस कविता पाठ के बाद उठे विवाद ने कम से कम नीतीश कुमार को तो असहज कर ही दिया होगा. राजद के विधायक रहते हुए उनके पुत्र ने विवाद की शुरुआत की. अभी कोई अनायास नहीं हुआ होगा. नीतीश कुमार तो चुप है लेकिन जदयू के प्रदेश अध्यक्ष ने तो साफ कर दिया है कि मनोज झा ने कोई गलत बात नहीं कहीं है. मतलब जदयू का पार्टी लाइन भी क्लियर है. इसके बाद भी अगर पूर्व सांसद आनंद मोहन की ओर से इस विवाद को आगे बढ़ाया जाता है और दूसरे दल के लोग भी इसमें कूदते हैं, तो मतलब निकालना बहुत ही स्वाभाविक है.
गोपालगंज के डीएम की हत्या के आरोप में उम्र कैद हुई थी
4 दिसंबर" 1994 को गोपालगंज के डीएम की हत्या के आरोप में आंनद मोहन को उम्र कैद की सजा हुई थी. यह सजा 2007 में सुनाई गई थी. उसके बाद से ही वह जेल में थे लेकिन इस बीच बिहार सरकार ने 10 अप्रैल 2023 को बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम-481(i) (क) में संशोधन करके उस वाक्यांश को हटा दिया, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था. इस संशोधन के बाद अब ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या अपवाद की श्रेणी में नहीं गिनी जाएगी, बल्कि यह एक साधारण हत्या मानी जाएगी. इस संशोधन के बाद आनंद मोहन की रिहाई की प्रक्रिया आसान हो गई, क्योंकि सरकारी अफसर की हत्या के मामले में ही आनंद मोहन को सजा हुई थी.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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