पटना(PATNA): राजनीतिक रुप से अक्कखड़, भाषाई रुप से मसखऱ, देशी वाक्य विन्यास और गंवई अंदाज यही भारत की राजनीति में लालू की पहचान रही है. करीबन चालीस वर्षों के राजनीतिक जीवन में लालू यादव ने कई रंग देखे, कई रंग बनते देखे और कई रंग बिखरते देखें. कई सुरमों को आते देखा और कई सुरमों को जाते देखा और वह दौर भी देखा जब बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के आविर्भाव के बाद लालू का राजनीतिक मर्सिया लिखा जा रहा है, यह दावा किया जा रहा था कि अब बिहार की राजनीति में राजद की वापसी नामुमकिन है, लेकिन लालू ने राजनीति का वह खेल भी अपनी आंखों से देखा कि जिस नीतीश को सामने रख भाजपा की ओर से लालू की विदाई लिखी जा रही थी, आज वही लालू नीतीश जोड़ी एक साथ सत्ता का रसास्वादन कर रहे हैं.
खत्म नहीं हुआ बिहार की राजनीति से लालू का जलबा
हम बात कर रहे थे लालू के उस अक्कखड़पन की, जिसके बूते वह बिहार की राजनीति से अपना जलबा कभी खत्म नहीं होने दिया, उनके भाषा और गंवई अंदाज की, लालू का वही गंवई अंदाज आज एक बार देखना को मिला. जब इंडिया गठबंधन की बैठक में शामिल होने के लिए लालू से इंडिया गठबंधन की सफलता पर सवाल किया तो लालू उसी फक्कड़पन के साथ सामने आये और कहा कि हम मोदी का गर्दन यानी नरेटी पर चढ़ने जा रहे हैं.
संयोजक पद को लेकर विवाद के बीच भी नहीं डोला लालू का आत्मविश्वास
ध्यान रहे कि लालू का यह आत्मविश्वास तब है, जब पूरे बिहार में नीतीश कुमार के संयोजक बनाने को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं, और यह दावा किया जा रहा है कि यदि इस गठबंधन में सीएम नीतीश को कोई बड़ी भूमिका नहीं मिली तो वह अपना कदम पीछे हटा सकते हैं, हालांकि खुद नीतीश इससे इंकार करते हुए मंद मंद मुस्कान के साथ कहते हैं कि उनका कोई व्यक्तिगत महात्वाकांक्षा नहीं है, वह तो बस इस मोदी सरकार की विदाई चाहते हैं.
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