टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : रंगों का त्योहार होली उत्साह और उमंग का पर्व माना जाता है. लोग खुशियां मनाते हैं. एक दूसरे से मिलते हैं. गिले-शिकवे भुलाते हैं और जीवन में एक नया रंग भरते हैं. पर सामाजिक व्यवस्था के तहत कुछ ऐसा समूह भी हो जाता है, जो इस रंग से अपने को दूर रख लेता है. हम इस स्टोरी में आपको वैसे ही एक प्रसंग की चर्चा कर रहे हैं. भारत में इस बार होली पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाई जा रही है. किसी प्रकार का कोई डर और फिक्र नहीं है. पिछला 2 साल कोरोना महामारी के कारण उत्साह और उमंग थोड़ा ठंडा पड़ गया था. सामूहिक स्तर पर होली आयोजन नहीं हो रहे थे. लेकिन आप सब कुछ ठीक-ठाक है.
गोपीनाथ मंदिर का एक सामाजिक परंपरा
देश के कई स्थानों में पिछले कई दिनों से रंगों का त्योहार होली मनाया जा रहा है. फगुआ गाए जा रहे हैं. धमाल मचाया जा रहा है. चलिए हम बताते हैं आपको वृंदावन की एक होली जो सोमवार को देखने को मिली. यहां स्थित गोपीनाथ मंदिर एक सामाजिक परंपरा के टूटने का गवाह बना. आमतौर पर यह माना जाता है कि जो विधवा हैं,वे रंग से परहेज करती हैं. वह ना तो दूसरे को रंग लगाती हैं और ना ही खुद रंग किसी से स्वीकार करती हैं. हम जानते हैं कि सामान्यतः विधवा का लिबास साधारण और सफेद होता है.
विधवा और बेसहारा महिलाओं ने भी खेली होली
वृंदावन के राधा गोपीनाथ मंदिर में सदियों से होली मनाई जाती है. इस बार यहां की होली इसलिए खास थी कि विधवा और बेसहारा महिलाओं ने खुलकर होली खेली. फूल और गुलाल से होली खेली गई. बहुत ही अद्भुत और भावुक दृश्य देखने को मिला जब विधवा महिलाओं ने जमकर होली खेली. उनके चेहरे भी खिल गए. इन विधवा और बेसहारा महिलाओं ने होली के गीतों की धुन पर नाचते गाते अपने गम को पीछे धकेलने का प्रयास किया. अपनी सोनी जिंदगी में रंग भरने का प्रयास किया. होली के इस खास आयोजन में कई विदेशी महिला पर्यटकों ने भी हिस्सा लिया और रंग गुलाल उड़ाए. इस प्रयोग को सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ बिंदेश्वर पाठक ने किया. उन्होंने कहा कि विधवाओं की जिंदगी में खुशी के रंग भरने का यह एक प्रयास है ताकि समाज को इनके विषय में एक नया संदेश मिले. सोशल मीडिया पर वृंदावन के राधा गोपीनाथ मंदिर परिसर में इस खास होली की चर्चा हो रही है.
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