टीएनपी डेस्क(TNP DESK): देश में तीसरी बार NDA की सरकार बन गई. नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की शपथ लेकर कई रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करा लिया.लेकिन इस मैनडेट पर मंथन का दौर भी जारी है.आखिर 400 के नारे के साथ मैदान में उतरी NDA 290 पर सीमित क्यों हो गई.आखिर BJP अकेले बहुमत के आंकड़े तक क्यों नहीं पहुंच सकी.इसपर अब आरएसएस ने भाजपा को आइना दिखाया है.पहले मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में कई बातें कही बाद में आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर में इस हार के कई कारण बताए है.एक आरोप भी भाजपा पर लगा कि आरएसएस से किसी नेता ने संपर्क नहीं किया.
दरअसल ऐसी चर्चा कई दिनों से चल रही थी कि भाजपा आरएसएस को साथ लेकर नहीं चल रही है.लेकिन यह चर्चा अब सच साबित हुई है.और इसका खामियाजा भी भाजपा को उठाना पड़ा है.अकेले दम पर बहुमत के आंकड़े से भी पीछे रह गई. आरएसएस से तालुख रखने वाली पत्रिका ऑर्गनाइजर में लिखा गया है कि ''2024 के आम चुनावों के नतीजे अति आत्मविश्वासी बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए एक वास्तविकता के रूप में सामने आए. उन्हें एहसास नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 400 पार का आह्वान उनके लिए एक लक्ष्य और विपक्ष को चुनौती देने जैसा था.''
आगे लिखा गया है कि भाजपा के कार्यकर्ता और नेता जमीन पर अपने एजेंडा को उतराने के बजाए सोशल मीडिया और होडिंग तक ही सीमित रह गए.सभी कार्यकर्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चकाचौंध में खोए हुए थे.लग रहा था कि बिना मेहनत के 400 का आंकड़ा आराम से पहुंच जाएंगे.साथ ही प्रत्याशी के चयन में भी सर्वे नहीं किया गया.25 प्रतिशत से अधिक सीट पर पैराशूट से उम्मीदवार को लाकर उतार दिया.जिन्हें उस क्षेत्र की समस्या की कोई जानकारी भी नहीं थी.
इस पत्रिका में यह भी बात कही गई कि चुनाव के दौरान किसी भी नेता,मंत्री,सांसद और विधायक ने आरएसएस के कार्यकर्ता से संपर्क नहीं किया. अपने पुराने साथी को छोड़ कर चल रहे थे.आरएसएस को किसी ने भी चुनाव में साथ आने को आमंत्रण नहीं दिया.आगे लिखा गया कि भाजपा नेता और कार्यकर्ता प्रधानमंत्री की चकाचौंध में इतना खो गए कि सांमने खड़ी जनता की आवाज़ भी इनके कानो में नहीं जा रही थी.
रतन शारदा ने आगे लिखा कि इस चुनाव में आरएसएस ने भाजपा के लिए कोई काम नहीं किया यह कह सकते है.भाजपा खुद विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है इनके पास अपने जमीन कार्यकर्ता की फौज है.लेकिन कार्यकर्ता खुद इतना आत्मविश्वास में थे कि कुछ भी हो जाये आएगा तो मोदी ही.यही आत्मविश्वास जमीन की हकीकत तक नहीं पहुंच सका.
अगर बात इससे पहले कि करें तो खुद आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने भी भाजपा को आइना दिखाया है.उन्होंने खुले मंच से कहा कि विचार के मतभेद हो सकते है.सदन में जो विपक्ष है उसे विपक्ष ही समझा जाये न कि विरोधी.साथ ही मणिपुर को लेकर भी सवाल खड़ा किया कि एक साल से मणिपुर शांति का रास्ता देख रहा है.
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